अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में भारी कमी के बाद भी देश में पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोतरी जारी है। देश में तेल की कीमतें साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। वहीं पेट्रोल डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी ने नया रिकार्ड तब बना डाला जब आश्चर्यजनक रूप से डीजल की कीमतें पेट्रोल की कीमतों का पार कर गई। अमूमन डीजल की कीमत पेट्रोल से कम होती है।
शायद ये इतिहास में पहली बार ही हुआ है जब डीजल पेट्रोल से ज्यादा दाम पर बिका। गत 7 जून के बाद से जहां डीजल के दाम लगातार 22 दिनों तक बढ़े हैं। वहीं पेट्रोल के दाम 21 दिन बढ़े हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ने के साथ महंगाई भी बढ़ने का खतरा है। कीमतों में यह बढ़ोतरी अगले कुछ दिनों तक और जारी रह सकती है। डीजल मूल्य वृद्धि से माल परिवहन की दर बढ़ेगी तो बाजार में रोजमर्रा की आवश्यकता की वस्तुयें भी मंहगी होना लाजिमी है। फिलवक्त तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का प्रमुख कारण केंद्र सरकार द्वारा पिछले महीने उत्पाद शुल्क में वृद्धि करना माना जा रहा है।
पेट्रोल और डीजल के बढते दामों की आंच अब किचन तक भी पहुंच चुकी है। सब्जियों में महंगाई का तडका लग चुका हैं और अब सब्जियां महंगी होती जा रही हैं। इसका सीधा असर मध्यम वर्ग पर ही पडने वाला है। निम्न वर्ग को तो सरकार नकद के साथ गैस सिलेंडर और राशन अब भी दे रही है। मध्यम वर्ग को अब भी ठेंगा दिखाया जा रहा है। डीजल के दामों में आई तेजी निश्चित तौर पर मंहगाई को बढ़ाने का काम करेगी। और इसका असर जमीन पर भी दिखाई देने लगा है। पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोतरी से न केवल आम उपभोक्ता को बल्कि ट्रांसपोर्ट यूनियन भी नाखुश नजर आ रही हैं। वह पहले से ही कोरोना महामारी के कारण आर्थिक परेशानी से जूझ रहे हैं। डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ने से सिर्फ आम आदमी ही नहीं परेशान है, बल्कि पूरी आर्थिक गतिविधियां डगमगा रही हैं। तेल के दाम बढ़ने से ढुलाई महंगी हो गयी है, नतीजतन रोजमर्रा की जरूरत की हर चीज के दाम बढ़ गये हैं।
नियमानुसार प्रतिदिन सुबह छह बजे पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बदलाव होता है। सुबह छह बजे से ही नई दरें लागू हो जाती हैं। पेट्रोल व डीजल के दाम में एक्साइज ड्यूटी, डीलर कमीशन और अन्य चीजें जोड़ने के बाद इसका दाम लगभग दोगुना हो जाता है। विदेशी मुद्रा दरों के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतें क्या हैं… इस आधार पर रोज पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बदलाव होता है। इन्हीं मानकों के आधार पर पर पेट्रोल रेट और डीजल रेट रोज तय करने का काम तेल कंपनियां करती हैं। ऐसे में एक बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि आखिर पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ क्यों रही हैं, जबकि कच्चे तेल की कीमतें भी काफी हद तक घट गई हैं।
बाजार के जानकारों के मुताबिक तेल कंपनियों ने भारत में पेट्रोल-डीजल के भाव तब बढ़ाने शुरू किए जब कच्चा तेल काफी नीचे 19 डॉलर प्रति बैरल के आसपास था। तो अब कच्चे तेल का रेट बढ़ रहा है. ब्रेंट क्रूड 40 डॉलर प्रति बैरल के आसपास पहुंच गया है। तेल कंपनियों के पास जो इन्वेंट्री है उसमें भी उन्हें नुकसान हो रहा है। मांग कम हो गई है और उनके मार्जिन माइनस में आ गए हैं। तो वे इस नुक्सान की भरपाई अपना मार्जिन बढ़ाकर करेंगी। एक्साइज ड्यूटी में सरकार ने करीब 13 रुपये तक की बढ़त कर दी है। इसका भी पूरा बोझ अभी ग्राहकों पर नहीं डाला गया है। ऐसे में स्वाभाविक है कि आगे रेट और बढ़ाने पड़ेंगे. यही गति जारी रही तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी पेट्रोल-डीजल की कीमत 100 रुपये प्रति लीटर को पार कर जाए।
कुछ ही महीने पहले केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी में बढ़ोतरी की थी। सरकार ने पेट्रोल पर 10 रुपये और डीजल पर 13 रुपए एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई थी। इसमें से 8 रुपये रोड और इंफ्रास्ट्रक्चर सेस है। तेल कंपनियां डीजल-पेट्रोल की कीमतें लगातार बढ़ाकर इस एक्साइज ड्यूटी का भार भी ग्राहकों पर डालना चाहती हैं। मौजूदा समय में पेट्रोल पर 32.98 रुपए प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी लग रही है, जबकि 31.83 रुपए प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी डीजल पर लग रही है। पेट्रोल-डीजल की कीमत में 64 फीसदी हिस्सा यानी करीब 50.69 रुपये प्रति लीटर ग्राहक टैक्स के तौर पर चुका रहे हैं। पेट्रोल पर केंद्र का उत्पाद शुल्क 32.98 रुपये और 17.71 रुपये राज्यों के बिक्री कर का है। डीजल पर टैक्स कीमत का 63 फीसदी यानी करीब 49.43 रुपये प्रति लीटर है। इसमें 31.83 रुपये केंद्रीय उत्पाद शुल्क और 17.60 रुपये राज्यों का वैट है।
डीजल मूल्यवृद्धि का सीधा असर मध्यम वर्ग पर पड़ रहा है। पेट्रोलियम मूल्य वृद्धि से नौकरीपेशा मध्यम वर्ग को भी अपना निजी वाहन चलाने में परेशानी हो रही है। पर कोरोना वायरस संक्रमण की दहशत से मध्यम वर्ग सार्वजनिक परिवहन सेवा का उपयोग नहीं कर पा रहा और मजबूरी में इस वर्ग को अपने निजी वाहन से ही कार्यस्थल पर आना जाना पड़ रहा है। जो मंहगा साबित हो रहा है। वहीं कोरोना वायरस की वजह से देश में लॉकडाउन चल रहा था। भले ही इस दौरान पेट्रोल पंप खुले थे, लेकिन कर्फ्यू जैसे हालात होने की वजह से लोग सड़कों पर नहीं निकल पा रहे थे, जिसके चलते डीजल-पेट्रोल की मांग बहुत कम रही। अब जब अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
तो पेट्रोल पंप अपने सारे नुकसान की भरपाई करने में लगी हुई हैं। ये एक बड़ी वजह है, जिसके चलते कंपनियां हर रोज डीजल-पेट्रोल की कीमतें बढ़ाती ही जा रही हैं। देखा जाए तो दोषी तेल कंपनियां ही हैं, जो लगातार डीजल-पेट्रोल की कीमतें बढ़ाकर अपना मुनाफा बढ़ा रही हैं। हालांकि, कांग्रेस विरोध प्रदर्शन करते हुए मोदी सरकार पर दबाव बनाना चाहती है, ताकि वह एक्साइज ड्यूटी कम करे, जिससे डीजल-पेट्रोल की कीमतें खुद ही कम हो जाएंगी। लॉकडाउन में हुए घाटे और जीएसटी कलेक्शन में हुई कमी के मद्देनजर ऐसी किसी भी संभावना के बारे में सोचना भी बेवकूफी ही होगा।
विशेषज्ञों के अनुसार अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 40 डॉलर प्रति बैरल के आसपास चल रहा है। इसमें और बड़ी कमी की उम्मीद नहीं है। भारतीय बास्केट में कच्चे तेल की औसत कीमत 60 से 65 डॉलर के आसपास रही है। उससे मौजूदा दर बहुत ही कम है। ऐसे कच्चे तेल में बड़ी कमी की आगे कोई संभावना नहीं है। ऐसे में अगर पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत से आम जनता को राहत देना तो सरकार को उत्पाद शुल्क और वैट में कटौती करनी होगी। ऐेसे में ये मान कर चलिए की पेट्रोल-डीजल की कीमतें ऐतिहासिक ऊंचाई की ओर बढ़ने की वजह से अगले दिनों में महंगाई का तगड़ा झटका जनता को लगने वाला है।
खासकर डीजल का रेट बढ़ना ज्यादा नुकसानदेह है। भारत में डीजल का इस्तेमाल कृषि, ट्रांसपोर्ट जैसे जरूरी काम में किया जाता है। डीजल के रेट बढ़ने से कृषि पैदावार के रेट बढ़ेंगे और तमाम सामान की ढुलाई भी बढ़ जाएगी। ट्रकों का भाड़ा बढ़ जाएगा. इसकी वजह से महंगाई बढ़ने के पूरे आसार हैं। आने वाले समय में आम आदमी की जेब और कटने वाली है। कुल मिलाकर आम आदमी की मुश्किलें कम होने की बजाय आने वाले दिनों में बढ़ने वाली हैं।