चीन लद्दाख में अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की भारतीय प्रक्रिया का प्रयोग कर रहा है क्योंकि इससे चीन-पाकिस्तान आर्थिक परियोजना प्रभावित होगी। दूसरा, चीन इस बात से भी परेशान है कि भारत के नए नक्शे में गिलगित, बाल्टिस्तान और अक्सई चिन को लद्दाख की सीमा दर्शाया गया है। अब अरूणाचल प्रदेश की तरह लद्दाख भी पूरी तरह भारत के साथ एकीकृत हो जाएगा। साथ ही चीन भारत को परेशान करने के लिए नेपाल में अपनी पिट्ठू सरकार बैठा रहा है। भारत सरकार गलवान घटना को नजरंदाज भी कर दे किंतु चीन का यह कदम भारत के प्रति उसकी चाल को दशार्ता है।
डॉ. जैकिल या मि. हाइड? दोनों। वास्तव में भारत और चीन के संबंध अच्छे-बुरे दोनों हैं। मानव प्रवृति का दोगलापन या भू-रणनीतिक नीतियां जिनमें मानवीय भावनाओं का कोई स्थान नहीं होता है और जब कोई राष्ट्र अपनी योजना, रणनीति बनाता है तो वह इन बातों का ध्यान रखता है। भारत और चीन दोनों यही कर रहे हैं और दोनों का संदेश है मेरे मामले में हस्तक्षेप मत करो। 15-16 जून की रात को गलवान घाटी में निर्मम हमले में 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए। यह 1967 में नाथूला में दोनों सेनाओं के बीच हुए सबसे बडे टकराव के बाद का सबसे बड़ा संघर्ष है और इससे भारत और चीन दोनों युद्ध के कगार पर पहुंच गए हैं। यह तब हुुआ जब 5 मई को दोनों देशों के बीच चीनी अतिक्रमण को लेकर समझौता हो गया था और यह हमला पूर्व नियोजित था और इसमें चीन के वरिष्ठ नेतृत्व की सांठगांठ भी थी। जिसके बाद भारत ने अपनी सीमा पर शांति बनाए रखने की सीमा प्रबंधन नीति में निर्णायक बदलाव किया।
दोनों देशों के बीच 3488 किमी लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा है। भारत और चीन दोनों एक दूसरे पर वास्तविक नियंत्रण रेखा के अतिक्रमण का अरोप लगा रहे हैं किंतु दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा विवादास्पद है और यह निर्धारित नहीं है। किंतु इसे भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा की तरह संघर्ष का केन्द्र नहीं माना जाता था और अब तक दोनों देश ऐसी स्थिति से बचते रहे हैं जिससे सशस्त्र टकराव न हो। गलवान संघर्ष से दोनों देशों के बीच संबंधों में असहजता पैदा हुई है। भारत नें पेंगोंग झील, ट्रिग हाईट्स, बु्रटसे और डोलेटांगो क्षेत्र में भी चीनी अतिक्रमण की शिकायत की है। प्रश्न उठता है कि क्या यह खुफिया तंत्र की विफलता थी। क्या पेंगोंग झील में चीन द्वारा फिंगर 4 से 8 के बीच कब्जा करने को रोका जा सकता था? भारत के पास क्या विकल्प है और वर्तमान में चीन की वर्चस्ववादी सोच को देखते हुए लगता है कि भविष्य में इसके आक्रामक परिणाम निकलेंगे।
दोनों देशें के बीच 1962 के युद्ध के अलावा 1975 के बाद सीमा पर एक भी गोली नहीं चली है। इस बीच दोनों देशों की सेनाओं में सीमा पर टकराव हुआ किंतु वह शांतिपूर्ण सुलझ गया। 2017 में डोकलाम में दोनों देशों की सेनाओं के बीच 73 दिन तक गतिरोध चला और उस समय यह माना जा रहा था कि एशिया के इन दोनों देशों के बीच युद्ध हो सकता है जिससे इस उपमहाद्वीप और इस क्षेत्र की स्थिरता प्रभावित हो सकती थी। भारत कराकोरम राजमार्ग तक अपने सैनिकों की पहुंच बढाने का प्रयास कर रहा है जो पाकिस्तान और चीन के लिए रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है और इसलिए चीन उसका विरोध कर रहा है। भारत को इस समस्या को विवेकपूर्वक हल करना होगा। गलवान संघर्ष बताता है कि चीन भारत-चीन सीमा को अपने लाभ के अनुकूल निर्धारित करना चाहता है। किंतु वह स्थिति को अस्पष्ट रखना चाहता है ताकि वह अपनी सलामी स्लाइसिंग योजना के अंतर्गत भारतीय भूभाग पर कब्जा करता रहे। पहले कदम के रूप में भारत ने आर्थिक हमला कर दिया है। भारत ने चीनी निवेश के लिए स्वत: मंजूरी की प्रक्रिया को बदल दिया है और सोशल मीडिया में लोग मांग कर रहे हैं कि चीनी सामान का बहिष्कार किया जाए।
कुछ लोगों को आशंका है कि क्या भारत और चीन के भावी संबंध सुचारू बने रहेंगे क्योंकि गत दशक में सीमा पर तनाव बढ़ा है। आर्थिक संबंधों में भी संतुलन नहीं है। भारत को भारी व्यापार घाटा है। एक ओर भारत स्वयं को वैकल्पिक विश्व व्यापार केन्द्र बनाना चहता है। दूसरी ओर लोग जानते हैं चीनी निवेश आवश्यक है और इसलिए चीन के साथ टकराव नहीं होना चाहिए। इसलिए इन प्रतिस्पर्धी और विरोधाभासी आवश्यकताओं के बीच तनाव गहरा हो गया है और इस तनाव को दूर करना होगा क्योंकि इसका प्रभाव दोनों देशों पर पड़ेगा। भारत-चीन जटिल संबंधों के बारे में कोई भ्रम नहीं है।
चीन की वर्चस्वादी महत्वाकांक्षा एक गंभीर समस्या है इसलिए उसके साथ निरंतर वार्ता होनी चाहिए। इस बात के लिए दबाव पडेगा कि चीन के साथ पहले जैसे व्यापारिक संबंध न रखे जाएं। हमें संबंधों को सामान्य बनाने के साथ-साथ राष्ट्रीय हितों को भी ध्यान में रखना होगा और इसके लिए हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि वास्तविकता बदल गयी है। चीन आज उसी भाषा का प्रयोग कर रहा है जिसका प्रयोग वह 1962 में किया करता था। 1962 का हमला नेहरू का अपमान था। 2020 के हमले ने मोदी को बदनाम किया है। चीन की आदत है कि वह सीमा पर तनाव बनाए रखता है और अनिश्चितता की स्थिति बनाए रखता है जिससे दोनों पक्षों को यह पता नहीं है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा कहां है और इस बारे में दोनों की अलग अलग धारणाएं हैं। किंतु गलवान की घटना ने बता दिया है कि अब भारत पर 1962 जैसी दादागिरी नहीं की जा सकती है।
चीन लद्दाख में अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की भारतीय प्रक्रिया का प्रयोग कर रहा है क्योंकि इससे चीन-पाकिस्तान आर्थिक परियोजना प्रभावित होगी। दूसरा, चीन इस बात से भी परेशान है कि भारत के नए नक्शे में गिलगित, बाल्टिस्तान और अक्सई चिन को लद्दाख की सीमा दर्शाया गया है। अब अरूणाचल प्रदेश की तरह लद्दाख भी पूरी तरह भारत के साथ एकीकृत हो जाएगा। साथ ही चीन भारत को परेशान करने के लिए नेपाल में अपनी पिट्ठू सरकार बैठा रहा है। भारत सरकार गलवान घटना को नजरंदाज भी कर दे किंतु चीन का यह कदम भारत के प्रति उसकी चाल को दशार्ता है। इसलिए यह देखना होगा कि क्या यह हमला 2013 के डेपसांग, 2014 के चुमूर और 2017 के डोकलाम की तरह नहीं होगा क्योंकि इन हमलों से भारत-चीन संबंध अस्थायी रूप से प्रभावित हुए थे। आज अनिश्चितता का वातावरण बना हुआ है। चीन का मुकाबला करने के लिए भारत को कूटनयिक, आर्थिक और सैनिक प्रतिरोधक क्षमता अर्जित करनी होगी। पिछले सात दशकों से जिस सीमा का निर्धारण नहीं हुआ उसके बारे में कदम उठाने होंगे। भारत को अपनी चीन नीति को बदलते समय आवश्यकताओं के अनुसार बदलना होगा और वास्तविक नियंत्रण रेखा को परिभाषित करना होगा।
वर्तमान में भारत के पास अधिक विकल्प नहीं हैं। एक विकल्प यह है कि सीमा विवाद का समाधान किया जाए जिसकी फिलहाल कोई संभावना नहीं है। चीनी सेना भारत को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से पीछे धकेलना चाहती है ताकि इस क्षेत्र में उसका वर्चस्व बना रहे। भारत को संतुलन बनाकर चीन को उसी के खेल में हराना होगा और उसके लिए हमें समुचित प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करना होगा। भारत को आक्रामक रूख अपनाना होगा। जब चीन को प्रतिरोध का भय होगा तो फिर वह ऐसी हरकतें नहीं करेगा। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि कि वास्तविक नियंत्रण रेखा दोनों देशों के बीच सीमा को निर्धारित करने का संभावित उपाय हो सकती है। आरंभ में दोनों इस बात से सहमत थे किंतु मध्य सेक्टर के मानचित्रों के आदान-प्रदान के बाद नियंत्रणा रेखा पर तीन विवादास्पद क्षेत्र मिले और फिर चीन ने इसमें कोई रूचि नहीं दिखायी। इसलिए जब तक संबंध में कोई सफलता नहीं मिलती तब तक भारतीय और चीनी सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर एक दूसरे के सामने खड़े रहेंगे।
अतीत में भारतीय सेना को धमकाने की आदत पड़ चुकी चीनी सेना उस समय चकित रह गयी होगी कि 2020 का भारत 1962 का भारत नहीं है और वह तुरंत तथा दृढ़ता से उसका मुकाबला कर सकता है। हमें अपनी क्षमता को बढाना होगा। आज भारत-चीन संबंध ठंडे पड़ गए हैं। दोनों देशों में अविश्वास है। फिर भी दोनों ने वार्ता को नहीं छोड़ा है हालांकि दोनों अपने-अपने रूख पर कायम हैं। भारत राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक हितों को नजरंदाज नहीं कर सकता है। मोदी जानते है कि आज की भूरणनीतिक, राजनीतिक वास्तविकता राष्ट्रीय राजनीति को निर्देशित करते हैं। भारत को व्यापक और बहुकोणीय रणनीति अपनानी होगी।
हालांकि भारत चीन के साथ स्थायी शांति चाहता है किंतु केवल वह इसकी गारंटी नहीं दे सकता है। भारत के नए रूख के लिए विेवेक, परिपक्वता और संयम की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित हो कि चीन-भारत संबंध भारत के नियंत्रण में रहे। इस शून्य काटा के खेल में तब तक बल का प्रदर्शन होता रहेगा जब तक दोनों देशों के बीच विश्वास कायम नहीं होता है। दीर्घकाल में भारत-चीन संबंध भारत के क्षेत्रीय और वैश्विक रणनीतिक लक्ष्यों और उद्देश्यों द्वारा निर्धारित होंगे। चीन ऐसी हरकतों को नया नियम बनाना चाहता है हालांकि इन हरकतों के विरुद्ध प्रतिक्रिया और लक्ष्मण रेखा इस उपमहाद्वीप में शांति की गारंटी होगी। खेल के नियम बदलकर भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि ताली एक हाथ से नहीं बजायी जाती है।
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