भारत ने हाल ही में लिपुलेख पास सड़क का उद्घाटन किया है जोकि भारत से कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाने वालों का मुख्य रास्ता है। साथ ही इससे भारत की चीन सीमा तक सैन्य सामानों की भी आपूर्ति होती है। भारत-नेपाल सीमा को महाकाली नदी व गंडक नदी तय करती हैं परन्तु नदियों का स्वभाव है कि वह हर मौसम में अपना स्थान बदल लेती हैं जिस वजह से भारत नेपाल के बीच सीमा रेखा में विवाद उत्पन्न हो जाते हैं। इतना ही नहीं भारत नेपाल सांस्कृतिक, धार्मिक, भूगौलिक तौर पर इतने नजदीक हैं कि इनके बीच कभी भी आम लोगों ने सीमा रेखा को लेकर कभी कोई परवाह नहीं की। आज भी दोनों तरफ के लोग आम की तरह इधर से उधर घूमते रहते हैं।
परंतु नेपाल में इन दिनों भारत विरोध के स्वर ऊंचे हो रखे हैं, लोग सड़कों से लेकर नेपाली संसद तक भारत को कटघरे में खड़ा कर सवाल पूछ रहे हैं कि भारत क्यों कालापानी, लिपुलेख पर अपना कब्जा किए बैठा है, जबकि वह क्षेत्र नेपाल का है। नेपाल सरकार व आम लोग उनकी अंग्रेजों के साथ हुई 1816 की सुगौली की संधि का हवाला दे रहे हैं। इतना ही नहीं नेपाली भारत से जाने वाले कैलाश मानसरोवर तीर्थ यात्रियों के यात्रावृतांत का भी हवाला दे रहे हैं जोकि इस क्षेत्र से जब गुजरे तब उनका नेपाली सुरक्षा बलों ने बहुत सहयोग किया। इसके साथ ही नेपाली उन गांवों के राजस्व वसूली की पुरानी रसीदें व लोगों के पहचान पत्रों का भी हवाला दे रहे हैं। भारत का दावा 1875 का नक्शा है जिसमें लिपुलेख व कालापानी भारत के क्षेत्र दर्शाए गए हैं। भारत के दावों में नेपाल-भारत सीमा के 1800 किलोमीटर में कई स्थान हैं यहां अभी दोनों देशों को सीमा का सही-सही आकलन करना है। इससे पहले भी नेपाल के संविधान परिवर्तन व संसदीय क्षेत्र के निर्धारण वक्त नेपाल के आंतरिक हालातों ने भारत विरोध का माहौल बनाया था। नेपाल में तराई का क्षेत्र मधेशियों का है व पर्वतीय क्षेत्र में मंगोल नस्ल के लोग हैं। पर्वत के लोग चीन से नजदीकी रखते हैं। मघेशी भारत से नजदीकी रखते हैं। इनके आपसी विवाद बहुत बार भारत विरोधी सुर बन जाते हैं।
वर्तमान विवाद भी भारत विरोधी किसी संगठन का काम है जो नहीं चाहता है कि नेपाल व भारत में आपसी निकटता बनी रहे। सैकड़ों-हजारों सालों से भारत ही नेपाल को रोजमर्रा के सामान की आपूर्ति करता आ रहा है, लाखों नेपाली भी भारत में भारतीयों की तरह रहते आए हैं। लेकिन भारत विरोधी गठजोड़ नेपाल गठजोड़ भारत-नेपाल संबंधों में आए दिन कोई न कोई नया विवाद जोड़ता आ रहा है। देर सवेर उन ताकतों के चेहरे पर से पर्दा जरूर हटेगा जो भारत-नेपाल रिश्तों को सामान्य व मित्रवत नहीं रहने देना चाहते। भारत को अपने सदियों से साथ रह रहे निकट पड़ोसी की शंकाओं को दूर करना चाहिए। हर समस्या का हल आपसी मिल बैठने से संभव है। भारत को नेपाल के ताजा गुस्से व मतभेदों को जल्द से जल्द शांत करना चाहिए क्योंकि नेपाल के उस पार बैठा चीन भी इसमें अपने बहुत से फायदे देख रहा है।
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