गुप्ता जी काफी समय से लॉकडाउन के कारण अपनी दुकान नहीं खोल पा रहे थे। लेकिन वह इस बात से खुश था कि लॉकडाउन के समय को उन्होंने और उनके परिवार ने बड़े अच्छी तरीके से निभाया। कोरोना से लड़ने के लिए पुलिसवालों और सभी सफाई कर्मचारी एवं डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ के द्वारा किए जाने वाले कार्यों से वे बहुत खुश थे। उनके घर के पास एक बार जब चार-पांच पुलिस वाले बाइक से आए तो सभी पड़ोस के लोग उनके ऊपर फूल फेंक रहे थे। सचमुच कलयुग में ये सभी के लिए भगवान की तरह काम कर रहे थे। गुप्ता जी और उनका परिवार भी सबके बीच खड़ा होकर उनके लिए ताली बजा रहा था और फूलों की वर्षा कर रहा था। लगभग 60 दिनों बाद सरकार के आदेश के बाद सभी दुकानों को सप्ताह में तीन दिन खोलने का आदेश दे दिया।
गुप्ता जी को इस बात की खुशी थी कि कम से कम सप्ताह में 3 दिन दुकान खोलने के आदेश से अब काम धीरे-धीरे सही हो जाएगा। दुकान खोलने के बाद ग्राहकों के स्वागत के लिए उन्होंने सभी तरीके की कोरोना से बचने की सामग्री दुकान पर उपलब्ध कर ली। सोशल डिस्टनसिंग के लिए भी मार्क लगा दिए थे। जो भी व्यक्ति दुकान में आएगा वो सैनिटाइजर से अपने हाथ धोकर ही दुकान में आएगा। सारी तैयारी करने के बाद गुप्ता जी ने अपनी दुकान में खड़े होकर ग्राहकों का इंतजार करना शुरू किया। लेकिन इक्का दुक्का लोग ही पूरे दिन में आये। उनके काम में अब पहले जैसी तेजी नहीं थी। लेकिन एक उम्मीद थी कि कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा।
गुप्ता जी की दुकान में बहुत ही कम लोग आ रहे थे। आज दुकान खुलने की तीसरा दिन था। अचानक आठ-दस ग्राहक एक साथ दुकान के अंदर आ गए। वो सब अचानक ही अंदर आ गए थे। सभी लोग बिना लाइन में लगे दुकान में घुस गए और दो ने तो मास्क भी नही लगाएं हुए थे। अभी गुप्ता जी को उन्हें एक-दूसरे से दूर रहने के लिए कहने का मौका भी नहीं लगा था कि तभी कुछ पुलिस वाले भी दुकान के अंदर आ गए और दुकान में अधिक भीड़ देखकर गुप्ता जी को जबरदस्त डांट लगा दी।
गुप्ता जी उन्हें समझाते रहे कि सब लोग अचानक एक साथ दुकान में आ गए। लेकिन पुलिसकर्मियों ने उनकी एक भी बात ना मानी और गुप्ता जी के नाम से चालान काट दिया। इस बात से गुप्ता जी बहुत दुखी हुए। इतना तो कमाया भी नही था। जिससे ज्यादा तो चालान ही कट गया। जिन पुलिस वालों को अभी कुछ समय पहले ही वह भगवान मानकर उनके लिए फूल बरसा रहा था और ताली बजा रहा था। वह धीरे-धीरे अपने वास्तविक रूप में आ गए थे। गुप्ता जी उनके हाथ जोड़ते रहे। लेकिन उनकी सारी कोशिशों के बावजूद वो सभी भगवान रूपी पुलिसकर्मी उन्हें चालान थमा कर वहाँ से चलते बने। गुप्ता जी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे थे।
-नीरज त्यागी
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