चीन में कोरोना वायरस कहर बनकर आया है। हजारों लोग इसकी चपेट में आये। यह एक भयंकर महामारी की तरह फैला और दूसरे देशों में इसके फैलने की संभावना है। भारत जैसे देश में जहां अस्पतालों में बुनियादी सुविधाओं की कमी है, डॉक्टरों की कमी है, वहां कोरोना जैसे बीमारियों से निपटना एक मुश्किल काम है। स्वास्थ्य मंत्रालय को ऐसी बीमारियों से निपटने के लिए तैयार रहना होगा और विकसित देशों की चिकित्सा पद्धति को अपनाना होगा। उससे पहले अस्पतालों को चुस्त-दुरुस्त करने की जरूरत है।
डॉ. श्रीनाथ सहाय
चीन में फैला कोरोना वायरस अब धीरे-धीरे दुनिया के कई दूसरे देशों में फैल गया है। चीन में हजारों की जान ये जानलेवा वायरस अब तक ले चुका है। भारत में भी अब तक इसके तीन मामले सामने आ चुके हैं। कोरोना वायरस (सीओवी) का संबंध वायरस के ऐसे परिवार से है, जिसके संक्रमण से जुकाम से लेकर सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या हो सकती है। इस वायरस को पहले कभी नहीं देखा गया है। इस वायरस का संक्रमण दिसंबर में चीन के वुहान में शुरू हुआ था। डब्लूएचओ के मुताबिक, बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ इसके लक्षण हैं। अब तक इस वायरस को फैलने से रोकने वाला कोई टीका नहीं बना है। दुनिया भर में कोरोना वायरस के केस लगातार सामने आने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्लूएचओ ने कोरोना वायरस को अंतर्राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया है।
कोरोना वायरस अगर सभी देशों में नहीं तो ज्यादातर देशों मे फैल सकता है। ये विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया चेतावनी है। फिलहाल अगर अंटार्कटिका को छोड़ दिया जाए तो कोरोना का संक्रमण सभी महाद्वीपों में फैल चुका है। चीन से उपजा यह वायरस अब ब्रिटेन, अमरीका, जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस, थाईलैंड, ईरान, नेपाल और पाकिस्तान जैसे कई देशों तक पहुंच चुका है। कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा ज्यादा से बढ़कर बहुत ज्यादा हो गया है। जिस तरह अलग-अलग देशों में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं वो जाहिर तौर पर चिंताजनक है। ऐसे में भारत भी इसके खतरे से अछूता नहीं है। मगर दूसरे कई देशों में जहां कोरोना संक्रमण को लेकर सतर्कता का माहौल देखा जा रहा है, वहीं भारत अब भी बेपरवाह नजर आता है। भारत सरकार की ओर से जारी की गई एक विज्ञप्ति के अनुसार अभी तक भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण का एक भी बड़ा मामला सामने नहीं आया है. लेकिन सवाल यह है कि भारत बड़े मामले का इंतजार क्यों कर रहा है?
देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। हमारे यहां तो कई बीमारियां तो गरीबी, अशिक्षा, साफ-सफाई एवं सेहत के प्रति उदासीनता की वजह से फैलती हैं। जहां एक ओर भारत खुद छोटी-मोटी बीमारियों से निपटने में सक्षम नहीं हो पाया है, वहीं कोरोना वायरस से निपटना बहुत मुश्किल है। आज भी देश के कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां चिकित्सा सुविधाएं न के बराबर हैं। न तो पर्याप्त जांच के इंतजाम हैं और न ही चिकित्सक। डेंगू से निपटने में नाकाम रहने वाला स्वास्थ्य विभाग संसाधनों के अभाव में कोरोना वायरस से कैसे निपटेगा, कहना मुश्किल है।
चीन में कोरोना वायरस की वजह से 47 और लोगों की मौत हो चुकी है। और इसके साथ ही इस प्रकोप के कारण मरने वालों की संख्या बढ़कर 2,835 हो गई है, जबकि कन्फर्म मामलों की संख्या बढ़कर 79,251 तक पहुंच गई है। चीन के नेशनल हेल्थ कमीशन के स्वास्थ्य अधिकारियों ने बीते दिनों जानकारी दी है कि चीन में कोरोना वायरस संक्रमण के 427 नए कन्फर्म मामलों और इस कारण 47 लोगों की मौत की जानकारी मिली है। नेशनल हेल्थ कमीशन के अनुसार, हुबेई प्रांत इस वायरस का मुख्य केंद्र है और यहां से 45 जबकि बीजिंग और हेनान में एक-एक की मौत हुई है। मीडिया रिपोर्ट के अनुार चीन में अब तक ठीक होने के बाद कुल 39,002 लोगों को अस्पताल से छुट्टी दी जा चुकी है। कमीशन ने कहा कि 658,587 लोगों के संक्रमित मरीजों के करीबी संपर्क में होने का पता चला है, उनमें से 10,193 को पिछले दिनों चिकित्सा निगरानी से छुट्टी दे दी गई है, जबकि 58,233 अन्य अभी भी चिकित्सा निगरानी में हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि चीन में फैले कोरोना वायरस के डर से सारी दुनिया भयाक्रांत है। इस स्थिति में भारत की लचर स्वास्थ्य सेवाओं के दम पर मुकाबला मुश्किल है। आंकड़ों के आलोक में अगर बात की जाए तो बिहार जैसे राज्यों में 28391 लोगों पर मात्र एक डॉक्टर है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रति 1000 लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए। बकौल केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री भारत में 14 लाख डॉक्टरों की व 64 लाख नर्सों की कमी है। डॉक्टरों के अभाव में डायबिटीज व हृदय रोगियों की संख्या दोगुनी हो गई है। उस स्थिति में कोरोना जैसी महामारी फैलने पर, उससे हम कितना मुकाबला कर सकते हैं, यह बता पाना बहुत कठिन है। चीन में जन्मे कोरोना वायरस का खौफ भारत में अधिक है। इसका कारण हमारी सघन आबादी और नकारा सरकारी चिकित्सीय व्यवस्था है। इस बात में दो राय नहीं कि यदि देश में कोई महामारी आती है तो उस पर काबू पाना बेहद जटिल होगा। संक्रमण को फैलाने या रोकने में किसी भी देश का रहन-सहन, तौर-तरीके और कार्यशैली का अधिक योगदान होता है। हमारे देश में सामान्य रोगों के उपचार के लिए मरीजों को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है, ऐसे में अगर कोई जानलेवा महामारी देश में प्रवेश करती है तो लाखों जानें जाना निश्चित है।
जिला स्तर के अस्पताल की दयनीय स्थिति के दृष्टिगत महामारियों से मुकाबले की हमारी तैयारी स्वयं दृष्टिगोचर हो जाती है। स्वतंत्रता के पश्चात सरकार और विपक्ष अनेक लोकलुभावन वादे करते रहे हैं, लेकिन बीमार और खस्ताहाल अस्पतालों का इलाज करने में विफल रहे हैं। राजनीतिक दलों, केंद्र और राज्य सरकारों को एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप से राजनीतिक लाभ लेने की जगह धरातल पर स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार का प्रयास करना वक्त की मांग है। अस्पतालों में कोरोना वायरस जैसे संक्रमणों से निपटने के लिए सम्बंधित सुविधाएं और उपकरण अविलंब उपलब्ध कराए जाने की आवश्यकता है। कोरोना वायरस के प्रकोप से दो सीख मिलती हैं। एक तो विश्व अर्थव्यवस्था से सीमित जुड़ाव रखा जाए और दूसरा पर्यावरण को हद से ज्यादा क्षति न पहुंचायी जाये। देश में उचित चिकित्सा सुविधा, डॉक्टरों तथा नर्सों के अभाव को पूरा करना होगा। ऐसी महामारियों से जूझने के लिए हमें समय रहते अधिक तैयारी करने की जरूरत है।
पर्याप्त प्रशिक्षण, डॉक्टर एवं जनता की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी ताकि आने वाली ऐसी बीमारियों से निपटने के लिए आग लगने पर कुआं खोदने वाली स्थिति पैदा न हो। भारत से बेहतर चिकित्सा सुविधाओं और रोकथाम के हरसंभव उपाय करने के बावजूद चीन कोरोना वायरस से बुरी तरह जूझ रहा है और उससे होने वाली मौतों को रोकने मे सीमित तौर पर ही सफल रहा है। भारत के पास चीन जैसी क्षमता नहीं है कि छह दिन में अस्पताल खड़ा कर दे। भारत भी डेंगू, चिकनगुनिया, जापानी बुखार जैसी महामारियों से सालों से जूझ रहा है लेकिन उन पर पूरी तरह काबू नहीं कर पाया। किसी भी बीमारी को महामारी बनने से रोकने के लिए पर्याप्त मात्रा में डाक्टर और आधारभूत चिकित्सा सुविधाएं होनी जरूरी हैं। इसके लिए जन भागीदारी जरूरी है। सरकार को भी समय रहते जरूरी इंतजाम करने चाहिए।
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