प्रदूषण बना एक बड़ी राष्ट्रीय समस्या

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प्रदूषण हमारे देश के लिए एक बड़ी व भयानक समस्या बन कर उभर रहा है। एक विश्व प्रसिद्ध सर्वे के दौरान इस बात का खुलासा होने के बाद अब सभी को इस समस्या की ओर ध्यान देना चाहिए कि 2015 में दुनिया में प्रदूषण के कारण सबसे अधिक मौतें भारत में ही हुई हैं लेकिन लगता है अभी न तो सरकारें व न ही लोग इस दिशा में अपने दृढ़-इच्छाशक्ति के साथ कोई ठोस कदम उठाने के लिए तैयार हैं।

अगर सरकार कोई ठोस कदम उठाती भी है तो आमजन कानूनों को कैद या अपने ऊपर बोझ समझकर इनसे किनारा कर लेते हैं। अभी तक दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित महानगरों में शुमार दिल्ली में सुधार नहीं हो पाया है, छोटे-बड़े शहरों व गांवों में इस संबंधी कोई आशा रखना बहुत ही मुश्किल है। यह भी समस्या है कि ऊंचे स्तर पर तालमेल या सांझे कार्यक्रम की बहुत बड़ी कमी है।

अदालतें कोई आदेश जारी करती हैं लेकिन सरकार मौके पर तैयार नहीं होती। सरकारों को फटकार लगती है, जवाब मांगा जाता है लेकिन परिणाम न के बराबर में ही सामने आते हैं। अब दिल्ली प्रदूषण कन्ट्रौल बोर्ड ने डीजल वाले जनरेटर चलाने पर पाबंदी लगा दी है। फैसला सराहनीय है लेकिन इसे तुरंत प्रभाव से लागू करना कोई आसान बात नहीं है।

खासकर लोगों की मानसिकता व जीवन शैली इसे तुरंत प्रभाव से स्वीकार नहीं करती। इससे पहले आड-ईवन का तर्जुबा भी किया गया, लेकिन कोई बड़ी सफलता हासिल नहीं हुई। दरअसल बुनियादी ढ़ांचे में बड़े परिवर्तन के बिना प्रदूषण को कम करना इतना आसान नहीं है।

साथ ही आमजन पर कोई आदेश थोपने की बजाए उसके लिए जन जागरूकता पैदा करनी चाहिए ताकि आमजन इसे अपनी भलाई समझ कर स्वीकार करे। संवैधानिक संस्थाओं के दरमियान प्रदूषण संबंधी अंतर-विरोधों को खत्म करना पड़ेगा।

पता नहीं चल रहा कि कौनसी दिशा अपनाई जाए। राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यून के अनुसार पराली जलाने वालों के खिलाफ कार्यवाही हो। दूसरी तरफ हाईकोर्ट ने किसानों के खिलाफ मुकदमेबाजी का सख्त नोटिस जारी किया है।

प्रदूषण राष्ट्रीय समस्या है, जिससे निपटने के लिए संवैधानिक, सामाजिक व कानूनी स्तर पर एकीकृत मुहिम चलाने की जरूरत है। प्रदूषण रोकने के लिए सभी पहलू स्पष्ट व तैयारी में दृढ़ता से किए जाएं।

 

 

 

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