वर्तमान विज्ञान और तकनीकी युग में तेजी से बदलते परिवेश के बीच, अधिकांश लोग शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। लोगों में यह धारणा बढ़ रही है कि शहरों में जाकर जीवन स्तर में सुधार हो सकता है और बेहतर अवसर मिल सकते हैं। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों की अपनी समृद्ध संस्कृति और परंपराएं हैं जो आज भी कायम हैं। बावजूद इसके, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और आधुनिक सुविधाओं के अभाव के कारण लोग शहरों में बसने की ओर प्रेरित हो रहे हैं। शहरीकरण का यह तेजी से बढ़ता क्रम एक वैश्विक आवास संकट को जन्म दे रहा है, और इसे हल करने के लिए दुनिया भर के विशेषज्ञ और नीति निमार्ता लगातार प्रयासरत हैं। Global Urbanization
शहरीकरण के साथ ही शहरों में बुनियादी ढांचे और सेवाओं पर दबाव बढ़ता जा रहा है। जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि हो रही है, वैसे-वैसे परिवहन, आवास, जल और बिजली जैसी आवश्यकताओं की मांग भी बढ़ रही है। वर्तमान में इन सुविधाओं की आपूर्ति सीमित होती जा रही है, जिससे आवश्यक संसाधनों का अभाव पैदा हो रहा है। यही कारण है कि दीर्घकालिक योजना बनाना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है ताकि भविष्य में किसी भी आपात स्थिति का सामना करने में असमर्थता न रहे। तेजी से बढ़ते शहरीकरण को देखते हुए स्थानीय और वैश्विक स्तर पर नीति और योजनाओं का विकास एक आवश्यक कदम बन गया है।
पर्यावरण संरक्षण के लिए वनों की कटाई पर रोक लगाना अत्यंत आवश्यक
जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ शहरीकरण से पर्यावरण पर भी गहरा असर पड़ रहा है। शहरी केंद्रों में अत्यधिक संख्या में वाहन, कारखाने और मकानों का निर्माण होने से वायु और जल प्रदूषण में वृद्धि हो रही है। वैश्विक जलवायु परिवर्तन का खतरा गंभीर होता जा रहा है, और इसके परिणामस्वरूप वायु गुणवत्ता निरंतर खराब हो रही है। बढ़ते प्रदूषण के कारण शहरों में सांस लेना तक कठिन होता जा रहा है। यदि वर्तमान स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो आने वाले समय में ऑक्सीजन की कमी भी हो सकती है।
पर्यावरण संरक्षण के लिए शहरीकरण को संतुलित करना और वनों की कटाई पर रोक लगाना अत्यंत आवश्यक है। शहरी विकास के लिए पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई हो रही है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों में कमी आ रही है। यह गंभीर पर्यावरणीय असंतुलन का कारण बनता जा रहा है, जो कि भविष्य में सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।
शहरीकरण आर्थिक अवसरों के विस्तार का भी कारण
शहरीकरण आर्थिक अवसरों के विस्तार का भी कारण बनता है, लेकिन यह असमानता का भी स्रोत है। शहरीकरण से जहां एक ओर अमीर वर्ग अधिक संपन्न होता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर गरीब वर्ग और अधिक कठिनाइयों का सामना कर रहा है। आर्थिक विषमता के बढ़ने से वैश्विक अर्थव्यवस्था अस्थिर हो सकती है और गरीब वर्ग के लिए जीवन स्तर में सुधार की संभावना कम होती जाती है। आर्थिक असंतुलन के इस दुष्चक्र को तोड़ना और समावेशी विकास सुनिश्चित करना विश्व के सभी देशों के लिए बड़ी चुनौती बन गया है।
शहरीकरण के कारण समाज में नई समस्याएं भी उत्पन्न हो रही हैं। शहरी केंद्रों की ओर भारी संख्या में हो रहे पलायन से जनसंख्या घनत्व बढ़ता जा रहा है, जिससे लोगों को आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती है। अधिक जनसंख्या से संसाधनों पर दबाव बढ़ता है और इससे अपराध दर में वृद्धि हो सकती है। शहरों में रह रहे लोगों के लिए नीति और शासन से जुड़ी समस्याएं भी गंभीर होती जा रही हैं, जो कि शहरी विकास के मार्ग में एक प्रमुख बाधा बनती हैं। इसके समाधान के लिए स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक व्यापक सहयोग की आवश्यकता है।
चुनौतियों के समाधान में विश्व शहरी फोरम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है
शहरीकरण से जुड़ी इन चुनौतियों के समाधान में विश्व शहरी फोरम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस मंच का मुख्य उद्देश्य सतत शहरी विकास को बढ़ावा देना और शहरीकरण के प्रभावों से निपटने के लिए नई रणनीतियों और उपायों पर विचार-विमर्श करना है। यह फोरम नीति निर्माताओं, विशेषज्ञों और सामुदायिक नेताओं को एक साथ लाता है, ताकि वे अपने अनुभव साझा कर सकें और एक ऐसा मंच तैयार कर सकें जो वैश्विक आवास संकट, जलवायु परिवर्तन, और आर्थिक असमानता जैसी समस्याओं के समाधान के लिए प्रयासरत हो।
यूएन-हैबिटेट द्वारा आयोजित इस फोरम का उद्देश्य शहरीकरण के नकारात्मक प्रभावों को कम करना और टिकाऊ शहरी विकास को प्रोत्साहित करना है। विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श के साथ ही फोरम शहरी क्षेत्रों के प्रबंधन के लिए नीतियाँ बनाने में सहायक है। इसके अलावा, यह फोरम एक ऐसा अवसर प्रदान करता है जहाँ विशेषज्ञ अपने अनुभव साझा कर सकते हैं और भावी शहरों को अधिक समावेशी, सुरक्षित, लचीला और टिकाऊ बनाने के उपाय ढूंढ सकते हैं।
2050 तक यह आंकड़ा 70 प्रतिशत तक पहुंच सकता है
यूएन की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में वैश्विक जनसंख्या का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा शहरी क्षेत्रों में निवास करता है और 2050 तक यह आंकड़ा 70 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। इस बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन के कारण शहरों पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। अफ्रीका और एशिया के कई शहरों में आने वाले 30 वर्षों में शहरी आबादी के दोगुना होने की संभावना है। काहिरा जैसे शहर अगले दशक में विश्व के सबसे बड़े महानगरों में से एक बन सकते हैं। ऐसी स्थिति में, सतत शहरी विकास और संसाधनों के संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर प्रभावी कदम उठाना अत्यंत आवश्यक है। अत:, शहरीकरण के लाभों का समुचित उपयोग करते हुए उसके दुष्प्रभावों को कम करने की दिशा में प्रभावी नीति निर्माण, नवाचार और सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं। Global Urbanization
डॉ. संदीप सिंहमार (यह लेखक के अपने विचार हैं)