जमींदोज हो रही ‘इमारतों का कहर’

Building Collapse - Sach Kahoon news

विगत दिनों खरड़ (मोहाली) में एक तीन मंजिला इमारत के जमींदोज होने से एक व्यक्ति की मौत हो गई। जमींदोज होने वाली इमारत के साथ एक बेसमैंट बनाने के लिए की जा रही खुदाई के कारण यह दु:खद हादसा घटित हो गया और इसमें कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। इमारत खाली होने के कारण बड़े नुक्सान से बचाव तो हो गया लेकिन यह हादसा सबक सीखने के लिए काफी है। चाहे इमारतों के विभाग की ओर से नक्शे पास किए जाते हैं, लेकिन खुदाई के समय की जाती लापरवाही खतरनाक बन जाती है। अगर यह पूरा कार्य विभाग के किसी विशेषज्ञ अधिकारी की निगरानी में करवाया जाए तब हादसों से बचा जा सकता है।

इससे पहले भी पंजाब व अन्य राज्यों में कई इमारतें उस समय जमींदोज हुई, जब उनके आसपास खुदाई का काम चल रहा था। बड़ी समस्या यह भी है कि नियमों के बावजूद मानवीय गलतियां व लापरवाहियां ऐसी चीजें हैं, जो हादसों का कारण बन जाती हैं। इन चीजों को किसी भी तरह से निगरानी के दायरे में लाना बड़ी चुनौती है। कई बार ऐसी घटनाएं भी घटती हैं, जब किसी पहले ही बनी इमारत के विस्तार के लिए उसके अंदर ही की जा रही खुदाई हादसे का कारण बन गई। दर्दनाक हादसों का खामियाजा आम मजदूरों को अपनी जान देकर चुकाना पड़ता है। इमारतों के मालिक राजनीतिक पहुंच या धन के बल पर कानूनी शिकंजे से बच निकलते हैं। कुछ महीनों बाद ही मामला रफा-दफा या खत्म होने जैसा हो जाता है। गरीब मजदूरों की पैरवी उनके परिवार से होती नहीं, वह तो अपनी रोजी-रोटी चलाने में ही उलझ जाते हैं।

बढ़ रहे शहरीकरण व बाजारीकरण के साथ पंजाब-हरियाणा के शहरों में बहुमंजली इमारतों के जंगल बढ़ते जा रहे हैं। अगर इमारतों के निर्माण व विस्तार संबंधी गंभीरता न दिखाई गई, तब यहां भी दिल्ली, मुंबई जैसा ही हाल होगा, जहां आए दिन कोई न कोई हादसा घटित होता ही रहता है। भले ही मुआवजा देकर मृतकों के परिवारों का मुंह बंद कर दिया जाता है लेकिन मुआवजे के साथ उन परिवारों का घाटा कभी भी पूरा नहीं किया जा सकता, जिनका कोई इन इमारतों में दब जाता है। हाल यह है कि जमींदोज इमारत के मालिक के खिलाफ एक मंत्री की ओर से मामला दर्ज करवाने पर भी इमारत मालिक कानूनी कार्रवाई से बच निकलता है तब वहां आम लोगों की कौन सुनेगा? विकास आवश्यक है लेकिन विकास के नाम पर आमजन खासकर मजदूरों की जिंदगी दांव पर नहीं लगनी चाहिए।