केंद्र सरकार ने सेना में महिलाओं को समानता का अधिकार देने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मोहर लगा दी है। सेना की दस स्ट्रीमें-आर्मी एयर डिफेंस, सिग्नल इंजीनियर, आर्मी एवीनेशन, ईलेक्ट्रोनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियरिंग, आर्मी सर्विस कार्प, इंटेलिजेंस, जज, एडवोकेट जनरल और एजुकेशनल कार्प में महिलाओं को स्थायी कमीशन मिलेगा। स्थाई कमीशन मिलने से पूर्व महिलाओं की सेना में एंट्री शार्ट सर्विस कमीशन (एस.एस.सी.) के अंतर्गत होती थी, जिसमें महिला अधिकारी केवल 14 वर्ष तक ही नौकरी कर सकतीं थीं और उन्हें पेंशन भी नहीं मिलती थी। पेंशन न के लिए 20 साल की नौकरी आवश्यक थी। पेंशन मिलने के कारण महिला कर्मचारियों को रिटायर्ड होने के बाद रोजगार की समस्या पैदा हो जाती थी, अब स्थाई कमीशन मिलने से महिलाओं को पेंशनों का लाभ मिलेगा। फिर ही महिलाएं सेना की नौकरी के लिए उत्साहित होंगी।
वास्तव में यह फैसले सरकारों द्वारा कई दशक पहले लिए जाने चाहिए थे, सरकारें 2010 से ही इस फैसले में बाधक बन रही थीं। जब महिला हर क्षेत्र में पुरूषों के सामान या पुरूष से अधिक काम कर सकतीं हैं तब फिर उनसे भेदभाव क्यों? शिक्षा, विज्ञान, खेल, मेडिकल, इंजीनियरिंग कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं जहां महिलाओं को सफलता न मिली हो। कई अंतरराष्ट्रीय स्तर की कंपनियों की जिम्मेदारी भी महिलाएं ही संभाल रही हैं। शासन-प्रशासन में महिलाओं की भूमिका सराहनीय रही है। सेना की दस स्ट्रीमों में महिलाओं को स्थाई कमीशन देकर अदालतों ने न केवल महिलाओं को उनका अधिकार दिया है बल्कि उनका सम्मान भी बढ़ाया है। यह कथन बिल्कुल सच है कि आर्थिक समानता के बिना सामाजिक समानता की कल्पना नहीं की जा सकती। जब महिलाएं तरक्की करेंगी तब पूरा समाज तरक्की करेगा। जागरूक व अधिकार प्राप्त महिला पूरे परिवार को जागरूक करती हैं। आधुनिक भारत की तस्वीर महिला को अधिकार दिलवाने के बिना संपूर्ण नहीं हो सकती। पंजाब सहित कई राज्यों ने स्थानीय निकाय चुनावों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित रखी हैं। विधान सभाओं और संसद में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का मामला तीन दशकों से लटकता आ रहा है। राजनीतिक पार्टियों को इस मामले में भी पार्टी हित छोड़कर महिलाओं के अधिकारों को बहाल करना चाहिए।
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