Zinc Fertilizer | आरटीआई कार्यकर्ता राकेश कुमार बैंस ने कार्रवाई के नाम महज खानापूर्ति का लगाया आरोप
कुरुक्षेत्र(सच कहूँ/देवीलाल बारना)। कृषि उत्पादों से जुडे (Zinc Fertilizer)एक मामले में आरटीआई में खुलासा हुआ है कि पिछले सात सालों में 30 जिंक बनाने वाली कंपनियों से मात्र 73 सैंपल ही भरे गए। इतना ही नहीं आरटीआई कार्यकर्ता राकेश बैंस द्वारा विभाग से ली गई आरटीआई में यह भी खुलासा हुआ है कि जिन खाद विक्रेताओं के पास जिस कम्पनी का ब्रांड बेचने की अनुमति ही नहीं थी उनके भी सैम्पल भरे गए हैं। जिन खाद विक्रताओं के लाईसेंस खत्म हो चुके थे उनके भी सैम्पल भरे गए। वहीं आरटीआई में खुलासा हुआ कि जिंक बनाने वाली एक ही कम्पनी के ज्यादातर सैम्पल भरे गए।
सैंपलों के खेल में भ्रष्टाचार का खेल: राकेश बैंस
आरटीआई कार्यकर्ता व भारतीय किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी राकेश कुमार बैंस ने बताया कि हरियाणा में नकली जिंक ओर उर्वरक(Zinc Fertilizer) बेचने को लेकर आ रही किसानों की शिकायतों के मध्यनजर उन्होंने उप-निदेशक कृषि एंव कल्याण विभाग कुरुक्षेत्र के कार्यालय से 9 सितंबर 2019 को सूचना के अधिकार 2005 के तहत कुछ जानकारी मांगी गई थी। राकेश ने बताया कि जिंक के सही सैम्पल नहीं लिए गए। यदि लिए गए केवल खानापूर्ति हेतू लिए गए हैं। उन्होंने आरोप लगाया की सैम्पलों के खेल में भ्रष्टाचार का खुला खेल खेला गया जिसकी एक शिकायत जांच हेतू सरकार के पास भेजी गई है।
लाइसेंस खत्म होने के बाद भी बेची जा रही जिंक उर्वरक
बैंस ने बताया की सामने आया की जिन दुकानदारों के जिंक के सैम्पल लिए गए उन दुकानदारों के पास जिंक खाद बेचने के लाइसेंस खत्म थे। ऐसे में लाइसेंस खत्म होने के उपरांत उन दुकानदारों के पास किसी भी प्रकार की जिंक बेचने की अनुमति नही थी ओर न ही किसी प्रकार से बिल काटने की कोई अनुमति होती है। तब उन दुकानदारों से सैम्पल किस आधार पर लिए गए यह जांच का विषय है। ऐसे दुकानदारों पर विभागीय कानूनी कार्यवाही करते हुए उन दुकानदारों की दुकानें सील क्यों नहीं की गई?
किस साल में कितने लिये गये सैंपल
साल सैम्पल
- 2013-14 26
- 2014-15 16
- 2015-16 11
- 2016-17 06
- 2017-18 10
- 2018-19 4
सैंपलों की ये है रिपोर्ट
- आरटीआई मे मिली जानकारी के अनुसार 7 सालों में कुल 73 सैम्पल में से मात्र 7 सैम्पल फेल हुए।
जिनमें से 3 कंपनियों के सैम्पलों को दोबारा भरा दर्शाया गया। जिसे बाद में पास पाया गया। एक दुकानदार को चेतावनी देकर छोड़ा गया, बाकी 3 पर कोर्ट केस हुआ। बैंस ने आरोप लगाया कि सैंपल भरते समय यह भी नहीं देखा गया कि किस दुकानदार के पास किस कंपनी का जिंक बेचने की अर्थोरिटी है।
लगभग 11 वर्षों से है जिले में एक ही क्वालिटी कंट्रोल ऑफिसर
राकेश बैंस ने बताया कि जिले में विभाग के सभी नियमों को ताक पर रखकर क्वालिटी कंट्रोल ऑफिसर डा. जितेंद्र मेहता 10 साल 7 महीने 23 दिन से जिले के क्वाल्टी कंट्रोल अधिकारी की सीट पर कार्यरत रहे हैं। जबकि विभाग से मिली मौखिक विभागीय नियमावली अनुसार कोई भी क्वाल्टी कंट्रोल अधिकारी 3 साल ही एक स्थान पर कार्यरत रह सकता है जबकि डॉ. जितेंद्र मेहता 7 नवंबर 2008 से 2 जुलाई 2014 तक 5 साल 5 महीने 23 दिन रहे इसके बाद 14 दिन के तबादले बाद ही 16जुलाई 2014 से 07 अगस्त 2015 यानि 1 साल 21 दिन फिर मात्र 60 दिन के तबादले के बाद 6 अक्तूबर 2015 से अब तक कार्यरत हैं।
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