सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इन्सान को सुमिरन के लिए टाईम-पीरियड फिक्स करना चाहिए। आमतौर पर लोग बड़ी जल्दबाजी करते हैं कि पांच-सात दिन सुमिरन करुंगा और मुझे ये मिल जाए, वो मिल जाए। जबकि आप यह सोचें कि मैंने ताउम्र सुमिरन करना है, तो मालिक आपकी जायज मांग सुनते भी रहेंगे और पूरी भी करते रहेंगे।
आप जी फरमाते हैं कि इन्सान को हमेशा अपने दिल में ये श्रद्धा-भावना बैठा कर रखनी चाहिए कि मालिक का रहमो-कर्म तो बरसेगा ही बरसेगा। जब लोग चहूं ओर मालिक का रहमो-कर्म बरसते देख रहे हैं, तो नाम लेवा जीव को यह सोचना चाहिए कि मुझ पर मालिक का रहमो-कर्म क्यों बरस रहा। फिर जीव को सोचना चाहिए कि मेरा काम है कि मैं नाम का सुमिरन करुं, भक्ति करुं। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इन्सान निंदा-चुगली, बुराइयों व झूठ, फरेब से जितना बच सकें, उतना ही अच्छा है। बेपरवाह सच्चे दाता-रहबर (परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज व बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज) फरमाया करते कि निंदक की तो परछाई भी बुरी होती है, और लोग अपनी बुराइयां छुपाने के लिए ही दूसरों की निंदा करते हैं।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।