रोजगार के सपनों के बीच एक देश एक परीक्षा

Employment

बीते 19 अगस्त को मोदी सरकार की कैबिनेट ने एक देश एक परीक्षा को मंजूरी दी। अब देखना यह होगा कि सरकारी नौकरी की तैयारी करने वाले करोड़ों युवाओं के लिए यह कितना लाभकारी सिद्ध होगा। शिक्षा और रोजगार का गहरा नाता है। कोरोना के इस कालखण्ड में शिक्षा भी हाशिये पर है और रोजगार तो मानो निस्तोनाबूत हो गये हैं। इसी बीच नौकरी के लिए परीक्षा की एक नई प्रणाली का उदय होना कौतूहल के साथ रोचकता बढ़ा दिया है। फिलहाल एक देश एक परीक्षा नूतनता से भरी व्यवस्था प्रतीत होती है। मगर देखने वाली बात यह रहेगी कि सरकारी नौकरी देने के मामले में सरकार का दिल कितना बड़ा है।

सरकार के हाल के डाटा के अनुसार 1 मार्च 2018 तक केन्द्र सरकार के विभागों में 6 लाख 83 हजार से अधिक रिक्त पदों में पौने 6 लाख ग्रुप सी और करीब 90 हजार ग्रुप डी और 20 हजार के आसपास ग्रुप बी के पद रिक्त हैं। हर साल करीब सवा लाख पदों के लिए ढाई से तीन करोड़ प्रतियोगी अलग-अलग परीक्षाओं में आवेदन करते हैं, जिन्हें अलग-अलग भर्ती एजेंसियां सम्पन्न कराती हैं। जाहिर है अब इसकी नौबत नहीं आयेगी क्योंकि एक देश एक परीक्षा में अब केवल राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी (एनआरए) के अन्तर्गत ही परीक्षा आयोजित होंगी। जिसके तहत ग्रुप बी और सी के नॉनटेक्निकल पदों पर भर्ती के लिए अभ्यर्थियों को एक ही आॅनलाइन कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट (सीईटी) देना होगा। मौजूदा समय में भर्ती एजेंसी के तौर पर संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा एवं केन्द्रीय सेवा के लिए जबकि कर्मचारी चयन आयोग इसके नीचे की सेवाओं के लिए भर्ती करता रहा है।

राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी के गठन की मंजूरी के साथ ही इसमें फिलहाल तीन भर्ती बोर्डों मसलन रेलवे भर्ती बोर्ड, कर्मचारी चयन आयोग और बैंकिंग कर्मचारी संस्थान को इसमें शामिल किया गया है। मौजूदा समय में केन्द्रीय स्तर की नौकरी से जुड़े करीब 20 भर्ती बोर्ड हैं। जिसे आने वाले समय में एकीकृत करने का प्रयास रहेगा। ढांचागत रूप से नई भर्ती व्यवस्था सघन और स्पष्ट तो दिखती है मगर कई मामलों में यह कितनी प्रखर होगी इसके धरातल पर आने के बाद ही पता चलेगा। फिलहाल इस नई पद्धति में देश के 676 जिलों में परीक्षा केन्द्र के साथ कुल केन्द्रों की संख्या एक हजार रखने की योजना है साथ ही 117 जिलों में परीक्षा हेतु आधारभूत संरचना के निर्माण की बात भी शामिल है। राज्य की नौकरियों के लिए अलग से आवेदन नहीं देने की स्थिति भी इसमें दिखती है।

पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा इसकी सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। प्रधानमंत्री मोदी देश के करोड़ों युवाओं के लिए राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी को एक वरदान साबित होने की बात कह रहे हैं। जाहिर है इस नई परीक्षा प्रणाली के चलते परीक्षा पर होने वाले खर्च में गिरावट आयेगी और बार-बार आवेदन करने का झंझट भी नहीं रहेगा। परीक्षा आॅनलाइन होने के कारण पारदर्शिता का भी प्रभाव होगा मगर देश में इंटरनेट कनेक्टिविटी को भी मजबूती देनी होगी। कोरोना काल में जिस तरह आॅनलाइन शिक्षा से दूर-दराज के विद्यार्थी वंचित हैं इससे यह स्पष्ट हो गया कि ऐसी सुविधाओं के अभाव में कई नुक्सान हुए हैं। हालांकि एक हजार परीक्षा केन्द्र को सुसज्जित करना सरकार की जिम्मेदारी होगी।

इसमें कोई दुविधा नहीं कि यह एक पारदर्शी व्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। फिलहाल 2025 तक इंटरनेट कनेक्टिविटी देश के 90 करोड़ जनमानस तक पहुंच बना लेगी। पढ़ाई और परीक्षा का गहरा नाता है ऐसे में इंटरनेट की सुविधा दो तरफा काम कर रही है। भारत में ढाई लाख पंचायत और साढ़े 6 लाख से अधिक गांव जिसमें काफी पैमाने पर अभी ऐसी सुविधाएं पहुंचनी बाकी हैं। साथ ही बिजली की भी पहुंच के साथ बड़ी हुई मात्रा आॅनलाइन के लिए एक बड़ी सुविधा होगी। जाहिर है आॅनलाइन परीक्षा तभी मजबूती पकड़ेगी जब आॅनलाइन शिक्षा को भी बढ़ावा मिलेगा।

एक देश एक कर 1 जुलाई 2017 से लागू है। एक देश एक राशन कार्ड भी स्वरूप ले लिया है। एक देश और एक चुनाव पर चर्चा कई वर्षों से जारी है। इसी बीच एक देश एक परीक्षा की मंजूरी मिलना और इसके पहले बीते 29 जुलाई को नई शिक्षा नीति 2020 का कैबिनेट द्वारा मंजूरी देश को एक नई सुचिता की ओर ले जाने का प्रयास तो है। मगर आर्थिक हालात कई मामलों में जमींदोज हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि बेरोजगारी अपने सारे रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। इस दरमियान यदि सरकार खाली पदों की भरपाई करती है तो बेरोजगारों के लिए यह किसी बड़े उपहार से कम नहीं होगा। नई परीक्षा प्रणाली महंगी हुई परीक्षाओं को भी न केवल सस्ता करेगी बल्कि समय और संसाधन को भी बचायेगी। यहां वहां की भाग-दौड़ से बचत तो होगी ही महिलाओं और ग्रामीण उम्मीदवारों के लिए यह बड़ी सुविधा के रूप में देखी जायेगी। परीक्षा केन्द्र का समीप होना और बारबार यात्रा करने और ठहरने आदि के खर्चे से मुक्ति भी मिलेगी।

गौरतलब है सीईटी में प्राप्त अंक परिणाम घोषित होने की तिथि से तीन साल के लिए वैध होंगे। दोबारा सीईटी में भाग लेने के लिए यहां अवसरों की भी कोई सीमा नहीं है। इसी तीन सालों के बीच वे मुख्य परीक्षा में शामिल होते रहेंगे। सम्भावना जताई गयी है कि यह परीक्षा साल में एक या दो बार भी आयोजित की जा सकती है। ये सब सुविधाएं बेरोजगारों के लिए संतोष प्रदान करने वाली तो लगती हैं। वैसे इसे परीक्षा में सुधारवादी संकल्पना से निहित एक ऐसी योजना के रूप में देखा जा सकता है जो भविष्य की तस्वीर बदल सकती है। देश में पारदर्शी परीक्षा करा लेना भी हमेशा चुनौती रही है। कर्मचारी चयन आयोग जैसी संस्थाएं परीक्षा में अनियमितता के लिए बदनाम हो चुकी हैं। यदि इस प्रणाली से पारदर्शिता का भरपूर विकास होता है तो यह मेहनतकश युवाओं के लिए बेहतर ही कहा जायेगा।

फिलहाल राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी का मुख्यालय दिल्ली में रहेगा और इसका चेयरमैन सचिव स्तर का अधिकारी होगा। इसके बोर्ड में उन सभी विभागों का प्रतिनिधित्व होेगे जिनके भर्ती बोर्ड को इसमें जोड़ा जायेगा। यह भी समझना ठीक रहेगा कि आखिर ये नई व्यवस्था क्यों लायी गयी क्या पहले फुटकर में बनी भर्ती एजेंसियां इस मामले में सार्थक कार्य नहीं कर पा रही थी। असल में सरकारी नौकरी के लिए अभ्यर्थियों की एक जैसी पात्रता के बावजूद अलग-अलग परिक्षाओं में शामिल होना पड़ता था जिसके चलते उन्हें न केवल आर्थिक दबाव से जूझना पड़ता था बल्कि आये दिन परीक्षाओं से भी गुजरना पड़ता था।

गौरतलब है कि प्रत्येक परीक्षा में करीब ढाई से तीन करोड़ अभ्यर्थी आवेदन करते थे, जिसे अब एक छतरी के नीचे ला दिया गया है। सरकार ने भर्ती एजेंसी के लिए 15 सौ करोड़ से अधिक रूपए का आबंटन किया है, जिसे तीन साल में व्यय किया जाना है। एक देश एक परीक्षा एक अनूठी व्यवस्था है, इसके तहत सीईटी के अंतर्गत तीन स्तरों पर परीक्षा को आयोजित करने का जो सुझाव है, उसमें 10वीं, 12वीं और स्नातक स्तर शामिल है। इसमें गौर करने वाली बात यह है कि प्रस्ताव के अनुसार शुरूआत में सीईटी द्वारा परीक्षा सिर्फ अंग्रेजी और हिन्दी माध्यम में आयोजित होंगे, क्षेत्रीय भाषाओं में यह नहीं होगा।

जाहिर है जो अन्य भाषा के अभ्यर्थी हैं उनके लिए यह एक समस्या होगी। वैसे यहां बताते चलें कि नई शिक्षा नीति 2020 में शुरूआती शिक्षा क्षेत्रीय भाषा के लिए भी कही गयी है। यहां एक देश एक परीक्षा का दृष्टिकोण थोड़ा लचर दिखाई देता है। ऐसे में इसे क्षेत्रीय भाषाओं के भीतर शीघ्र लाना ही होगा ताकि देश का कोई भी परीक्षार्थी वंचित न रहे। फिलहाल एक देश एक परीक्षा का यह नया दृष्टिकोण जो आने वाले दिनों में बेरोजगारी से जकड़े युवाओं के लिए कई राहत देगा।

                                                                                                             -डॉ. सुशील कुमार सिंह

 

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