प्रेरणास्त्रोत : एक डाकू का दान

Robber's-Donation
Robber's-Donation

बात सन् 1925 की है। न्यूयार्क के यहूदी अस्पताल का खजांची दानदाताओं और अन्य मददों से जमा हुई अस्पताल की रकम लेकर बैंक जा रहा था। जब अस्पताल से थोड़ी दूर निकला तो उसे डाकूओं ने घेर लिया। डाकूओं का सरदार अपने साथियों से बोला, ‘छीन लो इस बदमाश से धन से भरा बैग। ध्यान रखो कहीं यह बचकर न जाने पाए।’ खजांची अपने ऊपर हुए इस आक्रमण से घबराया नहीं और उसने धैर्यपूर्वक डाकूओं से कहा, ‘यह पैसा मेरा नहीं है, अस्पताल का है, जिसे दानदाताओं और रोगियों के परिजनों की सहायता से अस्पताल चलाने के लिए इकट्ठा किया गया हैे। यदि आप इसे छीन लेगें, तो अस्पताल के रोगियों की सेवा में कमी आएगी। रोगी और दीन-दुखियों को जब इस बात की खबर लगेगी तो वे आपको बददुआएँ देंगे।’ ‘हमें बहाने पसंद नहीं, लाओ अपना थैला मुझे दे दो,’ डाकूओं का सरदार दहाड़ा। ‘मेरे भाई जो दान देकर अस्पताल चलाते हैं, वे भी आपके ही भाई हैं। अस्पताल के धन में से आपको कुछ हथियाना शोभा नहीं देता, वैसे आपकी मर्जी’-ऐसा कहकर खजांची ने नोटों से भरा थैला डाकू के सरदार की ओर बढ़ा दिया। किन्तु खजांची की बात का असर डाकू सरदार पर ऐसा हुआ कि उसने न केवल उसको थैला वापस कर दिया, बल्कि कुछ रकम अपने पास से भी अस्पताल की सहायता हेतु दान में दे दी।

संत और राजकुमार

महावीर ने अपरिग्रह को जीवन का धर्म माना है। उनका कहना है कि अधिक मिलने पर भी संग्रह नहीं करना चाहिए तथा संग्रह की प्रवृत्ति से अपने को दूर ही रखना चाहिए। लोभ, कलेश और कषाय संग्रह रूपी वृक्ष हैं, जिनकी शाखाएँ चिंता के रूप में निकलती हैं। फारस के एक संत छोटी-सी झोपड़ी में सादगीपूर्ण ढंग से रहते थे। वे दिन-रात खुदा की इबादत में निकाल देते थे और जो भी रूखा-सूखा मिल जाता उससे अपना पेट भर लेते थे। उनकी ख्याति सुनकर फारस का राजकुमार उनसे मिलने आया और उन्हें कुछ कीमती वस्त्र भेंट करने चाहे। इस पर संत ने राजकुमार को समझाया, ‘‘यदि आपके महल में स्वामीभक्त सेवक हों और आप उनसे संतुष्ट हों, ऐसे में यदि कोई और नौकरी माँगने आए, तो क्या आप उस पुराने स्वामीभक्त को नौकरी से अलग कर देंगे?’’ हरगिज नहीं, राजकुमार ने उत्तर दिया। तो जिन वस्त्रों को मैं पिछले अनेक वर्षों से पहन रहा हूँ और ये मेरा साथ दे रहे हैं, उन्हें निकलवाकर ये नए वस्त्र मुझे क्यों दे रहे हैं। यही वस्त्र आप किसी जरूरतमंद को देंगे तो ये उसके काम आ सकेंगे। यह कहकर संत अपनी झोपड़ी में चले गए।

 

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।