सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि मालिक का प्रेम जिन जीवों के हिस्से में आता है वो लोग बहुत भाग्यशाली होते हैं और प्रेम की यह दौलत भगवान की भक्ति के द्वारा ही संभव है। जो लोग मालिक की भक्ति और सृष्टि से नि:स्वार्थ भावना से प्यार करते हैं उन्हीं पर मालिक का रहमो-कर्म बरसता है। संत, पीर-फकीर अल्लाह, मालिक के वचन बताते रहते हैं। जो लोग अमल कर लेते हैं वो दोनों जहान की खुशियों के हकदार बन जाते हैं और जो अमल नहीं करते, वो अपने कर्मों की मार सहते रहते हैं। संतों का अपना कोई वचन नहीं होता। ‘जैसी मै आवै ख़सम की वाणी तैसड़ा करी ज्ञान बिलालो।’ भगवान जो ख्याल देते हैं, संत, पीर-फकीर वैसा ही प्रचार करते हैं। आप जी ने फरमाया कि संत, पीर-फकीर पहले से कोई तैयारी नहीं करते, कोई भाषण तैयार नहीं करते यानि मौके पर ही अल्लाह, मालिक जो ख्याल देते हैं पीर-फकीर सारी साध-संगत के सामने वो ख्याल रख देते हैं। जिस तरह के लोग बैठे होते हैं, वैसी ही बातें होती हैं। इस लिए इन्सान को यह चाहिए कि संतों के वचन सुनकर अमल करे। जो इन्सान वचनों को मानता है फिर चाहे कोई नजदीक हो या दूर हो, दूरी से कोई मतलब नहीं होता और वही इन्सान मालिक की कृपा-दृष्टि के काबिल बनता है।
आप जी ने फरमाया कि बेपरवाह जी ने यही वचन किए हैं कि आपस में नि:स्वार्थ प्रेम करो। यह नहीं होना चाहिए कि किसी का हाथ आपको लग जाए और आप आग-बबुला हो जाओ। यह सब मन की वजह से होता है। इसलिए आप मन की न सुनो।
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