सरसा। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने फरमाया कि इस घोर कलियुग में हर कोई अंदर-बाहर से बेचैन है, दु:खी है, परेशान है और उसका सबसे बड़ा कारण है आत्मिक कमजोरी। जब तक आत्मबल नहीं होगा, इन्सान अपने विचारों पर काबू नहीं पा सकता। वहीं जिनके अंदर आत्मबल होता है वो बुलंदियों को छू लेते हैं। यह आत्मबल बाहर से नहीं लाना पड़ता, इन्सान के अंदर ही सब कुछ है। होम्योपैथी, एलोपैथी, आयुर्वेदा, नैच्युरपैथी किसी भी पद्धति में आत्मबल बढ़ाने का टॉनिक नहीं है। इसको अपने अंदर से पाया जा सकता है और इसके लिए आत्मिक चिंतन जरूरी है। आत्मिक चिंतन के लिए प्रभु के नाम का सुमिरन करें। कामवासना, क्रोध, मोह, लोभ, अंहकार, मन व माया में इन्सान उलझा हुआ है। इन्सान अगर काम-वासना और अपने बुरे विचारों पर काबू पाना चाहता है तो जरूरी है कि आत्मबल को बढ़ाए। आत्मबल से ही कामवासना, विषय विकारों पर काबू पाया जा सकता है।
पूज्य हजूर पिता जी ने फरमाया कि इन्सान के लिए अपने विचारों को शुद्ध करना, काबू में लाना कोई आसान बात नहीं होती। हर कोई कहता है कि मैं बहादूर हूँ, पर किसी गरीब को या कमजोर को झुकाना कोई बहादुरी नहीं होती। अगर आप वास्तव में बहादूर हो तो बुरे विचारों से अपने आप को बचा कर देखो, अपनी आदतें बदल कर देखो। जो अपनी बुरी आदतें बदल लेते हैं वो सुरवीर, बहादूर कहलाते हैं। इस लिए काम वासना के कीड़े बनने के बजाय इस जवानी को देश के लिए, समाज के लिए लगाओ। उससे जो आपको आत्मिक शांति आएगी, वह कहने-सुनने से परे की बात है।
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