एक धोबी था। उसके पास एक गधा और एक कुत्ता था। धोबी सुबह-सुबह गधे पर कपड़े लादकर और कुत्ते को साथ ले घाट पर पहुंच जाता। घाट पर धोबी कपड़े धो-धोकर सुखाता और कुत्ता उनकी रखवाली करता जबकि गधा सारा दिन पेड़ की छांव में खड़ा घास चरता रहता। दिन ढलने पर धोबी वापस आ जाता। एक रात धोबी के घर चोर घुस आया। आहट पाकर कुत्ते ने उसकी तरफ देखा, फिर मुंह फेरकर सो गया। ये दोनों घर के आंगन में थे। गधा खूंटे से बंधा था, कुत्ता एक चारपाई के नीचे सो रहा था। चोर के आने पर भी गधे ने कुत्ते को मुंह फेरकर सोते देखा तो उसे उसकी इस हरकत पर बड़ा क्रोध आया।
वह बोला-‘अरे ओ नमक हराम! देखता नहीं मालिक के घर में चोर घुस आए हैं। भौंकता क्यों नहीं।’ ‘अरे काहे का मालिक! और तूने मुझे नमकहराम क्यों कहा? वो अगर मुझे खिलाता है, तो मैं भी सारा दिन घाट पर कपड़े की रखवाली करता हूं। जो कुत्ते दिन में सोते हैं, वही रात में रखवाली करते हैं। अगर मालिक को मुझसे रात में रखवाली करवानी होती तो मुझे दिन में आराम करने का मौका देता। क्या इतनी सी बात वह नहीं जानता।’ ‘कुछ भी है, जब तूने चोर को देख लिया है तो तुझे भौंकना चाहिए।’ ‘मैं भौंकूं या न भौंकूं, यह मेरा काम है। तू क्यों परेशान हो रहा है। तू आराम से खड़ा रह।’ ‘तू कुत्तों के नाम पर कलंक है। अपने मालिक का घर लुटवाना चाहता है, मगर मैं ऐसा नहीं होने दूंगा।’ गधे ने कहा, फिर जोर-जोर से ढेंचू-ढेंचू करने लगा। कुत्ता आराम से सो रहा था।
अन्दर मालिक बड़ी ही प्यारी नींद ले रहा था। जैसे ही उसने ढेंचू-ढेंचू की आवाज सुनी, उसकी नींद में खलल पड़ गया। उसे बहुत गुस्सा आया। वह उठा, कोने में रखा डंडा उठाया और बाहर आकर गधे पर पिल पड़ा। गधा अपनी बात करने की कोशिश करने लगा। मगर मालिक कहां सुनने के मूड में था। उसकी अच्छी खासी मरम्मत करके वह फिर से सोने चला गया। गधा बेचारा कोने में गिरकर आंसू बहाने लगा। तभी कुत्ता उठकर उसके करीब आया और बोला-‘कुछ अक्ल आई गधे भाई। बुजुर्गों ने कहा है, जिसका काम उसी को साजे दूजा करे तो डंडा बाजे।’
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