कुटीर उद्योग में लगे सैकड़ों परिवार संकट में
अमरोहा (एजेंसी)। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा समेत तमाम जिलों में कोविड-19 महामारी ने ग्रामीण कुटीर उद्योग को झटका दिया है। महामारी से उत्पन्न हालात में ढोलक,बुनकर, सिलाई, दर्जी,लकडी और लोहे के कार्यों से जुडे गाडी लौहार जैसे स्वाभिमानी मेहनतकशों के समक्ष पैसे का संकट खड़ा हो गया है। तमाम हस्तशिल्पकार मुफ्त में भोजन लेने से भी परहेज करते हैं, ऐसे में समस्या गंभीर हो चली है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कोरोना वायरस से बचने के उपायों के मद्देनजर भले ही साधारण गमछे का प्रयोग करने की नसीहत दे रहे हों लेकिन गमछा (अंगौछा) बनाने वाले बुनकर और कारीगर भी लॉकडाउन के चलते संकट में हैं। ग्रामीण भारत में खेतिहर मजदूर और किसान कृषि कार्यों में गमछे का इस्तेमाल चेहरा ढकने के लिए सदियों से करते चले आए हैं।
कच्चे माल की सप्लाई और बिक्री न होने से कामकाज ठप्प
अमरोहा जिला काटन वेस्ट के मामले में दूर दूर तक प्रसिद्ध है। नौगावां सादात ,मंडी धनौरा समेत ग्रामीण इलाकों में बहुतायत में बुनकर अन्य परिधानों के अलावा रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाले गमछा भी बनाते हैं, लेकिन लॉकडाउन में कच्चे माल की सप्लाई और बिक्री न होने से उनका कामकाज ठप है। जो माल पहले से बनकर तैयार रखा है वो बाजार तक पहुंच नहीं पा रहा है।
मंडी धनौरा,चामुंडा मोहल्ले के पुलिस चौकी समीप निवासी मलवा टेलर, रईस अहमद कहते हैं, ‘कोरोना वायरस फैलने से रोकने के उपायों में गमछा सबसे कारगर बचाव माना जा रहा है। पूरे भारत में अचानक मांग बढने से किल्लत भी है, लेकिन जब हम कारीगर लोगों को काम के लिए माल ही नहीं मिलेगा तो कैसे अंगोछा बनाकर लोगों तक उपलब्ध हो पाएगा। जिले में हैंडलूम और कारखाने सिर्फ शोपीस बनकर रह गए हैं।
लॉकडाउन के चलते ढोलकर निर्माण ठप्प
उन्होने कहा कि उत्तर प्रदेश की महत्वाकांक्षी योजना वन डिस्ट्रिक वन प्रोडेक्ट में भी ढोलक निर्माण के लिए अमरोहा को जगह दी गई है लेकिन लाकडाउन के असर के चलते अब ढोलक निर्माण और बिक्री पूरी तरह ठप्प है। जिले के बुनकरों के मुताबिक उनके द्वारा तैयार किए गए उत्पादन भारत के कई राज्यों में जाते रहे हैं। हैंडलूम के लिए ज्यादातर कच्चा माल (सूत वाला धागा) कोलकाता और तमिलनाडु से आता है लेकिन लॉकडॉउन के चलते आवाजाही ठप है।
जबसे लाकडाउन लगा है, सूत, धागा, रंग कुछ नहीं आ पा रहा है। जितना सामान था उतने दिन घर में काम हुआ। अब घर पर हैं कोई काम नहीं लेकिन बुनने के लिए कच्चा माल भी नहीं। दूसरा जो हमारे पास पहले से माल बनकर तैयार है वो बाजारों में नहीं जा पा रहा है। जो पैसे थे वो खर्च हो गए। आगे तो पेट पालना मुश्किल हो जाएगा।
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