उन दिनों चर्चिल ब्रिटेन के रक्षा मंत्री थे। नौसेना अध्यक्ष ऐडमिरल लॉर्ड फिशर से उनकी नहीं बनती थी। फिशर भी कम ताकतवर नहीं थे। ब्रिटिश सत्ता के प्रभावशाली लोगों तक उनकी पहुंच थी। चर्चिल और फिशर की अनबन बढ़ती ही चली गई और चर्चिल को अपना पद छोड़ना पड़ गया। चर्चिल के लिए यह गहरा आघात था, फिर भी उन्होंने फिशर के बारे में कहीं भी एक शब्द उल्टा-सीधा नहीं कहा। कई लोग उन्हें उकसाते पर चर्चिल खामोश रहते।
अरसे बाद बातचीत के दौरान उनके किसी मित्र ने वह प्रसंग फिर छेड़ दिया और फिर फिशर की निंदा की। चर्चिल ने मित्र की बात सुनने के बाद स्पष्ट शब्दों में कहा-यदि मुझे फिर से वही पद मिल जाए तो मैं फिशर को बुला कर उन्हें फिर से वही काम सौंप दूंगा। एक कुशल प्रबंधक के रूप में आज भी मेरे दिल में फिशर के लिए इज्जत बरकरार है, उतनी ही मात्रा में। यह सुनकर चर्चिल के मित्र को बहुत आश्चर्य हुआ। लेकिन फिशर का रवैया एकदम उलटा था। कुछ सालों के बाद फिशर की जीवनी प्रकाशित हुई, जिसमें उन्होंने चर्चिल की कठोर आलोचना की थी। पुस्तक पढ़ते समय चर्चिल को कई बाते बेढंगी लगीं फिर भी उन्होंने उनकी निंदा में एक शब्द भी नहीं कहा। और तो और पुस्तक समाप्त कर चुकने पर उन्होंने पुस्तक की प्रशंसा में एक लंबा लेख तैयार किया और उसे छपने के लिए एक पत्रिका को भेज दिया। लोगों ने इस बारे में जब चर्चिल से पूछा तो उन्होंने कहा कि फिशर अपने स्वभाव के मुताबिक काम करें। मैं अपने स्वभाव से काम कर रहा हूं। किसी और के लिए मैं अपना स्वभाव क्यों बदल लूं।
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