अच्छी बात है कि टीवी पर दिखाए जा रहे सीरियल रामायण व महाभारत के जरिए भारत की नई पीढ़ी को अपने इतिहास को समझने और उसके उदात्त चरित्र को स्वीकारने का अवसर मिल रहा है। नि:संदेह उस भाव को हृदय में उतारने की क्षमता विकसित होगी। यह सच्चाई है कि भारत की नई पीढ़ी आधुनिक विश्व के विचारों से अभिभूत और विचरण की स्थिति में है। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि भारत की नई पीढ़ी अपनी ऐतिहासिकता से पूरी तरह परिचित नहीं है। ऐसे में यह दोनों सीरियल अपने रसभाव व स्वभाव से भारत की नई पीढ़ी को नए सांस्कारिक मूल्यों से अभिसिंचित करेगी।
आज भारत राष्ट्र कोरोना वायरस के खिलाफ जंग लड़ रहा है। केंद्र व राज्य की सरकारें नागरिकों की सुरक्षा व स्वस्थ जीवन के लिए प्रयासरत हैं। देश का नागरिक भी अपने राष्ट्रीय व नागरिक उत्तरदायित्वों का एक कर्मयोगी की तरह निर्वहन कर रहा है। यह स्थिति एक राष्ट्र की जीवंतता और निरंतरता के लिए शुभ संकते है। पर देश पर मंडराते विपदा से निपटने के लिए केवल संसाधन, चिकित्सा, वैज्ञानिक खोज, सरकारों की सहायता, नागरिक कर्तव्य और सेवाभाव ही पर्याप्त नहीं है। देश का मनोबल बनाए रखने के लिए आत्मबल की भी जरुरत पड़ती है। बिना आत्मबल के किसी भी पुरुषार्थ को साधा नहीं जा सकता। आत्मबल विकसित करने के लिए राष्ट्र के चरित्र को नैतिक संस्कारों से आबद्ध व संस्कारित करना पड़ता है।
अच्छी बात है कि भारत सरकार ने कोरोना वायरस से उपजी विपदा की इस घड़ी में टेलीविजन पर रामायण-महाभारत का पुन: प्रसारण का निर्णय लिया है। यह निर्णय इस अर्थ में ज्यादा महत्वपूर्ण है कि इससे भारतीय नागरिकों का मनोरंजन तो होगा ही साथ ही भारतीय संस्कृति और सभ्यता के उच्चतर आदर्शों व मूल्यों को समझने-परखने और उसे आत्मभाव में उतारने का संस्कार भी विकसित होगा। शास्त्र-पुराण भी कहते हैं कि नैतिक आत्मभाव ही उच्चतर आत्मबल को जन्म देता है। इस भाव से किसी भी आपदा-विपदा व संकट को आसानी से परास्त किया जा सकता है। कोरोना वायरस को हराने के लिए ऐसे ही आत्मबल की जरुरत है।
अच्छी बात है कि टीवी पर दिखाए जा रहे सीरियल रामायण व महाभारत के जरिए भारत की नई पीढ़ी को अपने इतिहास को समझने और उसके उदात्त चरित्र को स्वीकारने का अवसर मिल रहा है। नि:संदेह उस भाव को हृदय में उतारने की क्षमता विकसित होगी। यह सच्चाई है कि भारत की नई पीढ़ी आधुनिक विश्व के विचारों से अभिभूत और विचरण की स्थिति में है। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि भारत की नई पीढ़ी अपनी ऐतिहासिकता से पूरी तरह परिचित नहीं है। ऐसे में यह दोनों सीरियल अपने रसभाव व स्वभाव से भारत की नई पीढ़ी को नए सांस्कारिक मूल्यों से अभिसिंचित करेगी। उनके आत्मबल को बढ़ाएंगी। इसलिए और भी कि रामायण और महाभारत दोनों सद्ग्रंथ जो सीरियल के रुप में दिखाए जा रहे हैं वह अपने आप में संस्कारों की पाठशाला है। उसके किरदार नैतिक मूल्यों के जीवंतता को समेटे हुए हैं।
रामायण सीरियल की बात करें तो इसमें मयार्दा पुरुषोत्तम श्रीराम जी के जीवन मूूल्यों व आदर्शों पर आधारित एक ऐसी कथा है जिससे त्याग की भावना समाहित है। इस कथा में भारतीय संस्कृति पल्लवित व पुष्पित होने के साथ निरंतर प्रवाहमान होती रहती है। यह कथा मानव जीवन को सद्कर्मों पर आगे बढ़ने का संदेश देती है। रामयाण में श्रीराम जी को साक्षात परब्रह्म ईश्वर कहा गया है। उन्हें संसार के समस्त पदार्थों के बीज और जगत के सूत्रधार के रुप में चित्रित किया गया है। श्रीराम जी को वैदिक सनातन धर्म की आत्मा और परमात्मा कहा गया है। श्रीराम जी ने लंकापति रावण का वध कर मानव जाति को संदेश दिया कि सत्य और धर्म के मार्ग का अनुसरण कर हर कठिन विपदा को आसानी हराया जा सकता है। किस तरह धर्म के मार्ग पर चलकर जगत का कल्याण किया जा सकता है। सत्य के पर्याय श्रीराम जी सद्गुणों के भंडार हैं। वे अपने गुणों के जरिए दुनिया को संदेश देते हैं कि सद्गुणों के जरिए ही समाज व राष्ट्र का कल्याण संभव है। उन्होंने कहा है कि अहंकार से सिर्फ रावण रुपी विपदा का ही जन्म होता है।
कौशल्यानंदन श्रीराम जी अपने अनुज भरत, लक्ष्मण व शत्रुघन से अगाध प्रेम करते हुए दुनिया को संदेश देते हैं कि किस तरह परिवार और समाज को एकता के सूत्र में गूंथकर राष्ट्र को महान बनाया जा सकता है। श्रीराम जी ने अपने आचरण से संसार में बसुधैव कुटुंबकम की भावना का प्रसार किया। संसार आज भी उनका गुणगान आदर्श भाई, आदर्श स्वामी, परम मित्र, आदर्श राजा के रुप में करता है। श्रीराम जी को मयार्दा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है। इसलिए कि उन्होंने कभी और कहीं भी मयार्दा का उलंघन नहीं किया। माता कैकयी के एक आदेश पर सत्ता का परित्याग कर जंगल चले गए। जंगल में रहने वाले लोगों के साथ समरसता स्थापित कर उनका कल्याण किया। श्री राम को नीति कुशल व न्यायप्रिय राजा भी कहा गया गया है। ऐसा इसलिए कि उन्होंने स्वयं के सुखों का परित्याग कर लोककल्याण के मार्ग पर चलना स्वीकार किया। उनका रामराज्य जगत प्रसिद्ध है। इसलिए कि उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी नीति सम्मत बने रहे और जनता के सुख-दुख का ख्याल रखा। आज भारत राष्ट्र भी विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है। राष्ट्र के नीति-निर्णायकों को भी मयार्दा पुरुषोत्तम श्रीराम जी की तरह ही धैर्य और साहस का परिचय देते हुए अपने कर्तव्य मार्ग पर डटे रहना चाहिए।
श्रीराम जी ने समुद्र पर सेतु बांधकर वैज्ञानिकता और तकनीकी का अनुपम मिसाल कायम किया। समुद्र के अनुनय-विनय पर निकट बसे खलमंडली का संघार किया। आज भारत राष्ट्र को भी उन्हीं की तरह कोरोना जैसे राछस से निपटने के लिए साहसिक कदम उठाने होंगे। धर्म का अनुसरण करते हुए निकट बसे उन शत्रुओं का संहार करना चाहिए जो भारत राष्ट्र के जीवनरस में विषरस घोलने पर आमादा हैं। संसार की समस्त शुभता इसमें विद्यमान है। इसमें नैतिक और अनैतिक मूल्यों के बीच सतत संघर्ष निहित है और अंतत: विजय श्री नैतिक मूल्यों की होती है। असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म प्रभावी होता है। सत्यमेव जयते का उद्घोष होता है।
महाभारत के जरिए श्रीकृष्ण जी ने संसार को गीता का उपदेश दिया। उन्होंने कर्म, ज्ञान व भक्तियोग का अद्भुत संदेश देते हुए सुनिश्चित किया कि धर्म और पुनीत कर्मों के जरिए राष्ट्र व समाज का चरम उत्थान किया जा सकता है। श्रीकृष्ण जी ने मनुष्य को फल की चिंता किए बगैर कर्तव्य के पालन का उपदेश दिया। उन्होंने इसे निष्काम कर्म कहा। उन्होंने निष्काम कर्म के जरिए निराशा के भंवर में फंसे संसार को सफलता और असफलता के प्रति समान भाव रखकर कार्य करने की प्रेरणा दी। आज के मौजूदा संकट में भारत समेत संपूर्ण राष्ट्र को बिना फल की चिंता किए कोरोना रुपी आपदा-विपदा के खिलाफ ठीक उसी तरह जंग लड़ना होगा जिस तरह श्रीकृष्ण जी के प्रेरणास्वरुप अर्जुन ने कौरवों के विरुद्ध लड़कर उन्हें हराया और समाज में धर्म की स्थापना की।
भारत राष्ट्र के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देश को लॉकडाउन करने से पहले अपने संबोधन में कहा कि कोरोना के खिलाफ जंग महाभारत के तर्ज पर लड़ा जाना चाहिए। महाभारत का युद्ध 18 दिन चला और देशवासियों को कोरोना वायरस को हराने के लिए 21 दिवसीय महाभारत युद्ध लड़ना होगा। उचित होगा कि देश का हर नागरिक राष्ट्र रुपी रथ के सारथि व देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्नान पर खरा उतरे। सीरियल में दिखाए जा रहे रामायण-महाभारत सद्ग्रंथों के महान किरदारों के चरित्र और आत्मबल का अनुसरण कर राष्ट्र को कोरोना विपदा से मुक्त करने में सहयोग दें। देश को समझना होगा कि आपदा-विपदा हो या कोई आसुरी शक्ति उसे हराने के लिए संगठित होना जरुरी होता है।
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