एक प्रसिद्ध भविष्यवक्ता थे। एक दिन वे एक राजा के दरबार में गए और कहा- राजन्, मैं एक भविष्यवक्ता हूँ। मैं त्रिकाल की बात बता सकता हूँ। एक बार आपका भी भविष्य बताना चाहता हूँ। कृपया इसका अवसर प्रदान करें। यह सुनकर राजा ने कहा- आपकी बात मैं स्वीकार करता हूँ किन्तु अभी राजदरबार का समय समाप्त होने वाला है और मुझे नहीं लगता कि आप इतने कम समय में मेरा भविष्य बता सकेंगे। अत: आप कल प्रात: काल आ जाएँ। राजा की बात सुनकर भविष्यवक्ता चले गए। दूसरे दिन प्रात: जैसे ही भविष्यवक्ता दरबार में पहुँचे, उसी समय एक दरबान ने उन पर कोड़े बरसाना शुरू कर दिया। जब दरबान भविष्यवक्ता को पीटने के बाद रुका तो भविष्यवक्ता, राजा के पास गए, तब राजा ने व्यंग्य करते हुए कहा- जब स्वयं आपको अपना भविष्य ठीक से नहीं दिखाई पड़ता है तो आप दूसरों का क्या भविष्य बताएँगे? तब भविष्यवक्ता ने कहा- राजन् यहाँ आने से पहले मैंने एक कागज पर लिख दिया था कि आज मेरे साथ कुछ अशुभ होने की आशंका है और यह आशंका राजमहल में ही फलित होगी।
‘‘ज्योतिषशास्त्र एक विज्ञान है।’’ यहाँ शुभ-अशुभ के, संकेत मिलते हैं, उन्हें समझना पड़ता है। राजा ने कहा, मैं तुम्हें परखना चाहता था। आजकल कई व्यक्ति जिस प्रकार अपने अधूरे ज्ञान के आधार पर, दिखावे के ज्ञान के आधार पर प्रसिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं, मैं नहीं चाहता था कि मेरे द्वारा कोई ऐसा व्यक्ति सम्मानित हो जाए जो आगे जाकर गलत सिद्ध हो। इसी कारण मैंने तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार किया। राजा ने भविष्यवक्ता से क्षमा माँगी। उससे भविष्य की जानकारी लेकर राजा संतुष्ट हुआ और राजा ने भविष्यवक्ता का स्म्मान किया। हर व्यक्ति को यह जान लेना चाहिए कि वह जिस व्यक्ति को ज्ञानी समझ रहा है, वह वास्तव में ज्ञानी है भी या नहीं। कहीं हम ऐसे व्यक्ति को तो मान नहीं दे रहे जो उसका वास्तविक हकदार है ही नहीं।
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