संसार में जितने भी सफल व्यक्ति या महापुरूष हुए हैं, इसलिए नहीं कि वे अलौकिक प्रतिभा के धनी थे अथवा साधन-संपन्न थे, बल्कि इसलिए कि वे महान् व्यक्तित्व के स्वामी थे। विश्व में महापुरूषों और सफल व्यक्तियों की जीवनियाँ हमें बताती है कि सभी ने अपने व्यक्तित्व का विकास कर जीवन को अनुशासित किया और उसे निश्चित दिशा तथा गति प्रदान कर वे अपने उद्देश्य तक पहुँचने में सफल हुए। असली विजेता वह है, जिसने एक सार्थक जीवन बनाने की कला सीखकर स्थाई सफलता हासिल की है। मूलत: व्यक्तित्व का संबंध उन गहराइयों से है, जो हमारी चेतना को नियंत्रित करती हैं, अर्थात् जो हर क्षण हमारे व्यवहार, आचरण और हमारे कार्यकलाप और क्रियाओं में अभिव्यक्त होती है।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि व्यक्तित्व का संबंध केवल व्यक्ति के बाहय गुणों से नहीं है, उसके आंतरिक गुणों से भी, जैसे चरित्र-बल, इच्छााशक्ति- आत्मविश्वास, रूचि, लगन, उत्साह, एकाग्रता आदि। यथार्थ में आंतरिक गुणों के विकास से ही आपके व्यक्तित्व को संपूर्णता प्राप्त होती है, जिसे कम्पलीट पर्सनैलिटी कहते हैं। चार्ल्स एम श्वैल ने कहा है, एक मनुष्य के लिए व्यक्तिव का वही महत्व होता है, जो एक फूल में सुगंध का।
महाभारत काल के एक अत्यंत गरीब व साधन हीन बालक एकलव्य के अंदर व्यक्तित्व निर्माण के सभी गुण मौजूद थे। उसमें एक सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी बनने की इतनी ऊँची ललक थी कि वह अपनी सकारात्मक सोच के साथ अंधकार में प्रकाश की किरण कर आभास करता हुआ एकाग्रचित और कड़े अभ्यास के बलबूते पर ही अंत में जीवन उददे्श्य तक पहुँचने में सफल हुआ था।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।