मैनुअल स्कैवेंजिंग’ यानी एक इंसान द्वारा दूसरे इंसानों के मल की सफाई को समाज का सबसे घृणित कार्य माना जाता है। इसे करने वालों को भी समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है। लेकिन इस पेशे से समाज का एक समुदाय विशेष प्राचीन समय से ही जुड़ा हुआ है, जो समाज में उपेक्षित जीवन व्यतीत करता आया है। इस समुदाय के लोगों के लिए गरिमापूर्ण जीवन व्यतीत करना आज भी एक स्वप्न बना हुआ है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, देश में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान दम घुटने से पिछले तीन वर्षों में 271 लोगों की जानें चली गईं। आश्चर्य की बात है कि इनमें से 110 मौतें सिर्फ 2019 में ही घटित हुई हैं, जो 2018 में हुई 68 मौतों से 42 अधिक है।
किसी गंदगी से बजबजाते और बदबूदार सीवर के पास से आपको गुजरना पड़े तो आप क्या करेंगे? जाहिर है, झट से आप अपने नाक को रूमाल या किसी कपड़े से ढकेंगे और तेज कदमों के साथ उस स्थान से दूर जाने की कोशिश करेंगे। जरा सोचिए! इन सीवरों में बिना किसी सुरक्षा उपकरण के उतरकर घंटों तक दुर्गंध और जहरीली गैसों के बीच उसकी सफाई करने वाले सफाईकर्मियों की क्या हालत होती होगी?दरअसल सीवर की सफाई के क्रम में स्वच्छता के ऐसे अनेक सिपाहियों को अपनी जान गंवानी पड़ी हैं। जो मजदूर इस ‘गैस चैंबर’ से किसी तरह बचकर निकल आते हैं, उन्हें आजीवन स्वास्थ्य संबंधी अनेक व्याधियों का सामना करना पड़ता है। ‘मैनुअल स्कैवेंजिंग’ यानी एक इंसान द्वारा दूसरे इंसानों के मल की सफाई को समाज का सबसे घृणित कार्य माना जाता है। इसे करने वालों को भी समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है। लेकिन इस पेशे से समाज का एक समुदाय विशेष प्राचीन समय से ही जुड़ा हुआ है, जो समाज में उपेक्षित जीवन व्यतीत करता आया है। इस समुदाय के लोगों के लिए गरिमापूर्ण जीवन व्यतीत करना आज भी एक स्वप्न बना हुआ है।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, देश में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान दम घुटने से पिछले तीन वर्षों में 271 लोगों की जानें चली गईं। आश्चर्य की बात है कि इनमें से 110 मौतें सिर्फ 2019 में ही घटित हुई हैं, जो 2018 में हुई 68 मौतों से 42 अधिक है। इन आंकड़ों से जाहिर होता है कि सफाईकर्मियों की सुरक्षा से जुड़े सरकार के तमाम प्रयास और दावे सिफर साबित हुए हैं। दरअसल सीवर सफाई के लिए आधुनिक मशीनों की सुविधाएं नहीं होने, ज्यादातर जगहों पर अनुबंध की व्यवस्था होने तथा संवेदकों की लापरवाही की वजह से सफाईकर्मियों की मौतें हो रही हैं। लेकिन सवाल यह है कि ऐसी अत्याधुनिक मशीनें हमारे पास अब तक उपलब्ध क्यों नहीं है?क्यों आजादी के सात दशक बाद भी सीवर की सफाई के लिए हमें इंसानों पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है?
दरअसल देश के विभिन्न हिस्सों से आए दिन सफाईकर्मियों की मौत की खबरें आती रहती हैं। सेप्टिक टैंक और सीवर की सफाई के दौरान उसके भीतर मौजूद मिथेन, सल्फर व कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोक्साइड जैसी जहरीली गैसें उन्हें अपने आवेश में ले लेती है। जिससे तत्काल उसकी मौत हो जाती है। कई बार तो ऐसा होता है कि पहले एक सफाईकर्मी इन जहरीली गैसों की चपेट में आता है और फिर उसे बचाने के क्रम में दूसरों की भी जान चली जाती है। अगस्त, 2019 में गाजियाबाद में ऐसा ही हादसा हुआ जहां एक सफाईकर्मी को बचाने के क्रम में उनके साथ आए चार अन्य साथी भी अपनी जान गंवा बैठे। दरअसल मलबे से लबालब भरे सीवर मौत को आमंत्रण देते हैं। ऐसे में जो व्यक्ति बिना किसी सुरक्षा उपकरण के इसकी सफाई के लिए उतरता है, उसके बचने की संभावना कम ही होती है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि कानूनी रूप से इस प्रथा पर रोक लगाने के बावजूद चोरी-छिपे इस कार्य में मानव श्रम का बेधड़क इस्तेमाल किया जा रहा है। आखिर सफाईकर्मियों के जीवन के प्रति हमारा तंत्र असंवेदनशील क्यों है?
वर्ष 1993 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में देश में पहली बार मैला ढोने की प्रथा को रोकने के लिए कानून पारित हुआ था। जिसमें रोजगार के तौर पर मैला साफ करने, उसे उठाने और फेंकने की प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया था। उसके बीस साल बाद उक्त कानून में विस्तार एवं मजबूती के साथ ‘द प्रोहिबिशन ऑफ़ एंप्लॉयमेंट एज मैनुअल स्कैवेंजर्स एंड देयर रिहैबिलिटेशन एक्ट’-2013 पारित किया गया और सूखे शौचालयों के अतिरिक्त सीवरों और सेप्टिक टैंकों की सफाई तथा रेलवे पटरियों के मल की सफाई में मानव श्रम के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया गया। इस कार्य को कराने वाले एजेंसी के खिलाफ लाफरवाही के कारण मौत का मुकदमा दायर किया जा सकता है तथा दोषियों को गिरफ्तार किये जाने का भी प्रावधान है। इसके अलावे जो व्यक्ति इस पेशे में है, अगर वह यह कार्य करना छोड़ देता है तो उसे 40 हजार रुपये की त्वरित वित्तीय सहायता देने के अलावे स्वरोजगार हेतु पांच लाख रुपये के ॠण देने की भी व्यवस्था की गई। इस अधिनियम के तहत राज्य सरकार को ऐसे परिवारों के पुनर्वास का भी आदेश दिया गया है। यह कानून भारतीय इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ, क्योंकि इसमें मैनुअल स्कैवेंजिंग के सभी प्रारूपों पर निषेध और इसमें संलग्न परिवारों को सम्मानजनक जीवन दिलाने की सिफारिश की गई थी।
वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत सरकार’ मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सरकार को 1993 से लेकर अब तक सीवर में दम घुटने की वजह से मरे लोगों और उनके परिवारों की पहचान करके हरेक परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने के लिए भी कहा था। मालूम हो कि 2019 तक 786 सफाईकर्मियों की सीवर में उतरने से मौतें हुई हैं। हालांकि वास्तविक आंकड़ें इससे कई गुणा अधिक हैं। आलम यह है कि कानून की जानकारी नहीं होने तथा जागरूकता के अभाव में आज भी यह गैर-कानूनी प्रथा देश में हजारों लोगों की आजीविका का साधन बना हुआ है। सीवर की सफाई में उतरने के बाद व्यक्ति सकुशल बाहर आ पाएगा भी या नहीं, यह भी उसे विश्वास नहीं होता, लेकिन गरीबी और बेकारी की समस्या से जूझ रहे लोग थोड़े से पैसे की चाह में इस अमानवीय काम को करने तथा अपना जीवन दांव पर लगाने से जरा भी गुरेज नहीं करते! यह प्रथा अब बंद होनी ही चाहिए। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या भारत मैनुअल स्कैवेंजिंग को पूरी तरह खत्म कर सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई की ऐसी तकनीक का वहन नहीं कर सकता, जो मानव के लिए खतरनाक ना हो?
बहरहाल सीवर सफाई की समस्या का संभावित हल यही है कि इस क्षेत्र में केवल मशीनों का ही प्रयोग किया जाए। हालांकि ऐसी मशीनों की कीमत अभी 40 लाख रुपये के आसपास है, इसलिए इसकी संख्या देश में अभी कम ही है। जो लोग मैनुअल स्कैवेंजिंग का काम कर रहे हैं, उन्हें रोजगार के अन्य रूपों की तरह अग्रसारित करना उचित कदम होगा। जो समुदाय इस पेशे से जुड़ा हुआ है, उनके प्रति हमें भी अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। वे ‘अछूत’ नहीं हैं और ना ही छूआछूत और भेदभाव के हकदार हैं। साफ-सफाई का जिम्मा उठाकर वे हम पर उपकार ही तो कर रहे हैं। समाज में उपल्ब्ध अवसरों, सुविधाओं और संसाधनों तक उनकी भी समान पहुंच होनी चाहिए। इसके साथ ही, इस समुदाय के लोगों को भी अपने प्रति नजरिया बदलना होगा। इस पेशे में संलग्न लोगों को अन्य कामों की तरफ देखना चाहिए, जिसमें अधिक आमदनी हो जिससे वह अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर सके तथा शिक्षा और स्वास्थ्य पर पर्याप्त निवेश कर सम्मानजनक जीवन की ओर कदम बढ़ा सके।
सुधीर कुमार
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