नयी दिल्ली। मधुमेह के उपचार के लिए रामबाण माने जाने वाले जामुन ने इस साल जलवायु परिवर्तन के प्रकोप के कारण लोगों को निराश किया है। इस बार जामुन की फसल बहुत से स्थानों पर अच्छी नहीं हुई , कहीं-कहीं पर तो एक भी फल नहीं आया। वैसे भी जामुन सभी जलवायु में समान रूप से नहीं फलते हैं । कहीं फसल अच्छी होती है और कहीं बिल्कुल भी फल नहीं आते हैं। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के अनुसार जलवायु परिवर्तन का असर जामुन के फसल पर इस बार पड़ा । जनवरी से लगातार हो रही बारिश ने अधिकतर पेड़ों में फूल की जगह पत्तियों वाली टहनियों को प्रेरित किया। आमतौर पर जाड़े का मौसम कुछ ही दिन में खत्म हो जाता है। मौसम के आंकड़ों के आधार पर जाड़े की ऋतु के बाद तुरंत तापमान के बढ़ जाने से जामुन में बहुत से स्थान पर फूल नहीं आए।
सावंतवाड़ी जो कि कोंकण क्षेत्र में स्थित है, जामुन के लिए मशहूर है परंतु इस वर्ष किसानों को फल ना लगने से परेशानी का सामना करना पड़ा । बहुत से नए उद्यमी जिन्होंने जामुन के संबंधित पदार्थ बनाने में प्रवीणता हासिल की है , फल उपलब्ध न होने के कारण काफी हताश हुए । जलवायु परिवर्तन का जामुन के उत्पादन पर एक विशेष प्रभाव देखा गया । जब पेड़ों पर फूल आते हैं, उस समय पत्तियां निकली परिणामस्वरूप उपज बहुत कम हो गई । औषधीय गुणों के कारण जामुन की बढ़ती लोकप्रियता से बाजार में इसके फलों की मांग बढ़ती जा रही है और अधिक लाभ के कारण किसान इसके नए बाग लगा रहे है। चार दशक पहले किसी ने सोचा भी नहीं था कि जामुन की व्यावसायिक खेती होने लगेगी और बाग कलमी पौधों के होंगे।
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