टेली मेडिसिन में हरियाणा का कमजोर प्रदर्शन
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1 मई को प्रदेश में शुरू हुई थी टेलीमेडिसिन
सच कहूँ/अश्वनी चावला चंडीगढ़। कोरोना काल में घर बैठे स्वास्थ्य सेवाओं जैसी सुविधाएं देने के लिए प्रदेश में शुरू की गई टेली मेडिसन खुद खस्ता हालात से गुजरती नजर आ रही है। हालांकि जब टेली मेडिसिन की शुरूआत की गई थी उस समय यह कहा जा रहा था कि यह लोगों के लिए वरदान साबित होगी और घर बैठे ही लोग इसका फायदा उठाते हुए इलाज ले सकेंगे, परंतु पिछले 60 दिनों में ऐसा कुछ भी होता हुआ नजर नहीं आ रहा है। भारी भरकम डॉक्टरों की टीम टेली मेडिसिन के लिए तैयार करने के पश्चात भी मात्र 7 लोग ही इस टेली मेडिसिन का फायदा उठा पा रहे हैं। गौरतलब है कि कोरोना वायरस के चलते देशभर में लॉक डाउन होने के कारण सभी सरकारी व गैर सरकारी अस्पतालों में ओपीडी बन्द करने की नौबत रही। सरकारी अस्पतालों में तो मात्र इमरजेंसी केस को ही डील जा रहा है। ऐसे में कई प्रकार की गंभीर बीमारियों व रूटीन की होने वाली बीमारियों का इलाज आम जन तक पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से टेली मेडिसिन की शुरूआत की गई थी, जिसके तहत सभी प्रदेश सरकारों को भी इस टेली मेडिसिन के जरिए लोगों को इलाज की सुविधा देनी थी। जिसके तहत हरियाणा में भी 1 मई को टेलीमेडिसिन की शुरूआत की गई और उम्मीद जताई जा रही थी कि प्रदेश बड़े स्तर पर लोग इस टेली मेडिसिन का फायदा उठाते हुए डॉक्टरी सहायता ले पाएंगे, परंतु यह उम्मीद खरी उतरती नजर नहीं आ रही है क्योंकि इन 60 दिनों में मात्र 405 लोगों ने ही टेली मेडिसन का फायदा उठाया है।
क्या है टेली मेडिसिन?
टेली मेडिसिन ऑनलाइन डॉक्टरी सहायता देने वाली एक प्रक्रिया है। इस का फायदा लेने के लिए इ-संजीवनी वेबसाइट पर जाने के पश्चात कोई भी व्यक्ति अपने मोबाइल के जरिए अपने प्रदेश के डॉक्टरों से संपर्क कर सकता है। जिसके तहत डॉक्टर वीडियो कॉल के साथ जोड़ते हुए मरीज से मेडिकल हिस्ट्री पूछने के पश्चात वहीं पर ओपीडी मेडिसन कार्ड जनरेट करते हुए मरीज को भेज देते हैं। जिस पर लिखी हुई दवाओं को कहीं से भी लेकर मरीज अपनी बीमारी का इलाज करवा सकता है।
प्रचार नहीं कर रही प्रदेश सरकार
इ-संजीवनी के जरिए मिलने वाली टेली मेडिसिन का सही प्रकार से हरियाणा सरकार प्रचार ही नहीं कर पाई है। जिसके कारण प्रदेश के लोगों को इस सुविधा की जानकारी नहीं मिल रही है। जिस कारण कोरोना वायरस के काल में भी प्रदेशभर में लोग जरूरत पड़ने पर अस्पताल में इलाज के लिये धक्के खाने को मजबूर हैं।
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