कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लॉकडाउन को चरणबद्ध खोला जा रहा है। देश के 25 राज्यों में हालात सामान्य होते जा रहे हैं। होटल, रैस्टोरैंट, धार्मिक स्थान खुलने के साथ-साथ बस सेवा व रेल सेवा भी शुरू हो गई है। यह बात महत्वपूर्ण भी है कि जिन राज्यों में 60 प्रतिशत से ज्यादा मरीज कोरोना से जंग जीत रहे हैं वहां पाबंदियां हटनीं भी चाहिए। यहां केंद्र सरकार को देश व छह राज्यों के लिए अलग-अलग रणनीति बनाने की आवश्यकता है। फिलहाल केंद्र सरकार का ध्यान अनलॉक करने पर केंद्रित है लेकिन महाराष्ट्र, तामिलनाडु, गुजरात व दिल्ली में बढ़ रहे कोरोना मरीजों को देखते हुए नई रणनीति बनानी होगी। महाराष्ट्र में इस वक्त 85 हजार मरीज, तामिलनाडु में 31 हजार, गुजरात में 20 हजार और दिल्ली में 30 हजार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में 10-10 हजार को पार कर गए हैं। यहां राज्यों के लिए अलग मंत्री समूह का गठन कर काम करने की आवश्यकता है।
भले ही केंद्र व राज्य सरकारों में तालमेल है लेकिन राज्यों को संघीय ढांचें के मुताबिक अपने स्तर पर निर्णय लेने का अधिकार है। हालातों के मद्देनजर केंद्र सरकार को अधिक मरीजों वाले राज्यों का संज्ञान लेना चाहिए। साथ ही इन राज्यों की आर्थिक मदद के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है। इसी तरह राज्य सरकारों को ईमानदारी व स्पष्टता से काम लेते हुए हालातों की वास्तविकता केंद्र के साथ सांझा करनी चाहिए। राजनीतिक हितों व प्रतिष्ठा की लड़ाई में लाखों लोगों की जान जोखिम में नहीं डाली जा सकती। यह तथ्य है कि केवल छह राज्यों के कारण ही भारत सबसे अधिक कोरोना प्रभावित देशों में से दसवें स्थान से उछलकर पांचवें स्थान पर पहुंच गया है। यदि इसी तरह मरीजों का आंकड़ा बढ़ता रहा, तब ये अनुमान सही साबित हो सकते हैं जिनमें जुलाई तक कोरोना के 21 लाख मरीज होने की बात कही गई है। कोरोना के शुरूआती दौर में जिस प्रकार की शंकाएं जताई जा रही थी कि मरीज ज्यादा होने पर वैंटीलैंटर की वरीयता किसे मिलेगी? जो बीमारी की भयावहता की ओर संकेत था, अब ये संकेत दिल्ली में साबित हो रहे हैं जहां दिल्ली के मरीजों को ईलाज में प्राथमिकता मिलेगी। पूरे देश को स्वस्थ रखने के साथ-साथ सबसे अधिक प्रभावित राज्यों के लिए अलग कमेटी व ईलाज की रणनीति बनाई जाए, देश पर निश्चित ही अब महामारी का प्रकोप बढ़ रहा है।
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