केंद्र सरकार ने निजीकरण के तहत 151 नई ट्रेनें चलाने का निर्णय लिया है और इस प्रोजैक्ट के मुकम्मल होने संबंधी समय भी तय कर दिया है। सन 2023 तक 12 ट्रेनें और 2024 तक 45 ट्रेनें चलेंगी। 2027 तक 151 ट्रेनों को चलाने का काम मुकम्मल हो जाएगा। इससे पूर्व तेजस के नाम पर दिल्ली-लखनऊ और मुंबई-अहमदाबाद रूट पर दो गाड़ियां निजीकरण के तहत चल रही हैं। रेलवे के निजीकरण का रेलवे कर्मचारियों और राजनीतिक दलों द्वारा विरोध किया जा रहा है। नि:संदेह प्राईवेट क्षेत्र सुविधाओं व गुणवत्ता के मामले में निजी कंपनियों का रिकार्ड बेहतर रहा है फिर भी निजीकरण की अलोचना करने वालों के अपने तर्क हैं।
वास्तव में निजीकरण के परिणाम मिले-जुले ही रहे हैं। निजीकरण से जहां सेवाओं में बदलाव आएगा वहीं कंपनियों द्वारा वसूले जा रहे पैसे पर भी किंतु-परंतु होता रहा है, विशेष रूप से बिजली सैक्टर में निजीकरण का अनुभव बिजली के रेट मामले में बेहद बुरा रहा है। पंजाब में निजी थर्मल प्लांटों के कारण बिजली उत्पादन बढ़ा है लेकिन उपभोक्ताओं को बिजली देश भर से महंगी मिल रही है। उपभोक्ताओं की जेब पर भारी बोझ पड़ा है। इस बार के चुनावों में पंजाब में यह मुद्दा पूरा गर्म रहेगा। दरअसल सारा पेच सरकार और निजी कंपनियों के समझौते के बीच फंसा होता है। निजी कंपनियां अपने मुनाफे के लिए समझौते को अपने समर्थन में करने में सफल हो जाती हैं। निजी सेक्टर भ्रष्टाचार की चाबी को घुमाना भी अच्छी तरह जानता है जिसका नुक्सान आम जनता को भुगतना पड़ता है। नि:संदेह रेलवे मौजूदा समय में भारी सुधार की मांग करता है। रेलवे को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाना होगा तब देश के हालातों के मुताबिक निजीकरण के बिना यह किसी भी तरह संभव नहीं।
आवश्यकता इस बात की है कि समझौते से पहले सरकार जिस प्रकार अपने नियंत्रण और लोक हितों की सुरक्षा के दावे करती है बाद में वह नजर नहीं आते। रेलवे में भी कहा जा रहा है कि निजी रेल गाड़ियों के स्टाफ की भर्ती भी रेलवे विभाग करेगा। यह दावा निजीकरण के भय को समाप्त करता है, लेकिन निजीकरण के विरोधी नाम मात्र बताते हैं। भले ही विश्व आर्थिकता निजीकरण की बड़ी आवश्यकता के रूप में स्थापित हो चुका है लेकिन सरकार को इसके दुष्प्रभावों के प्रति सावधान रहना होगा। गुणवत्ता के नाम पर यह लोगों के लिए सुविधा बने न कि वित्तीय बोझ।
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