एआईएमआईएम के मुंबई के पूर्व विधायक वारिस पठान के आपत्तिजनक बयान की चारों तरफ निंदा हो रही है। पठान का बयान धार्मिक तौर पर नफरत फैलाना वाला है। उसने 15 करोड़ मुस्लमानों को 100 करोड़ पर भारी पड़ने का बयान दिया है। पठान के बयान की निंदा केवल विपक्षी पार्टियों ने ही नहीं बल्कि अपनी पार्टी ने भी की है। कुछ लोगों ने उसके बयान का जवाब और उसकी सख्त भाषा में देकर वही गलती दोहराई है जो कि पठान कर चुका है।
बड़ी हैरानी की बात है कि एक तरफ वारिस पठान सीएए का विरोध इस आधार पर कर रहा है कि यह कानून साम्प्रदायिकता फैलाता है और वह भाजपा को साम्प्रदायिक पार्टी करार देता है लेकिन खुद वारिस भी साम्प्रदायिकता फैला रहा है जब बयान की आलोचना शुरू हुई तो पठान अन्य नेताओं की तरह मक्कारी के साथ कह रहा है कि उसने किसी धर्म का नाम ही नहीं लिया। राष्ट्रीय जनता दल ने भी पठान के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। अच्छी बात है कि एआईएमआईएम पार्टी के प्रमुख असुद्दीन ओवैसी ने पठान पर मीडिया के साथ बातचीत करने पर पाबंदी लगा दी है। जरूरी है कि मतदाता भी ऐसे नेता को भविष्य में सबक सिखाएं।
दरअसल किसी भी कानून का विरोध करने का अधिकार हर नागरिक को है लेकिन अवसरवादी नेता विरोध की आड़ में राजनीति चमकाने के लिए देश के अमन, भाईचारे को दाव पर लगाने पर भी संकोच नहीं करते। लेकिन अब जमाना बदल रहा है व अवसरवादी नेताओं की बयानबाजी फलदायक होने की बजाय उनके लिए खतरा ही साबित होती जा रही है। कांग्रेस, भाजपा समेत अन्य पार्टियां भी विवादित ब्यान देने वाले नेताओं से पीछा छुड़ाने लगी हैं। अब चुनावों में जीत-हार की समीक्षा के समय अच्छे बुरे ब्यानों पर सवाल उठने लगे हैं तथा कईयों की क्लास भी लग चुकी है। कई नेता घरों में बैठ चुके हैं व उनका राजनैतिक कैरियर समाप्त हो चुका है।
दरअसल विधानसभा चुनाव हार चुका वारिस पठान भी विवादों भरे ब्यान देकर अपनी गुम हुई राजनीतिक जमीन की तलाश कर रहा है पर वर्तमान समय में यह उसका भ्रम ही है। आम जनता का भी फर्ज है कि वह मौकापरस्त नेताओं की ब्यानबाजी को नजरअंदाज करके देश की एकता व भाईचारे को बरकरार रखें। यदि पार्टियां विवादित ब्यान देने वाले नेताओं की पार्टी से छुट्टी करे तो इसका अच्छा असर हो सकता है। पार्टियों की यह नैतिक जिम्मेदारी भी है कि वह अपने नेता के लिए मर्यादा जरूर तय करें।
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