चीन के वुहान शहर से फैले कोविड-19 बीमारी ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। सभी देशों की अर्थव्यवस्था तक चौपट हो गई है। यहां तक कि कई देशों में भूखे मरने तक की नौबत आ चुकी है। इस बीमारी के आगे सभी देशों के डॉक्टर भी असहाय नजर आ रहे हैं। देश में लॉकडाउन के माध्यम से सरकार ने इस बीमारी के प्रसार को रोकने की कोशिश की है, जिसमें काफी हद तक सफलता हासिल भी हुई है। पीएम के साथ मुख्यमंत्रियों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और मंथन में लॉकडाउन जारी रखने को लेकर मतभेद उभरे हैं।
बावजूद इसके बैठक से मिले संकेतों के अनुसार देश को अब कोरोना के साथ जीने के लिए तैयार रहना होगा, क्योंकि केंद्र और राज्य अर्थव्यवस्था की बदहाली सहन करने की स्थिति में नहीं हैं। सरकार के सामने आर्थिक संकट से लेकर तमाम दूसरी परेशानियां हैं, जिसके चलते लॉक डाउन में ढील देना जरूरी हो गया है। कुछ खास शहरों तक रेल यात्रा दोबारा शुरू कर सरकार ने लॉकडाउन खोलने के ठोस संकेत दिए हैं। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक पंजाब, महाराष्ट्र, तेलंगाना, बिहार और बंगाल समेत कई राज्य लॉकडाउन बढ़ाने के पक्ष में थे, जबकि कोरोना से दूसरा सबसे प्रभावित राज्य गुजरात अब लॉकडाउन बढ़ाने के खिलाफ है। गुजरात के इस रुख से संकेत साफ हैं कि अगला लॉकडाउन गिने-चुने क्षेत्रों तक सीमित रह जाएगा। वैसे भी ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियां शुरू करने, शहरों में दुकानें आदि खोलने के बाद अब सीमित क्षेत्र में ट्रेन सेवा शुरू कर देने के बाद केंद्र ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं कि अब लॉकडाउन को ज्यादा दिन जारी नहीं रखा जाएगा।
लॉकडाउन-3 आगामी 17 मई को समाप्त हो रहा है। जैसे कि विभिन्न राज्यों से संकेत आ रहे हैं उनके मुताबिक कुछ राज्य तो लॉक डाउन को 30 मई तक बढ़ाये जाने के पक्षधर हैं लेकिन शेष राज्य कुछ शर्तों के साथ कारोबार एवं आवागमन खोलने के समर्थक हैं। प्रवासी मजदूरों का लगातार घर लौटना जारी है। ऐसे में संक्रमण का खतरा अब भी बरकरार है। बहरहाल इस फैसले के निहितार्थ स्पष्ट हैं कि अब सरकार ने सार्वजनिक परिवहन को खोलने का मन बना लिया है। रेल का नया सफर कई शर्तों और कायदे-कानूनों से बंधा हुआ है। संतोष की बात ये है कि इलाज करा रहे कोरोना मरीजों के ठीक होने का प्रतिशत भी बढ़ रहा है। साफ है कि सरकार अभी कोरोना वायरस से जुड़े एहतियात को नहीं छोड़ सकती, क्योंकि सामुदायिक संक्रमण के खतरे अब भी हैं।
लॉकडाउन से भारत सरकार और और देश की जनता को जो हासिल होना चाहिए था, उसके परिणाम स्पष्ट हैं कि करीब 16 लाख टेस्ट करने के बावजूद संक्रमित मामले 67,152 आए हैं। इन पर अमरीका और यूरोपीय देशों की तुलना में संतोष किया जा सकता है। इस दौरान सिंगापुर यूनिवर्सिटी का एक शोधात्मक आकलन सामने आया है कि 20 मई तक भारत में कोरोना वायरस मर जाएगा। विशेषज्ञों के दूसरे वर्ग का आकलन है कि भारत में संक्रमण की जो औसत दर है, उसके मुताबिक मई माह के अंत तक करीब दो लाख कोरोना मामले सामने आ सकते हैं। यह अभी तक का सर्वाधिक आंकड़ा है, लेकिन विमर्श इन बिंदुओं पर जारी है कि अब देश को लॉकडाउन से मुक्त किया जाए, ताकि बाजार खुल सकें और आम आदमी तक लाभ पहुंच सके।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि किसी भी बीमारी या महामारी से बचने व उसे रोकने के लिए बचाव, सावधानी एवं ऐहतियात बरतना कारगर साबित होते हैं। यानी प्रिवेन्शन इज बैटर दैन क्योर। बहुत पहले जब हैजा जैसी महामारी फैली थी तो दवाइयां नाममात्र ही हुआ करती थीं, तो बताया जाता है कि लोग महामारी से बचने के लिए गांव-शहर छोड़ कर कुछ अरसे के लिए एकांत स्थानों पर जाया करते थे। कोविड-19 से भी बचा जा सकता है यदि हम एक-दूसरे से शारीरिक दूरी बनाए रखें, अपनी इम्युनिटी को बढ़ाएं, सरकारों के दिशा-निदेर्शो का सख्ती से पालन करें। यह देखा जाना दुर्भाग्य की बात है कि कुछ लोग शारीरिक दूरी के नियम की धज्जियां उड़ाते हैं, और नियमों का उल्लंघन करने में अपनी शान समझते हैं। ऐसे लोग नियम तो तोड़ते ही हैं वहीं उनसे संक्रमण फैलने का खतरा भी बना रहता है।
लॉकडाउन की एक सीमा है, उससे पार देश को तालाबंद नहीं रखा जा सकता। फ्रांस और ब्रिटेन में भी एहतियात के ऐसे ही प्रयोग करते हुए तालाबंदी को खोलने के निर्णय लिए गए हैं। लॉकडाउन में दी गई छूट का गलत इस्तेमाल न करें क्योंकि आपकी एक गलती कई लोगों पर भारी पड़ सकती है। यह भी जान लेना चाहिए कि इस बीमारी की अभी कोई दवा नहीं है, ऐसे में केवल परहेज के जरिए ही इस बीमारी से बचा जा सकता है। थोड़ी सी लापरवाही भी कई जिंदगियों पर भारी पड़ सकती है। कुल मिलाकर ये मानकर चलना चाहिए कि लॉक डाउन भले ही खत्म हो जाये लेकिन कोरोना से बचाव के लिए सतर्कता आगे भी जारी रखनी होगी क्योंकि अब तो चिकित्सा जगत भी कहने लगा है कि जब तक इसका टीका (वैक्सीन) नहीं बनता तब तक इसे पूरी तरह रोक पाना नामुमकिन है। चीन के वुहान शहर में अभी तक कोरोना के नये मरीज मिल रहे हैं।
रिसर्चरों ने इमर्जिंग इंफेक्शस डिजीज पत्रिका में लिखा है कि व्यापक कांटेक्ट ट्रेसिंग, संपर्क वाले सभी लोगों की टेस्टिंग और तत्काल क्वारंटाइन से कोरोना वायरस को और आगे फैलने से रोकने में मदद मिली। यही रणनीति किसी भी भीड़ वाली जगह में वायरस के आउटब्रेक पर काबू पाने में कारगर हो सकती है। बहुत भीड़भाड़ वाले आयोजन भी रोगों के प्रसार का एक बड़ा कारण बन सकते हैं। अभी हाल में किए गए अध्ययन में एक चौंकाने वाली यह बात सामने आई है कि विदेशों में 25000 से अधिक लोगों की उपस्थिति वाले समारोहों से सांस की बीमारी का जोखिम बहुत बढ़ जाता है। दुनिया में फैली कोरोना वायरस की महामारी के संदर्भ में यह अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है। भारत में कोरोना के मामलों में जो वृद्धि हुई उसमें दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित मरकज मस्जिद में आयोजित तब्लीगी जमात का जलसा भी एक बड़ा कारण रहा।
जमीनी सच्चाई यह है कि लॉकडाउन खोलना सरकारी मजबूरी भी है, क्योंकि देश की लंबे वक्त तक तालाबंदी संभव नहीं है। यकीनन लॉकडाउन खुल जाए, लेकिन हमारी बदली हुई जीवन-शैली सामने आएगी। वायरस पलटवार भी करता है। ऐसा स्पेनिश फ्लू के दौरान भी हुआ था, जब जून, 1918 में वायरस का प्रकोप समाप्त मान लिया गया, लेकिन नवंबर में वह फिर फैलने लगा। एक किताब के मुताबिक, करीब शताब्दी पूर्व फैले उस फ्लू में करीब 1.80 करोड़ लोग मारे गए थे। लिहाजा कोरोना के संदर्भ में भी माना जा रहा है कि वह हमारी जिंदगी से अलग नहीं होगा। हमें कोरोना के साथ ही जीने की आदत डालनी पड़ेगी, लेकिन लॉकडाउन के बंधन अब खोल देने चाहिए।
राजेश माहेश्वरी
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