उल्लेखनीय है मौसम बदलते ही बर्फ पिघलने का लाभ लेकर पाकिस्तान आतंकवादियों को सीमा पार से भारत में भेजने के काम में जुट गया है। सुरक्षा बलों की सतर्कता से यद्यपि उसे ज्यादा सफलता तो नहीं मिली लेकिन बीते एक माह में सेना और उसके सहयोगी बलों ने जिस तरह तलाशकर आतंकवादियों को मारा उससे ये साबित हो गया कि घाटी में आतंकवाद के बीज जमीन के भीतर दबे हुए हैं। 370 हटाये जाने के समय लगाये गये प्रतिबंध धीरे-धीरे शिथिल किये जाने के कारण जो आतंकवादी छिपे बैठे थे वे फिर सक्रिय होते लग रहे हैं। लम्बे समय तक घाटी के भीतर संचार सुविधा बंद रहने की वजह से भी देश विरोधी तत्वों का नेटवर्क कमजोर हो गया था।
जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद से ही कश्मीर में आंतकी घटनाओं पर एक तरह से विराम-सा लग गया था। छिटपुट घटनाओं को छोड़कर कोई बड़ी घटना प्रकाश में नहीं आई। वो अलग बात है कि सीमा पार से पाकिस्तान प्रायोजित आंतकी भारत की सीमा में प्रवेश की नाकाम कोशिशें करती रहे। लेकिन चौकन्नी भारतीय सेना और सुरक्षा बलों ने आंतकियों के नापाक मंसूबे कामयाब नहीं होने दिए। धारा 370 हटने के समय से ही घाटी में सुरक्षा बलों की भारी तैनाती के चलते माहौल काफी हद तक नियंत्रण में हैं। शांति के प्रयासों के चलते कई प्रमुख नेताओं को नजरबंद किया गया। तमाम शरारती तत्वों को जेलों में डाला गया। सरकार ने शांति का हरसंभव प्रयास किया। लेकिन हालिया घटनाओं के मद्देनजर ये कहा जा सकता है कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद फिर पैर पसारने लगा है। यद्यपि सुरक्षा बल ढूंढ-ढूंढकर उन्हें मार भी रहे हैं लेकिन इस दौरान हमारे अनेक जवान और सैन्य अधिकारी भी शहीद हो गए।
पाक प्रायोजित आंतकवाद से पिछले काफी लम्बे समय से लड़ाई लड़ रहे हैं। आज जब सारी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है और रमजान का पाक महीना चल रहा है, उस समय भी पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। आतंकियों की घुसपैठ और सुरक्षा बलों, सेना के जवानों पर लगातार हमले जारी हैं। बीते अप्रैल माह में ही हमारे 11 जवान शहीद हुए हैं। बीते शनिवार और सोमवार के बीच आतंकी हमलों में आठ रणबांकुरों ने शहादत दी। कर्नल और मेजर सरीखे सैनिक अफसर भी उनमें थे। बडगाम के ग्रेनेड हमले में भी दो जवान और चार स्थानीय नागरिक घायल हुए। हालांकि इस दौर में हमारे सैनिकों ने भी पलटवार करते हुए 29 आतंकियों को ढेर किया और डोडा से हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी तनवीर अहमद को गिरफ्तार किया है। वह जिंदा आतंकी पाकिस्तान की साजिशों और व्यूह-रचना को बेनकाब करेगा।
पिछले दिनों हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर रियाज नायकू के मारे जाने के पूर्व हंदवाड़ा में हुई मुठभेड़ में भी दो आतंकवादी मार गिराए गए। लेकिन कर्नल और मेजर रैंक के एक-एक अफसर सहित तीन जवानों की भी मौत हो गयी। उसके तुरंत बाद सीआरपीएफ की टुकड़ी पर ग्रेनेड से हमला हुआ जिसमें तीन जवान मारे गये। कुछ दिन पहले भी एक नजदीकी मुठभेड़ में सुरक्षा बलों के पांच लोगों की जान चली गयी। कोरोना संकट के दौरान इस तरह की गतिविधियों से पाकिस्तान की घटिया सोच जाहिर हो रही है। उसे ये मुगालता है कि इस समय भारत का समूचा ध्यान कोरोना से लड़ने में लगा है, इसलिए इसका लाभ उठाकर कश्मीर घाटी में दोबारा आतंकवाद की फसल उगाई जा सकती है। कश्मीर घाटी में अस्थिरता फैलाने के लिए पाकिस्तान द्वारा आतंकी तत्वों को समर्थन देने की बात तो अपनी जगह है ही, पर वहां हिंसा की घटनाओं में ताजा बढ़ोतरी की चौंकाने वाली बात यह है कि इनसे जुड़े ज्यादातर लोग स्थानीय हैं। आप किसी भी सैन्य कमांडर से पूछ लें, वे आपको बताएंगे कि किस तरह सुरक्षा बलों से मुकाबला कर रहे आतंकियों के बचाव में स्थानीय ग्रामीण आगे आ जाते हैं। गत दिवस नायकू को बचाने के लिए भी स्थानीय लोगों ने सुरक्षा बलों पर पथराव किया।
उल्लेखनीय है मौसम बदलते ही बर्फ पिघलने का लाभ लेकर पाकिस्तान आतंकवादियों को सीमा पार से भारत में भेजने के काम में जुट गया है। सुरक्षा बलों की सतर्कता से यद्यपि उसे ज्यादा सफलता तो नहीं मिली लेकिन बीते एक माह में सेना और उसके सहयोगी बलों ने जिस तरह तलाशकर आतंकवादियों को मारा उससे ये साबित हो गया कि घाटी में आतंकवाद के बीज जमीन के भीतर दबे हुए हैं। 370 हटाये जाने के समय लगाये गये प्रतिबंध धीरे-धीरे शिथिल किये जाने के कारण जो आतंकवादी छिपे बैठे थे वे फिर सक्रिय होते लग रहे हैं। लम्बे समय तक घाटी के भीतर संचार सुविधा बंद रहने की वजह से भी देश विरोधी तत्वों का नेटवर्क कमजोर हो गया था। लेकिन हाल ही के दिनों में पत्थरबाजी की घटनाएं नए सिरे से होने लगीं। इसी के साथ आतंकवादी कुछ हरकत में आये हैं। घुसपैठ भी तेज हुई है। लेकिन ये भी सच है कि आतंकवादी सरगना मारे भी जा रहे हैं।
रक्षा विशेषज्ञों का आकलन है कि यदि पाकिस्तान जंग चाहता है, तो भारतीय सेनाओं को भी उसके लिए तैयार रहना चाहिए। यकीनन केंद्र सरकार और सेना नेतृत्व के स्तर पर ऐसी किसी रणनीति पर विचार भी किया जा रहा होगा, जिसके तहत बालाकोट से भी तीखे और गहरे सबक सिखाए जा सकें। बेशक पाकिस्तान शैतान है और उसका यह वायरस कब तक फैलता रहेगा? हालांकि पाकिस्तान को फाटफ (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) के सामने अभी यह साबित करना है कि वह आतंकियों को प्रश्रय या समर्थन नहीं देता, बल्कि उसने आतंकी गुटों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की है। शायद इसीलिए कुछ हमले आरटीएफ बैनर के तले घोषित किए जाते रहे हैं।
यह लश्कर का नया नाम बताया जाता है, लेकिन ऐसे असंख्य साक्ष्य हैं कि पाकिस्तान आतंकियों को अब भी सीमापार से भेजता रहा है, क्योंकि गिरफ्त में आए जिंदा आतंकी खुलासा करते रहे हैं कि वे पाकिस्तान की अमुक जगह के निवासी हैं और खुफिया एजेंसी आईएसआई अब भी पैसे बांट रही है। सुरक्षा बलों द्वारा उनके नाम घोषित नहीं किये जाने की नीति भी लागू की गयी है। जिससे क्षेत्रीयजनों को भड़काने का षडयंत्र कामयाब न हो। नायकू के शव को दफनाने का काम भी सेना द्वारा ही किया गया जिससे जनाजे में जनसैलाब न उमड़ पड़े। ये बुद्धिमात्तापूर्ण फैसला है। पर्यटन घाटी के लोगों की आय का प्रमुख स्रोत है। ऐसे में वहां युवकों के पास कोई काम भी नहीं है। ऊपर से घाटी में कोरोना भी जोर मार रहा है। जबकि जम्मू और लद्दाख में उसका प्रकोप काफी कम है। ये देखते हुए कश्मीर में सैलानियों का आना इस वर्ष तो असम्भव दिखाई देता है। परिणाम स्वरूप बेरोजगारी में वृद्धि होती जा रही है जिसका लाभ लेकर पाकिस्तान नये सिरे से वहां अशांति फैलाने की कोशिश कर रहा है।
उसे लग रहा है कि कोरोना में उलझे रहने से शायद भारत सर्जिकल स्ट्राइक जैसा कदम उठाने से बचेगा। लेकिन भारतीय सुरक्षा बल भी हर आतंकवादी घटना का कड़ा जवाब दे रहे हैं। और ये भी चर्चा है कि किसी बड़ी जवाबी कार्रवाई की रूपरेखा बन रही है जिससे घाटी के भीतर मौजूद पकिस्तान समर्थकों को कड़ा सन्देश मिलने के साथ ही सीमा पार से होने वाले घुसपैठ रुक सके। लेकिन आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में जवानों और सैन्य अधिकारियों का मारा जाना बड़ा नुकसान होता है। बेहतर हो सैन्य बल ऐसी रणनीति बनायें जिससे कि मानवीय क्षति कम से कम हो। आतंकवादी जिस जगह छिपे होते हैं उसे उड़ा देना बेहतर विकल्प है। इजरायल भी ऐसा ही करता है। उम्मीद करनी चाहिए कि सरकार घाटी में आंतकवाद को दोबार सिर उठाने और पैर पसारने नहीं देगी।
आशीष वशिष्ठ
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