पांच मई को पेगोंग झील पर भारत-चीनी सैनिकों को आपसी झड़प व पत्थरों से मार-पिटाई के बाद अब लद्दाख में चीनी हेलीकॉप्टर भारतीय क्षेत्र तक घुस आए। एलएसी भारत व चीन के बीच करीब 3488 किलोमीटर की सीमा रेखा है जिसे कि भारत-चीन ने 1962 के युद्ध के बाद सीमा निर्धारण होने तक मान रखा है। दरअसल भारत व चीन के मध्य कोई सीमा थी ही नहीं, भारत की सीमा तिब्बत से लगती थी जिसे कि 1950 में चीन ने अपने कब्जे में कर लिया। इसके बाद भारत व चीन के बीच 1954 में पंचशील का समझौता हुआ, उस समझौते के अनुसार भारत व चीन ने तय किया कि वह एक दूसरे की सम्प्रभुता, एकता, अखंडता का सम्मान करेंगे, एक-दूसरे के प्रति आक्रामक नहीं होंगे। एक दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देंगे। एक दूसरे से सम्मान व परस्पर लाभकारी संबंध रखेंगे। अंत में शांतिपूर्ण रहते हुए सहअस्तित्व के साथ जीयेंगे।
1962 में चीन ने धोखे से भारत पर हमला कर दिया, भारत का जम्मू-कश्मीर का क्षेत्र अक्साई चिन उस हमले में चीन ने अपने कब्जे में कर लिया, इसी तरह चीन भारत के अरूणाचल प्रदेश व सिक्किम के कुछ भूभाग पर भी अपना दावा जता रहा है और अपने दावे का आधार वह इसे तिब्बत का भू-भाग होना बता रहा है। यहां भारत का पक्ष एकदम साफ है कि चीन तिब्बत पर आक्रमणकारी है, भारत को जो भू-भाग है वह सदियों से भारत के पास रहा है। इसके अलावा अन्य कई संधियां व समझौते हैं, जिन्हें चीन नहीं मान रहा। भारत-चीन के मध्य 2017 में डोकलाम का विवाद भी काफी तनावपूर्ण रहा तब भी भारत व चीन 73 दिन तक एक-दूसरे के सामने डटे रहे। डोकलाम में भारत भूटान के हितों की खातिर चीन के सामने डटा था चूंकि भूटान की अपनी कोई फौज नहीं है। भूटान की सुरक्षा जरूरतों को भी भारत ही पूरा करता है। भारत-चीन के बीच इस सीमा विवाद में कई सकारात्मक पहलू भी हैं, 1975 के बाद से भारत-चीन ने अपनी सीमा पर आज तक एक भी गोली नहीं चलाई है। कभी तनाव बढ़ता भी है तब दोनों देशों के सैनिक एक दूसरे को जोर जबरदस्ती से ही रोकते हैं, यहां तक कि दोनों देशों की अग्रिम पंक्ति के सैनिक अपने पास कोई हथियार भी नहीं रखते हैं। अगर कभी फौज के वरिष्ठ अधिकारी सीमा की पहरेदारी की निगरानी करने भी जाते हैं तब उनके अपने पिस्टल या रिवाल्वर की नली भी जमीन की ओर रखी जाती है।
सीमित विवाद की स्थानीय झड़पों को भी फ्लैग मीटिंग द्वारा दोनों देशों के बिग्रेडियर स्तर के अधिकारी शांत कर लेते हैं। लेकिन एक न एक दिन दोनों देशों को अपने सीमा विवाद को हल करना ही होगा। डोकलाम विवाद के बाद 5 मई का पेगोंग झील पर विवाद काफी चिंताए बढ़ाने वाला है। भले ही अक्टूबर 2019 में चेन्नई में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व चीनी राष्ट्रपति शी-जिनपिंग ने सेनाओं को रणनीतिक मार्गदर्शन देने व उसका पालन करने की सहमति बनाई थी परन्तु यह मार्गदर्शन शायद अभी तक दोनों तरफ की सेनाओं को मिला नहीं है। अन्यथा एक ही सप्ताह में भारत-चीन की सीमा पर तनावपूर्ण हलचल न होती। अभी कोरोना की महामारी ने भारत सहित चीन एवं सभी बड़े राष्ट्रो की अर्थव्यवस्थाओं को भारी नुक्सान पहुंचाया है। लेकिन भारत को बेहद सतर्क होने की आवश्यकता है चूंकि भारत की उत्तरी सीमा पर बैठा देश ज्यादा भरोसे लायक नहीं है।
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