पिछले दो दिनों में संसद व विधान सभा की मर्यादा को नेताओं ने जो ठेस पहुंचाई वह बहुत ही निंदनीय है। विपक्षी दलों के हंगामा के बीच लोकसभा जनरल सचिव स्नेह लता को सुरक्षा घेरे में बाहर लाया गया। सदन के भीतर विरोधी पार्टियों ने बैनर लहराकर सदन को शहरों के धरने वाला चौंक बना दिया है। आखिर स्पीकर लोकसभा ओम बिड़ला को सख्त लहजे में चेतावनी देनी पड़ी कि बैनर लहराने वालों को निलंबित कर दिया जाएगा।
यही हाल बुधवार को पंजाब विधान सभा में देखने को मिला जहां कई कांग्रेसी विधायकों व एक अकाली विधायक के बीच हाथापाई हुई। अकाली विधायक ने एक मंत्री पर गाली देने के आरोप लगा दिए जबकि शिकायत करने वाले अकाली विधायक के खिलाफ निंदा का प्रस्ताव पारित किया गया। भले ही संसद हो या राज्य की विधान सभा दोनों विचार व मंथन करने के स्थान है जहां तर्क और तथ्यों के साथ बात होनी चाहिए लेकिन सांसदों और विधायकों ने इसे केवल हंगामे व झगड़ा करने का स्थान बनाकर रख दिया है।
नेता एक दूसरे पर हमला करने से भी गुरेज नहीं करते, केवल मार्शलों के कारण ही कोई जानी नुक्सान होने या घायल होने से बच जाता है। सदन की मर्यादा को ठेस पहुंचाने की यह कोई नई घटना नहीं। हर पार्टी जब सत्ता से बाहर होती है तब विरोध के नाम पर गैर-संवैधानिक तरीके से हंगामा कर सदन की करोड़ों रुपए से चलने वाली कार्यवाही स्थगित की जाती है। सुधार की गुंजाईश बहुत कम नजर आ रही है क्योंकि सुधार का प्रचार या अपील केवल एक परंपरा बनकर रह गए हैं।
हर बार सत्र शुरू होने से पहले ही स्पीकर सभी पार्टियों के साथ मीटिंग कर सदन की कार्यवाही सभ्य तरीके से चलाने के लिए उनसे वायदा लेता है लेकिन यह वायदे या अपील कभी सिरे नहीं चढ़ पाते। कई बार प्रधानमंत्री द्वारा भी अपील की गई लेकिन मामला ज्यों का त्यों चल रहा है। भारत सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है जहां लोगों द्वारा चुनी गई देश की सबसे बड़ी पंचायत में कानून बनाने के लिए चर्चा होनी होती है। हालात यह हैं कि हंगामों के कारण बजट सहित अनगिनत बिल बिना बहस के पारित हो जाते हैं।
कई बिल तो कुछ सैकिंड में ही पास हो जाते हैं जिनके अच्छे-बुरे होने की चर्चा लोगों तक नहीं पहुंचती। संसद देश का आईना है जब लाखों लोगों के चुने हुए नुमाइंदे ही जिम्मेदारी वाला व्यवहार नहीं करेंगे तब आम जनता के लिए आदर्श कौन बनेगा? राजनीतिक गिरावट का ही परिणाम है कि देश सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर भी पिछड़ता जा रहा है। सांसदों का व्यवहार जनता के लिए आदर्श व मिसाल कायम करने वाला होना चाहिए।