सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा के अरबों नाम हैं, करोड़ों पहचान हैं, उस परमपिता परमात्मा का प्यार-मोहब्बत जीव हासिल कर ले तो जीते-जी गम, चिंता, टेंशन, परेशानियों से निजात मिल जाती है और मरणोपरांत आवागमन से मोक्ष-मुक्ति जरूर मिलती है।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि दुनिया में ज्यादातर रिश्ते-नाते खुदगर्ज हैं। जब तक मतलब होता है तो हर कोई प्यार से बातें करता है और जैसे ही मतलब निकल जाता है तो तू कौन, मैं कौन? इस घोर कलियुग के स्वार्थी रिश्तों में अगर कोई दोनों जहान में साथ देने वाला है तो वो अल्लाह, वाहेगुरु, राम है। हम यह नहीं कहते कि दुनिया में प्यार न रखो। प्यार रखो लेकिन नि:स्वार्थ भावना से। जितने ज्यादा गर्ज में बंध जाओगे, उतनी ज्यादा मुश्किलें आएंगी और आप मालिक से दूर होते जाओगे। अगर इन्सान मालिक को पाना चाहता है तो वह मालिक की औलाद से, उसकी सृष्टि से बेगर्ज प्यार करे क्योंकि जो ऐसा करते हैं वो मालिक के रहमो-करम से मालामाल हो जाते हैं।
आप जी फरमाते हैं कि इन्सान को चलते-बैठते, लेटते, काम-धन्धा करते हुए सुमिरन करते रहना चाहिए। कहते हैं कि मालिक से जैसा प्यार लगा हो, वह बढ़ता-बढ़ता आखिर तक ओढ़ निभ जाए तो, कोहिनूर तो क्या, कोई भी उसका मुकाबला नहीं कर सकता। पर इसमें बहुत-सी दिक्कतें आती हैं। कभी मन हावी हो जाता है, कभी मनमते लोग टोकते हैं, कभी काम-वासना, कभी क्रोध, लोभ-लालच, कभी मोह-ममता, कभी अहंकार हावी हो जाता है। वैसे जब प्रीत होती है तो जीव का मालिक से ही प्यार होता है। दुनिया की तरफ कोई ध्यान नहीं होता, लेकिन धीरे-धीरे जैसा संग करता है वैसा रंग चढ़ता जाता है।
आप जी फरमाते हैं कि लोगों की तरह-तरह की बातें सुनी तो मन ललचाता है। काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार अपना बाण चलाता है और लोग इससे घायल होकर मालिक से दूर हो जाते हैं। लोग सब कुछ भूल जाते हैं कि मेरा लक्ष्य क्या है। इस दुनिया में आने का मेरा क्या मतलब है। इसलिए आप याद रखें कि आप जीते-जी परमानन्द का अहसास करना चाहते हैं और मरणोपरांत आवागमन से मोक्ष-मुक्ति मिल जाए, कुलों का उद्धार हो जाए और मालिक आपको रहमो-करम से नवाज दे तो आप सुमिरन किया करो। मालिक से मालिक को मांगो तो मालिक अंदर-बाहर कमियां नहीं छोड़ता।
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