निश्चित तौर से कोविड 19 ने पूरे विश्व को बेरोजगारी को एक ऐसा अनिश्चितकालीन दौर में झोक दिया है जिसके परिणाम की कल्पना ही भयातुर कर देती है। ऐसी स्थिति में चंद नौकरशाहों के इशारे पर काम करने वाली भारतीय केन्द्र और राज्य की सरकार सिर्फ मनरेगा और छोटे मोटे अन्य माध्यम से कितने लोगों को कितने दिन का, कितने मानदेय का रोजगार उपलब्ध करायेगी इसका स्पष्ट खाका अब तक तैयार नही है। हालांकि केन्द्र और राज्य सरकारें लगातार दावा कर रही है कि शहरों से गॉवों तक पहुंचे मजदूरों एवं कामगारों को रोजगार मुह्हैया कराये जाएगे। लेकिन देश के जो आकड़े है वह काफी चैकाने वाले है। पलायन के बाद बेरोजगारी की स्थिति का अनुमान लगाने के लिए इस संख्या पर नजर जरूर डालनी चाहिए।
फिलहाल के जो आकड़े समाने आए है उसके मुताबिक भारत में 28 प्रतिशत से अधिक कार्यबल बिना किसी काम के है, जिससे सामाजिक ताने-बाने को खतरा बढ़ गया है और लाखों लोगों के जीवन में असहनीय तकलीफ पैदा हो गई है। ये अनुमान सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी द्वारा हाल ही में किए गए साप्ताहिक नमूना सर्वेक्षणों के नवीनतम दौर (19 अप्रैल) से निकले है। हालांकि, विश्व स्तर के अनुभव से पता चलता है कि कई देश अर्थव्यवस्था को बंद किए बिना और इसके सभी परिणामों के बिना कोरोनोवायरस को नियंत्रित करने में कामयाब रहे हैं। वैसे भी लॉक डाउन से पूर्व बेरोजगारी दर पिछले महीनों में 7-8 प्रतिशत के बीच झूल रही थी, जो अपने आप में कोई बहुत सुखद स्थिति नहीं थी।
लेकिन इस पर अब लॉकडाउन का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है क्योंकि लॉकडाउन की घोषणा के दिनों के दौरान बेरोजगारी दर में 28.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। लॉक डाउन के दौरान उद्योग, कार्यालय, दुकानें आदि बंद कर दिए गए हैं, बल्कि इसके कारण विशाल अनौपचारिक क्षेत्र (उद्योग और सेवाओं दोनों में) पूरी तरह से ध्वस्त हो गए हैं। इस क्षेत्र में देश का करीब 44 करोड़ कार्यबल कार्यरत था, जो क्षेत्र कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र तक फैला हुआ है। इसको देखते हुए ही कृषि क्षेत्र के काम को तालाबंदी के दायरे से बाहर किया और किसी तरह रबी की फसल की कटाई हो पाई थी। फिर भी, यह घोषणा इतने बेतरतीब तरीके से की गई कि सरकार की इस क्षेत्र को छुट देने की नीति कई खेतिहर मजदूरों को कटाई के पहले या फिर कटाई के बाद के काम के लिए प्रोत्साहित नहीं कर पाई। बेरोजगारी के इस संकट का एक और भी गंभीर पहलू यह है कि तालाबंदी शुरू होने के बाद से करीब 14 से 20 करोड़ लोग अपनी नौकरी खो चुके हैं।
महामारी से पहले की अर्थव्यवस्था में मंदी ने महामारी के फैलने से ठीक पहले के महीनों में श्रम भागीदारी दर को लगातार कम कर दिया था। लॉकडाउन के लागू होने के बाद, नौकरी के नुकसान में बड़ी तेजी से वृद्धि हुई है और सिर्फ पांच दिनों के भीतर-भीतर लगभग 10 करोड़ लोगों के रोजगार खोने की सूचना गम्भीर संकेत दे चुकी थी। तब से स्थिति और अधिक खराब हुई है क्योंकि 19 अप्रैल के नवीनतम अनुमान के अनुसार केवल 27.1 करोड़ लोग की ही कार्यरत हैं जो संख्या अपने आप में बहुत कम है। यह कुल कार्यबल का मात्र 27 प्रतिशत हिस्सा है, जो हर समय के लिए काफी कम है।
हाल में जारी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी कि रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के 84 फीसदी से ज्यादा घरों की मासिक आमदनी में गिरावट दर्ज की गई है। देश में कामकाजी आबादी का 25 प्रतिशत हिस्सा इस समय बेरोजगार हो चुका है। सीएमआईई की स्टडी के मुताबिक देश में बेरोजगारी के आंकड़े भी तेजी से बढ़े हैं। 21 मार्च को भारत में बेरोजगारी की दर 7.4 फीसदी थी, जो 5 मई को बढ़कर 25.5 फीसदी हो गई है। स्टडी के मुताबिक देश में 20 से 30 साल आयु वर्ग के 2 करोड़ 70 लाख युवाओं को अप्रैल में नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। यह आंकड़ा मई के अंतिम तिथि तक बढ़कर 30 फीसदी तक पहुच सकता है। ऐसे में वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से निपटने के लिए लागू की गई देशबंदी आर्थिक मंदी के कारण देश के लगभग 40 फीसदी लोग बेरोजगारी का शिकार हो गए हैं। असली समस्या और परेशानी तो लाक डाउन खत्म होने के बाद पैदा होगी। लाक डाउन की वजह से महानगर व शहरों में कल कारखाने,व्यापारिक और व्यवसायिक संस्थान बंद हो गए हैं। जिसकी वजह से रोजगार छिन जाने के कारण बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर लाक डाउन के बावजूद अपने घर लौट गए हैं।
लाक डाउन समाप्त होने के बाद जब यह वापस महानगर और शहरों में लौटेंगे तब दुबारा काम न मिलने पर उनकी स्थिति करता होगी। आर्थिक मंदी और लाक डाउन दोनों की दोहरी मार ने बाजार को पूरी तरह से बेदम कर दिया है। जिससे उबरने में उसे काफी समय लगेगा। इतना ही छोटे और मध्यम दर्जे के उद्यमी व कारोबारी अपना अस्तित्व बचाने के लिए कमचारियों की छंटनी करने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं बचेगा। निजी क्षेत्र में भी नौकरियां लगभग 24 फीसदी तक कम हो जाएंगी। कुल मिलाकर मौजूद स्थिति को देखते हुए कोई इस बॉत का दावा नही कर सकता कि देश को इस अनिश्चितकालीन बेरोजगारी के दौर से कब निजात मिलेगी ? लेकिन इतना तय है कि आने वाले छह माह से एक वर्ष का समय देश के कामगारों, श्रमिकों और उनके परिवारों के लिए कष्टकारी साबित होगा।
प्रेम शर्मा
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