केंद्र सरकार की मुस्तैदी ने येस बैंक को डूबने से बचा लिया है और अब ग्राहकों को 50,000 तक की निकासी की शर्त से भी राहत मिल जाएगी। इस मामले में भारतीय रिजर्व बैंक और भारतीय स्टेट बैंक की मेहनत रंग लाई है। येस बैंक की गाड़ी पटरी पर आ गई है लेकिन यह सवाल अहम है कि प्राईवेट बैंक की व्यवस्था को विश्वसनीय बनाने के लिए अभी सरकार को और कदम उठाने होंगे। येस बैंक मैनेजमेंट ने जिस प्रकार खुले दिल से कर्ज दिए, वह बैंक की कमजोर नीतियों और कार्यशैली का प्रमाण है।
देश के कई बड़े औद्योगिक क्षेत्रों के कारण बैंक के एनपीए का नुक्सान आम जनता को भुगतना पड़ता है। आल इंडिया बैंक आफिसर्ज एसोसिएशन ने 1967 की तरह प्राईवेट बैंक के राष्ट्रीयकरण की दलील दे रही है लेकिन यह समस्या का समाधान नहीं। आवश्यकता है निजी बैंकों की कार्यप्रणाली की सही निगरानी करने के लिए मजबूत अॅथारटी बनाने की। प्राईवेट बैंक अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा बन चुके हैं। एनपीए में सरकारी बैंक भी पीछे नहीं हैं फिर भी निजी बैंकों के प्रबंध को सभ्य बनाने के लिए विशेष जोर देना होगा। कालेधन पर नियंत्रण पाने के लिए कानून तो सख्त बना दिया गया लेकिन बैंकिंग सिस्टम की निगरानी के लिए ठोस तंत्र नहीं बन सका। काले धन का सम्बन्ध बैंकों के साथ रहा है। प्राईवेट बैंकों पर नोटबन्दी के दौरान नोट बदलने के आरोप लगते रहे हैं।
जनता का पैसा हड़पने वाले अपराधी विदेशों में जाकर मजे कर रहे हैं। ‘कर्ज लो और विदेश भाग जाओ’ का पैंतरा अपनाने वालों पर सख्त कार्यवाही होनी चाहिए। विजय माल्या, नीरव मोदी, ललित मोदी, मेहुल चौकसी सहित देश में बैठे उन लोगों के खिलाफ कार्यवाही जरूरी है जो बैंकों का हजारों करोड़ों रुपए खा गए। भले ही एक बार येस बैंक का मामला हल हो गया है लेकिन परन्तु यह बैंकिंग सिस्टम पर अविश्वसनीयता का प्रशन खड़ा करता है। आम ग्राहक जो निजी बैंकों की अधिक ब्याज पर कर्ज लेकर भागे जाते थे, अब वे भी स्टेट बैंक में पैसा जमा करवाते वक्त विशेषज्ञों की सलाह लेकर कदम उठाते हैं। बैंक पर एक दिन का ही अविश्वास बाजार को डगमगा देता है। येस बैंक के बुरे दौर से निवेशकों के अरबों रुपए डूब गए और लोग निवेश करने से ही भागने लगे। सरकार को लोगों के पैसे की सुरक्षा के साथ-साथ बैंकिंग सिस्टम की बेहतरी के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
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