एक बादशाह था। उसके पास एक बहुत बढ़िया अंगूठी थी, जिसमें बड़ा कीमती नगीना जड़ा था। दुर्भाग्य से उस बादशाह के राज्य में एक साल बड़े जोर का अकाल पड़ा। चारों तरफ तबाही मच गई। लोग भूखे मरने लगे। बादशाह ने अपने नौकरों को बुलाया और उन्हें अंगूठी देते हुए कहा- इसे ले जाओ, नगीने को बेचकर जो दाम मिले, उन्हे गरीबों में बाँट दो। बादशाह के सामने नौकर क्या कहते। उन्होंने अंगूठी का नगीना बाजार में जाकर बेच दिया और जो कुछ मिला, उसे गरीबों में बाँट दिया। एक आदमी ने यह देखा तो बादशाह से कहा-‘आपकी अंगूठी का नगीना अनूठा था। वैसा नगीना अब मिल नहीं सकता। आपने यह क्या किया उसे बिकवा दिया।’ बादशाह की आंखे भर आई और आँसू बहने लगे। उसने रूंधे गले से कहा-‘जब लोग भूखे मरते हों तो नगीना पहनना किस काम का। मैं रियाय का खिदमतगार हूँ, मुझे रियाय का दुख-दर्द पहले देखना चाहिए, अपना शौक व आराम बाद में।’ उस आदमी ने बादशाह को कहते हुए देखकर कहा-आप ठीक कहते हैं लेकिन …बादशाह ने बात काटते हुए कहा-‘इंसान वह अच्छा है, जो अपने आराम की जगह दूसरों के आराम को ज्यादा पसंद करे।’
आशावादी बनो:
यह कहावत सत्य है कि जो व्यक्ति जैसा होता है, वह दूसरों को वैसा ही देखता है। एक प्राचीन कथा से इस बात को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। एक बुद्धिमान व्यक्ति अपने घर के बाहर बैठा हुआ था। एक यात्री उधर से निकला और उसने उस व्यक्ति से पूछा-‘मै अपना गांव छोड़कर यहाँ बसना चाहता हूँ, सो आप बताइए कि यहाँ के लोग आप कैसे है ?’ बुद्धिमान व्यक्ति ने जवाब दिया-‘उस गाँव के लोग जैसे है, वैसे ही यहाँ के हैं।’ पर, वहाँ के लोग स्वार्थी और रूखे हैं। यात्री बोला। इस पर बुद्धिमान बोला-‘वैसे ही तुम यहाँ देखोगे।’ कुछ समय बाद दूसरे यात्री ने उस व्यक्ति के निकट आकर प्रश्न किया और उसका उत्तर भी वही पाया। जो एक यात्री ने कहा-‘वहाँ के लोग विन्रम, दयावान, चरित्रवान, ईमानदार और एक दूसरे की मदद् करने वाले है।’ बुद्धिमान व्यक्ति बोला-‘तब तो इस गांव में भी तुम्हें ऐसे ही व्यक्ति मिलेगें।’ किसी महान विचारक ने कहा है कि एक आशावादी व्यक्ति प्रत्येक स्थान पर हरी बत्ती देखता है, जबकि निराशावादी व्यक्ति स्टॉप वाली लालबत्ती देखता है, परन्तु बुद्धिमान व्यक्ति किसी रंग कि बत्ती नहीं देखता।
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