एक युवा अमीर अपने मित्रों सहित मौज मस्ती के लिए जर्मनी गया। उन्हे लगता था कि जर्मनी एक विकसित देश है और इसी कारण वहां के लोग विलासिता का जीवन जीते हैं। डिनर के लिए वे एक रेस्त्रां में पहुंचे। वहां एक मेज पर एक युवा जोड़े को मात्र दो डिश के साथ भोजन करते देख उन्हें बड़ा अचंभा हुआ। सोचा, यह भी कोई विलास है? एक अन्य टेबल पर कुछ बुजुर्ग महिलाएं भी बैठी थीं। वेटर, उनकी टेबल पर आकर हर प्लेट में जरूरत के अनुसार चीजें डाल जाता। कस्टमर अपनी प्लेट में कोई जूठन नहीं छोड़ रहे थे।
उन युवकों ने भी ऑर्डर दिया, परंतु खाने के बाद आदतन ढेरों जूठन छोड़ दी। बिल देकर चलने लगे तो वहां बैठी दो बुजुर्ग महिलाओं ने युवकों से शालीनता से कहा,’आपने काफी खाना बर्बाद किया है, ये अच्छी बात नहीं है। आपको जरूरत भर ही खाना ऑर्डर करना चाहिए था।’ युवकों ने गुस्से में कहा, ‘आपको इससे क्या कि हमने कितना ऑर्डर किया? कितना खाया और कितनी झूठन छोड़ी? आपका इससे क्या लेना देना, हमने पूरे खाने के बिल का तो भुगतान किया है।’
नोंकझोंक के बीच एक महिला ने कहीं फोन किया और चंद मिनटों में ही सोशल सिक्योरिटी विभाग के दो अफसर वहां आ पहुंचे और सारी बात जानने के बाद युवाओं को पचास यूरो की पर्ची काटकर जुर्माना भरने को कहा। अफसर सख्ती से बोला,’आप उतना ही खाना ऑर्डर करें, जितना खा सकें। माना कि पैसा आपका है परंतु देश के संसाधनों पर हक तो पूरे समाज का है! और कोई भी इन्हें बर्बाद नहीं कर सकता, क्योंकि देश में कितने ही लोग ऐसे हैं जो भूखे रह जाते हैं।’ यह सुनकर युवकों ने फिर कभी ऐसी गलती न करने का फैसला कर लिया।
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