कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन इन दिनों देश में चल रहा है। चूंकि इस लॉकडाउन में काफी रियायतें दी गई हैं इसलिए इसे अनलॉक-1 का नाम दिया गया है। बाजार, मॉल व धार्मिक स्थल खुलने के बाद स्कूल-कॉलेज खोलने की बात कही जाने लगी। लॉकडाउन का सीधा असर शैक्षणिक संस्थानों पर भी पड़ा। दसवीं और बारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों की परीक्षाएं बीच में छूट गई। वहीं स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय के दरवाजे बंद होने से शैक्षणिक सत्र प्रभावित हुआ। इस बीच देश में अधिकांश स्कूलों ने आॅनलाइन क्लासेज शुरू कर दी है। हालांकि, स्कूल न खुलने की वजह से स्टूडेंट्स को स्टडी का पारंपरिक माहौल नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में पैरेंट्स की चिंता बढ़ने लगी है।
वहीं केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश निशंक पोखरियाल ने सभी कयासों को विराम लगाते हुए एलान किया है कि कोरोना संक्रमण के दौरान हम स्कूल-कॉलेजों को खोलने का रिस्क नहीं ले सकते हैं। इसलिये हालात को देखते हुए 15 अगस्त के बाद ही इस दिशा में कोई फैसला लिया जाएगा। साथ ही उन्होंने उम्मीद भी जताई कि संभवत: 15 अगस्त के बाद स्कूल और कॉलेज नियमित तौर पर खुल सकेंगे।
वास्तव में जब देश में कोरोना संक्रमितों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है तो अभिभावकों का अपने बच्चों को लेकर चिंतित होना स्वाभाविक है। इन हालातों में शैक्षणिक संस्थान खोले जाए या नहीं, इसको लेकर सोशल मीडिया के मंच पर समाज दो भागों में बंट गया था। सोशल मीडिया पर तो बाकायदा इस बारे में आभियान भी चल पड़ा। वास्तव में जिनके बच्चे प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं में पढ़ते हैं, वे अभिभावक काफी चिंतित थे। पीएम मोदी ने 25 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी। तब से सभी स्कूल,कॉलेज अनिश्चितकाल के लिए बंद हैं। देश भर के लगभग 33 करोड़ छात्र फिलहाल पूरी तरह भ्रम में थे। और इससे संबंधित संदेह को दूर करने के लिए स्कूलों के फिर से खुलने की खबरों का इंतजार कर रहे थे। केंद्रीय मंत्री के बयान के बाद से तमाम तरह के कयासों और आंशकाओं पर विराम लगा है।
वैसे तो देश के कई स्कूल आॅन लाइन पढ़ाई करवा रहे हैं। लेकिन तमाम स्कूल ऐसे भी हैं जो सुविधा सम्पन्न नहीं हैं, ऐसे में वो आॅनलाइन पढ़ाई करवा पाने में असमर्थ हैं। वैसे भी आॅनलइन पढ़ाई के लिए बच्चों के पास भी तो मोबाईल और लैपटॉप की व्यवस्था होना जरूरी है। जब भारत में केवल 24 फीसदी घरों तक ही इंटरनेट की उपलब्धता है तो आॅनलाइन शिक्षा की सार्थकता पर स्वयं सवाल उठ जाते हैं।
ऐसे में आॅनलाइन शिक्षा से वंचित छात्रों के अभिवावकों का चिंतित होना स्वाभाविक है। असल में स्कूल प्रबंधन चाह रहा है कि लॉकडाउन के दौरान बच्चे शिक्षा से विमुख न हों। वो नयी क्लास के हिसाब से अपना पाठयक्रम पढ़ें। आॅनलाइन पढ़ाई में कई व्यवाहारिक दिक्कतें भी हैं, लेकिन लॉकडाउन में जब स्कूल खोलना खतरे से खाली नहीं है, ऐसे में आॅनलाइन क्लास ही बड़ा सहारा है।
विशेषज्ञों और मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है उसके अनुसार तो कोरोना का असर आगामी कुछ महीनों तक रहने वाला है। ऐसे में जब तक ये सुनिश्चित नहीं हो जाता कि संक्रमण का प्रसार रुक गया है तब तक छोटे बच्चों को घर से बाहर भेजना खतरे से खाली नहीं होगा। सवाल ये है कि उनकी पढ़ाई का क्या होगा तो इसका सीधा जवाब है कि देश के भविष्य को सही-सलामत रखना सबसे बड़ी प्राथमिकता है। जहां तक बात पाठ्यक्रम के पूरी होने की है तो उसको इस तरह नए सिरे से निर्धारित किया जाए जिससे कुछ हिस्सा अगले वर्ष में जोड़ा जा सके।
क्योंकि अगस्त में भी यदि सत्र शुरू नहीं हो सका तब पाठ्यक्रम पूरा करना संभव नहीं होगा। जहाँ तक बात शून्य वर्ष मानकर प्राथमिक और माध्यमिक स्तर तक के विद्यार्थियों को बिना परीक्षा अगली कक्षा में पदोन्नत कर देने की है तो आपातकालीन व्यवस्था के कारण वैसा करना जरूरी है किन्तु इस स्तर पर बच्चों की बुनियाद कमजोर न हो इसका ध्यान भी रखना होगा।
कोरोना काल में चूंकि सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया है इसलिए शिक्षा व्यवस्था भी अछूती नहीं रह सकती। लेकिन विद्यार्थियों की जीवन रक्षा सबसे ज्यादा जरूरी है और उसके लिए पूरा शैक्षणिक सत्र भी यदि रद्द करना पड़े तो संकोच नहीं करना चाहिए। हां, एक बात जरुर है कि निजी शिक्षा संस्थान अभिभावकों पर दबाव बनाकर जो शुल्क वसूल कर रहे हैं उस बारे में जरुर कोई समाधान निकालना होगा। निजी स्कूलों ने अभिभावकों पर नयी पुस्तकें खरीदने और फिर फीस जमा करने के लिए नोटिस जारी कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर भी अभिभावकों के द्वारा फीस का विरोध किया जा रहा है। मानव एवं संसाधन विकास मंत्रालय को यह विषय गंभीरता से लेना चाहिए। ये बात सही है कि संस्थान के प्रबन्धन को भी वेतन सहित अन्य खर्चे वहन करना पड़ रहे हैं किन्तु विद्यालय या महाविद्यालय में शिक्षण कार्य नहीं होने से काफी खर्च घटे भी होंगे। सरकार को समन्वय स्थापित करते हुए दोनों पक्षों के आर्थिक हित सुरक्षित रखने संबंधी प्रबंध करना चाहिए। असल में अर्थव्यवस्था के साथ ही देश के शैक्षणिक कैलेंडर का भी बड़ा महत्व है क्योंकि भविष्य का पूरा नियोजन शिक्षा संस्थानों से निकले युवाओं पर ही निर्भर है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मानव संसाधन विकास मंत्रालय फिलहाल स्कूलों को खोलने की जल्दी में कतई नहीं है। मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक फिलहाल 1 से 15 जुलाई के बीच 10वीं और 12वीं कक्षा की शेष रह गई बोर्ड परीक्षाएं करवाने की तैयारी की जा रही है। परीक्षाओं के उपरांत पहली प्राथमिकता 10वीं और 12वीं के नतीजे घोषित करना है। इसके बाद ही स्कूल कॉलेजों को खोलने की प्रक्रिया आरंभ की जा सकेगी। केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री ने 15 अगस्त के बाद की तारीख बताकर अनिश्चितता तो फिलहाल दूर कर दी लेकिन सत्र जब भी शुरू हो तब आगे की व्यवस्था सुचारू रूप से चल सके इस बात पर भी अभी से ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
स्कूल खुलने के बाद स्कूल और कॉलेज प्रशासन के सामने सबसे बड़ा जोखिम सोशल डिस्टेंसिंग को मेनटेन रखना होगा, क्योंकि इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन अनिवार्य रूप से करना होगा। भीड़ को काम करने के लिए कक्षा का संचालन में भी सावधानी बरतनी में होगी। जब भी स्कूल और कॉलेज खुल जाएंगे तो ऐसे में शिक्षकों के लिए गलब्स और मास्क पहनना जरूरी हो जाएगा। इसके अलावा सभी स्कूलों में थर्मल स्कैनर लगा दिए जाएंगे। साथ ही सभी कक्षाओं में सीसीटीवी कैमरे से इस बात की निगरानी रखी जाएगी कि स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है या नहीं। यदि स्कूल या कॉलेज प्रशासन द्वारा इनका ध्यान नहीं रखा गया तो बहुत बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है।
नि:संदेह कोरोना के बाद के काल में शिक्षा के तौर-तरीके बदलने वाले हैं, जिसके लिए शिक्षकों और छात्रों को तैयार रहने की जरूरत है। वह भी तब जबकि वैकल्पिक योजनाएं व्यावहारिक साबित नहीं हो पा रही हैं। वहीं सकूल खोलने से पहले छात्रों के स्वास्थ्य और सुरक्षा, स्कूलों में सफाई को लेकर विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। जानकारों की मानें तो स्कूल-कॉलेज अभी बंद रखना काफी मुफीद साबित होगा। क्योंकि कितने भी नियम बना लिए जाएं लेकिन स्कूल खुलने के बाद बच्चों से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करा पाना मुश्किल होगा।
-राजेश माहेश्वरी
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