देश की जनता को तालाबंदी (लॉकडाउन) के कारण बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। वहीं तालाबंदी का समय पर्यावरण की दृष्टि से अब तक का सबसे उत्तम समय रहा है। इस दौरान शहरों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में भी वायु प्रदूषण का स्तर स्वयमेव घटकर न्यूनतम स्तर पर आ गया है। देश की सभी नदियों का जल अपने आप ही आचमन योग्य हो गया। जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। पूरी दुनिया में इस बार सही मायने में पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है। सरकार हर वर्ष नदियों के पानी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए अरबों रुपए खर्च करती आ रही है। उसके उपरांत भी नदियों का पानी शुद्ध नहीं हो पाया था। मगर देश में चली लंबे समय की तालाबंदी के चलते बिना कुछ खर्च किए ही नदियों का पानी अपने आप शुद्ध हो गया।
कोलकाता के बाबू घाट में तो इस दौरान लोगों ने 30 वर्ष बाद डॉल्फिन मछलियों को उछलते हुए देखा है। यह कोलकाता वासियों के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं था।पर्यावरणविदों के मुताबिक जिन नदियों के पानी से स्नान करने पर चर्म रोग होने की संभावनाएं व्यक्त की जाती थी। उन नदियों का पानी शुद्ध हो जाना बहुत बड़ी बात है। देश की सबसे बड़ी गंगा नदी का पानी सबसे अधिक प्रदूषित माना जाता था। गंगा आज सबसे शुद्ध जल वाली नदी बन चुकी है। वैज्ञानिकों के अनुसार गंगा का पानी साफ होने की वजह पानी में घुले डिसाल्वड की मात्रा में आई 500 प्रतिशत की कमी है। गंगा में गिरने वाले सीवर और अन्य प्रदूषक में कमी की वजह से पानी साफ हुआ है। इन दिनो गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता में आया असर साफ दिखाई दे रहा है। गंगा के पानी में आॅक्सीजन बढ़ा हैं।
कोरोना संकट को लेकर दुनिया के अधिकांश देशों में लंबे समय तक चली तालाबंदी के कारण सब कुछ बंद रखना पड़ा था। दुनिया भर में लोग अपने घरों में कैद होकर रह गए थे। भारत में भी लंबे समय तक तालाबंदी लागू की गई। देश में अभी भी तालाबंदी पूर्णतया नहीं हटाई गई है। लंबे समय की तालाबंदी के कारण पूरा देश ठहर सा गया है। जो जहां था वहीं रुक गया। तालाबंदी के कारण देश के सभी कल कारखाने, औद्योगिक संस्थान, व्यवसायिक गतिविधियां बंद हो गई। इसके साथ ही देश में घरेलू व अंतरराष्ट्रीय हवाई सेवाएं, समस्त यात्री रेलगाड़ियां, छोटे-बड़े सभी तरह के वाहनों के परिचालन पर सरकार द्वारा रोक लगा देने के कारण आवागमन के सभी साधन पूर्णतया बंद हो गए। जिस कारण लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना पूर्णतया रुक गया। वैसे भी तालाबंदी के दौरान सरकार ने लोगों के घरों से निकलने पर रोक लगा दी थी। इस कारण सभी तरह की गतिविधियां बंद हो गई।
तालाबंदी के कारण सभी तरह की गतिविधियां बंद होने से लोगों ने बरसों बाद देश के बड़े शहरों में उन्मुक्त भाव से पशु पक्षियों को विचरण करते देखा है। चारों तरफ प्रकृति खुशी से विभोर होकर नाचते नजर आ रही है। लोगों ने शहरों की मुख्य सड़कों पर बड़ी तादाद में पशु पक्षियों को खेलते, उड़ते, गाते देखा है। गांव में विलुप्त होती कई तरह की चिड़िया व अन्य पक्षी भी साफ हुए वातावरण के कारण अब दिखाई देने लगे हैं। देश में तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण बड़ी मात्रा में कृषि भूमि आबादी की भेंट चढ़ती गई। जिस कारण वहां के पेड़ पौधे काट दिये गये व नदी नालों को बंद कर बड़े-बड़े भवन बना दिए गए। जिससे वहां रहने वाले पशु, पक्षी अन्यत्र चले गए। लेकिन तालाबंदी ने लोगों को उनके पुराने दिनों की याद दिला दी है।
पर्यावरण शुद्ध होने के कारण पंजाब के जालंधर शहर से हिमालय की बर्फ से ढकी धौलाधार पर्वत श्रंखला की चोटियां वर्षों बाद फिर से दिखाई देने लगी है। वहां के लोगों का कहना है कि प्रदूषण की वजह से वर्षों से ऐसा नजारा देखने को नहीं मिल रहा था। सरकार ने पिछले 25 वर्षों में यमुना नदी की सफाई पर करीबन 5 हजार करोड रुपए खर्च कर दिए थे। उसके बावजूद भी नदी का पानी साफ नहीं हो पाया था। मगर तालाबंदी के चलते जो काम हजारों करोड़ रुपए खर्च करके 25 साल में सम्भव नहीं हो पाया वह मात्र 2 महीने में अपने आप ही हो गया। आज गंगा की तरह यमुना का पानी भी बहुत अधिक मात्रा में साफ हो चुका है।
नेशनल हेल्थ पोर्टल आफ इंडिया के मुताबिक देश में हर साल करीब 70 लाख लोगों की मौत सिर्फ वायु प्रदूषण की वजह से हो जाती है। वायु प्रदूषण के चलते लोगों को शुद्ध हवा नहीं मिल पाती है। जिसका हमारे शरीर में फेफड़े, दिल और ब्रेन पर बुरा असर पड़ रहा है। देश में 34 प्रतिषत लोग प्रदूषण की वजह से मरते हैं। तालाबंदी के चलते प्रदूषण की वजह से देश में होने वाली मौतें भी कम हुई है। वहीं लोगों के बिमार होने की दर में आष्चर्यजनक ढ़ंग से कमी देखने को मिल रही है। नासा का कहना है कि दुनिया भर में लागू तालाबंदी के चलते 20 साल में सबसे कम प्रदूषण स्तर देखने को मिला मिल रहा है। देश में तालाबंदी से बदलाव की संभावनायें बढ़ी है जो अब साफ नजर आ रही है। अपनी सेहत को लेकर लोग अब पहले से ज्यादा सचेत हो गए हैं।
इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस 2020 की थीम जैव विविधता ( बायोडायवर्सिटी ) पर केंद्रित होगा। इस थीम के भाव को इसके महत्व को समझते हुए हम सब को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि हम वायुमण्डल में बढ़ते प्रदूषण को रोकने की दिशा में काम करें। हमें अपने मन में संकल्प लेना होगा कि हमें प्रकृति से सदभाव के साथ जुड़ कर रहना है। इस पर्यावरण दिवस पर हम सब इस बारे में सोचें कि हम अपनी धरती को स्वच्छ और हरित बनाने के लिए और क्या कर सकते हैं ? किस तरह इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं? पर्यावरण दिवस पर अब सिर्फ पौधारोपण करने से कुछ नहीं होगा। जब तक हम यह सुनिश्चित नहीं कर लेते कि हम उस पौधे के पेड़ बनने तक उसकी देखभाल करेंगें।
विश्व पर्यावरण दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण के दूसरे तरीकों सहित सभी देशों के लोगों को एक साथ लाकर जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने और जंगलों के प्रबन्ध को सुधारना है। वास्तविक रुप में पृथ्वी को बचाने के लिये आयोजित इस उत्सव में सभी आयु वर्ग के लोगों को सक्रियता से शामिल करना होगा। तेजी से बढ़ते शहरीकरण व लगातार काटे जा रहे पड़ो के कारण बिगड़ते पर्यावरण संतुलन पर रोक लगानी होगी। पुराने समय में पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिये पेड़ो को देवताओं के समान दर्जा दिया जाता था। ताकि उन्हे कटने से बचाया जा सके।
बड़-पीपल जैसे घने छायादार पेड़ो को काटने से रोकने के लिये उनकी देवताओं के रूप में पूजा की जाती रही है। इसी कारण गावों में आज भी लोग बड़ व पीपल का पेड़ नहीं काटते हैं। विश्व पर्यावरण दिवस पर हमें आमजन को भागीदार बना कर उन्हे इस बात का अहसास करवाना होगा कि बिगड़ते पर्यावरण असंतुलन का खामियाजा हमे व हमारी आने वाली पीढियों को उठाना पड़ेगा। इसलिये हमें अभी से पर्यावरण को लेकर सतर्क व सजग होने की जरूरत है। हमें पर्यावरण संरक्षण की दिशा में तेजी से काम करना होगा तभी हम बिगड़ते पर्यावरण असंतुलन को संतुलित कर पायेगें। तभी हमारी आने वाली पीढ़ियां शुद्ध हवा में सांस ले पायेगी।
रमेश सर्राफ धमोरा
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