(Inflammatory speech)
नई दिल्ली (एजेंसी)। उच्चतम न्यायालय ने भड़काऊ और नफरत फैलाने वाले बयानों पर कार्रवाई के लिए विधि आयोग की सिफारिशों को लागू करने संबंधी याचिका सुनने से शुक्रवार को इन्कार कर दिया। अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने याचिकाकर्ता भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय से कहा कि वह जिम्मेदार पद पर बैठे लोगों की बयानबाजी से संबंधित मामले पर विचार कर रही संविधान पीठ के समक्ष अपनी बात रखें। संविधान पीठ बुलंदशहर दुष्कर्म मामले में सपा नेता आजम खान के बेतुके बयान को लेकर सुनवाई कर रही थी।
ऐसे मामलों में विधि आयोग की सिफारिशें लागू करने की मांग की है
उपाध्याय ने भड़काऊ भाषण देने वाले नेताओं के खिलाफ कार्रवाई को लेकर दिशनिर्देश जारी करने संबंधी याचिका 27 फरवरी को दायर की थी। उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा था कि भड़काऊ भाषण देने वाले नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए, साथ ही ऐसे मामलों में विधि आयोग की सिफारिशें लागू करने की मांग की है। याचिकाकर्ता ने 2017 की विधि आयोग की 267 वीं रिपोर्ट की सिफारशों को लागू करने की मांग की थी, जिसमें भड़काऊ भाषणों को परिभाषित किए जाने तथा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 153 सी और 505 ए जोड़ने की सलाह दी गई थी।
याचिकाकर्ता ने कहा था कि राजनेताओं द्वारा लगातार दिए जा रहे भड़काऊ भाषण की वजह से आज देश में हिंसा की स्थिति उत्पन्न हो गई है, हर रोज जाति धर्म के आधार पर हिंसा कहीं ना कहीं देखने को देश में मिलती आ रही है और इसकी मुख्य वजह राजनेताओं द्वारा दिया जाना हेट स्पीच है, क्योंकि यह कही भी परिभाषित नहीं है और यही वजह है कि राजनेता बिना किसी रोक-टोक के हेट स्पीच का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि इस मामले में 2017 में विधि आयोग ने एक विस्तृत रिपोर्ट उच्चतम न्यायालय के कहने पर सरकार को सौंपी थी लेकिन आज तक सरकार ने इसे लागू नहीं किया।
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