चीन की संसद (नेशनल पीपुल्स कांग्रेस) ने गुरूवार को विवादास्पद सुरक्षा कानून को मंजूरी देकर हांगकांग की स्वायत्तता को खत्म करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। सुरक्षा कानून के लागू हो जाने के बाद हांगकांग के भीतर चीन के अधिकारों को कमजोर करने वाली किसी भी गतिविधि को अपराध माना जाएगा। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ ने सुरक्षा कानून की निंदा की है। इनका कहना है कि यह हांगकांग के नागरिकों की आजादी पर हमला और अंतरराष्ट्रीय समझौते का उल्लंघन है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर चीन इस कानून को वापिस नहीं लेता है, तो हांगकांग को व्यापार में दिए गए विशेष रियायत के दर्जे को खत्म कर दिया जाएगा।
प्रस्तावित कानून को लेकर हांगकांग में पिछले कुछ दिनों से प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इस कानून के लागू हो जाने के बाद उनके लोकतांत्रिक अधिकार समाप्त हो जाएंगे और सरकार को चीन के नेतृत्व पर सवाल उठाने, प्रदर्शन में शामिल होने और स्थानीय कानून के तहत अपने मौजूदा अधिकारों का उपयोग करने के लिए हांगकांग निवासियों पर मुकदमा चलाए जाने का अधिकार प्राप्त हो जाएगा। कानून में देशद्रोह, आतंकवाद, विदेशी दखल और विरोध प्रदर्शन जैसी गतिविधियों को रोकने का प्रावधान किया गया है। कुल मिलाकर कहा जाए तो चीन ने हांगकांग आंदोलन को बल पूर्वक ढंग से दबाने के लिए इस कानून की रचना की है। इसके अलावा हांगकांग की संसद में लाए गए चीनी राष्ट्रगान विधेयक को लेकर भी लोग नाराज हैं। इस विवादित विधेयक में चीन के राष्ट्रगान का अपमान करना अपराधिक कृत्य माना गया है। कुल मिलाकर कहा यह जाना चाहिए कि चीन साल 2047 से पहले ही हांगकांग को पूरी तरह से नियंत्रण में लेने को बेताब है। लॉकडाउन व कोरोना वायरस के खौफ के बावजूद हजारोें नागरिक सड़कों पर उतर कर प्रस्तावित कानून का विरोध कर रहे हैं। हालांकि हांगकांग के अधिकारियों का कहना है कि कानून बढ़ती हिंसा और आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए आवश्यक है, और क्षेत्र के लोगों को इससे डरने की जरूरत नहीं है।
दरअसल, साल 2014 के अंब्रेला मूवमेंट के बाद हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक लगातार आगे बढ़ते रहे हैं। पिछले साल नवंबर में हुए स्थानीय निकायों के चुनावों में मिली शानदार जीत के बाद इनके हौंसले और बढ़ गए । 18 जिला परिषदें की 452 सीटों में से लोकतंत्र समर्थकों को 387 सीटें मिली, जबकि चीन समर्थकों दलों को केवल 32 स्थान प्राप्त हुए थे। इससे पहले साल 2003 में भी चीन ने हांगकांग की स्वायत्तता को समाप्त करने की कोशिश की थी। लेकिन, जबरदस्त जन विद्रोह के कारण उसे पीछे हटना पड़ा था। पिछले साल अगस्त माह में विवादित प्रत्यर्पण विधेयक को लेकर भी नागरिकों ने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया था। प्रदर्शनकारियों ने हांगकांग के हवाई अड्डे पर कब्जा कर लिया था। उस वक्त चीनी सेना के हांगकांग की सीमा की ओर बढ़ने के समाचार भी आए थे।प्रदर्शनों के चलते हांगकांग में निवेश और अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई । बिजनेस हब कहे जाने वाले हांगकांग में पिछले एक दशक में ऐसा पहली बार हुआ था जबकि पहली तिमाही में यहां की जीडीपी 3.2 फीसद पर पहुंच गई थी।
हांगकांग में चल रहे विरोध प्रदर्शनों में अमेरिकी हस्तक्षेप से भी चीन की चिंता लगातार बढ़ रही थी। पिछले दिनों ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हांगकांग में प्रदर्शनकारियों को समर्थन देने संबंधी विधेयक पर हस्ताक्षर कर देने के बाद चीन के तेवर और सख्त हो गए । राष्ट्रपति ट्रंप के हस्ताक्षर के बाद बने इस कानून में कहा गया कि हांगकांग को पेइचिंग से स्वायतता दिलाने से जुड़े प्रावधान को गंभीरता से लिया जाएगा। साथ ही हांगकांग को मिले विशेष दर्जे पर कड़ी नजर रहेगी। कानून के द्वारा पुलिस को भीड़ नियंत्रण करने के साधनों, जैसे आंसू गैस, पेपर स्प्रे, रबर की गोलियां आदि निर्यात किए जाने पर पाबंदी लगाने के प्रावधान किए गए है। ट्रंप के हस्ताक्षर के बाद अमेरिका को हांगकांग के उन अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार मिल जाएगा, जो हांगकांग में प्रदर्शनकारियों के मानवाधिकारों को कुचलने का काम करते हैं।
हांगकांग चीन के दक्षिणी-पूर्वी तट पर कैण्टन (पर्ल) नदी के मुहाने पर स्थित 230 से अधिक छोटे-मोटे द्वीपों का समूह है। प्रथम अफीम युद्ध में चीन की पराजय के बाद हांगकांग ब्रिटेन का उपनिवेश बन गया। 1 जुलाई 1997 में ब्रिटेन ने कुछ शर्तों के साथ हांगकांग की संप्रभुता पुन: चीन को सौंप दी। इन शर्तों में एक मुख्य शर्त यह थी कि चीन हांगकांग की पूंजीवादी व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं करेगा। चीन ने भी रक्षा व विदेश मामलों को छोड़कर हांगकांग की प्रशासकीय व्यवस्था से छेड़छाड़ न करने व पूंजीवादी व्यवस्था को आगामी 50 वर्षों ( साल 2047) तक बनाए रखने का आश्वासन दिया। इस प्रकार एक देश दो प्रणाली के सिद्धांत के आधार पर हांगकांग का विलय चीन में हो गया। इसी सिंद्धात के आधार पर हांगकांग को अर्द्ध स्वायतता का दर्जा हासिल है और वहां के लोग लोकतांत्रिक तरीके से अपनी आवाज उठाते आएं है। जिस वक्त हांगकांग का विलय चीन में किया गया था उस वक्त चीन इस बात को लेकर राजी था कि हांगकांग का प्रशासन हांगकांग के अधिकारियों की इच्छा व हांगकांग के कानूनों व नियमों के अनुसार ही संचालित होगा। लेकिन अब चीन की नियत में खोट दिखाई देने लगा है।
पूरे मामले का सबसे चिंताजनक पहलु अमेरिका और चीन के बीच उपजी तनातनी है। अमेरिका और ब्रिटेन ने पूरे मसले को यूएन सुरक्षा परिषद् में भी उठाया है। कोराना वायरस के संक्रमण को लेकर अमेरिका पहले ही चीन पर लगातार आरोप लगा रहा है। अब हांगकांग के विशेष व्यापार का दर्जा समाप्त करने की बात कहकर ट्रंप हांगकांग को आथिक रूप से कमजोर करना चाहते हैं। अमेरिका और हांगकांग के बीच प्रतिवर्ष अरबों डॉलर का व्यापार होता है। टंÑप के निर्णय के बाद पिछले 23 साल से विशेष व्यापार और वित्तीय दर्जे का लाभ उठा रहे हांगकांग को उन समस्त लाभों से वंचित होना पडेÞगा, इससे हांगकांग के साथ-साथ अमेरिका की व्यापारिक गतिविधियां तो प्रभावित होगी ही साथ ही अमेरिका से बाहर यूरोप व एशिया के बड़े देश भी अस्थिर हांगकांग में निवेश करने से कतराने लगेगे। हांगकांग के आर्थिक नुकसान से चीन भी प्रभावित होगा। इसका अर्थ यह है कि अमेरिका और चीन के बीच पहले से चल रहा व्यापार युद्ध और तेज हो सकता है। अगर ऐसा होता है तो कोरोना महामारी के वैश्विक संकट के बीच यह अच्छी खबर नहीं होगी।
हांगकांग के प्रति चीन का मोह केवल इसलिए नहीं है कि हांगकांग दुनिया का एक महत्वपूर्ण बंदरगाह अथवा विश्व का पांचवां सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है। इसके पीछे उसे कहीं न कहीं तिब्बत और झिंगझियांग दिखाई देता है। हांगकांग की स्वायत्तता का अर्थ होगा देर सबेर तिब्बत और झिंगझियांग की स्वायत्तता का समर्थन करना। यही कारण है कि साम्यवाद के प्रति प्रेम का दिखावा कर चीन इस पूूंजीवादी व्यवस्था वाले प्रदेश में लोकतंत्र को बलपूर्वक दबाए रखना चाहता है।
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