जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा है, ‘स्वतंत्रता का अर्थ उत्तरदायित्व है। इसलिए अधिकांश लोग इससे डरते है।’ चालीस साल पहले आधुनिक युग में चिंतक जे.कृष्णामूर्ति द्वारा संचालित विद्यालय की एक बारह वर्षीय छात्रा ने अपने अध्यापक से निवेदन किया, ‘मेरी प्रबल इच्छा है कि मैं स्वतंत्रता का उपभोग करती हुई जीवन व्यतीत करूँ। मैं जब चाहूँगी कक्षा में आऊँगी और जहाँ जाने का मन होगा, वहाँ जाऊँगी।’
अध्यापक ने बड़े स्नेह के साथ उत्तर देते हुुए कहा कि, ‘यदि स्वतंत्रता के बारे तुम्हारी यही अवधारणा है तो तुम जो चाहो वो करो, परंतु अपने शरीर की सुरक्षा के संबंध में पूरी सावधान रहना।’ बालिका चली गई, लेकिन आधा घंटा व्यतीत होने से पहले ही वह लौट आई। इसका कारण जब पूछा गया, तब उसने उत्तर दिया कि , ‘इस स्वलप अवधि मेें मैंने अनुभव किया कि स्वतंत्र होने का मतलब है अपने विचारों और एव कार्यों कि परिणाम स्वंय ही भोगना, इसके लिए कोई अन्य व्यक्ति उत्तरदायी नहीं होगा। आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली बालिका की उक्त अनुभूति यह स्पष्ट करती है कि जवीन में स्वतंत्रता का अर्थ आत्मानुशासन। स्वतंत्र वातावरण में सत्य एवं ईमानदारी के बल पर श्रम करते हुए सभी सकारात्मक विचार एवं कार्य संपन्न होते हैं। इसलिए अंग्रेजी के सुविख्यात कवि जॉन मिल्टन ने लिखा है कि ‘जब लोग स्वतंत्रता-स्वतंत्रता चिल्लाते हैं, तब उनका अभिप्राय उच्छृंखलता से होता है, क्योंकि स्वतंत्रता से प्रेम करने से पहले व्यक्ति को ज्ञानवान और नेक होना चाहिए।’
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