पंजाब सरकार लॉकडाउन के दौरान राज्य में शराब की होम डिलीवरी देने की नीति बना रही है। शराब संबंधित एक्ट 1914 के अंतर्गत होम डिलीवरी नहीं की जा सकती, लेकिन शराब के ठेकों पर लंबी लाइनें लगना व कोरोना में आपसी दूरी रखने के नाम पर होम डिलीवरी करने के लिए सरकार प्रयासरत है। दरअसल पहले ही नशों के चलते पंजाब का धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक ढांचा भी शराब की होम डिलीवरी की अनुमति नहीं देता। फिर कांग्रेस ने सत्ता में आने से पूर्व स्वंय राज्य के ठेके हटाने का वायदा किया था, यह वायदा अपने आप में कांग्रेस के खिलाफ है।
प्रदेश में यदि शराब की होम डिलीवरी होती है तब इससे कांग्रेस की विचारधारा और वायदों का क्या होगा। कांग्रेस को यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि घरों तक शराब की सप्लाई करना उसे राजनीतिक तौर पर भारी पड़ेगा। जनता व विपक्ष भी कैप्टन सरकार को होम डिलीवरी के निर्णय पर घेर सकते हैं। पंजाब में भले ही कुछ लोग घर पर शराब चाहते होंगे, लेकिन पूरे पंजाब की यदि बात करें तब वह इसके सख्त विरोधी हैं। खुद कांग्रेस ने 2017 के विधान सभा चुनावों में अकाली-भाजपा सरकार के खिलाफ नशे को मुख्य मुद्दा बनाया था। सामाजिक तौर पर देखें तब पंजाब की आधी आबादी यानि महिलाएं शराब के खिलाफ हैं। राज्य के एक मंत्री और एक कांग्रेसी विधायक की पत्नी ने भी शराब की होम डिलीवरी का विरोध करते हुए सी.एम को फिर से मामले पर विचार करने के लिए कहा है। परंतु अफसोस महिलाओं की अपील पर मुख्यमंत्री ने विचार करना तो दूर, सीएम की जगह उनके सचिव द्वारा प्री-कैबिनेट मीटिंग में हिस्सा लेने पर उल्टे मंत्री दोफाड़ होकर बहस से बाहर निकल गए।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि शराब की आदत के कारण महिलाओं-बच्चों ने बड़ी पीड़ा झेली है। हर वर्ष पंजाब की सैंकड़ों पंचायतें अपने गांवों से शराब के ठेके बंद करने के लिए आबकारी विभाग के पास प्रस्ताव भेजती हैं, जिन्हें विभाग किसी न किसी तरह कानूनी दांव-पेंच से रद्द कर देता है। कानूनी पचड़ों के चलते पंचायतें चुप रह जाती हैं। अब यदि शराब की होम डिलीवरी के फैसले पर मुहर लग जाती है तब यह पंजाबी समुदाय व संस्कृति के लिए विनाशकारी होगा। सरकार राज्य में घर-घर शराब पहुंचाने की बजाय घर-घर शराब के नुक्सान की जानकारी पहुंचाए जो राज्य की दशा व दिशा बदल देगा।
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