मनरेगा के समक्ष पहली चुनौती है, इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार। सरकार की अन्य योजनाओं की तरह आज मनरेगा भी भ्रष्टाचार के ग्रहण से नहीं बच सका है। इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार के मामले लगातार प्रकाश में आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, पंजाब और मणिपुर जैसे राज्यों से भ्रष्टाचार की लगातार शिकायतें आने से इसकी साख कम हुई हैं। हालांकि हमारी सरकार इसे रोकने को प्रतिबद्ध नजर आ रही है। जॉब कार्ड की ऑनलाइन व्यवस्था करने और अब मजदूरों के बैंक खातों में सीधी राशि भेजने का प्रयास इस दिशा में अंकुश लगाने का सार्थक कदम है।
सुधीर कुमार
मनरेगा केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक रही है। ग्रामीण आबादी को आजीविका से जोड़ने, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने तथा ग्रामीण जनसंख्या के
क्रय-शक्ति को बढ़ाने में मनरेगा की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। कृषि संकट और आर्थिक मंदी के दौर में मनरेगा ने रोजगार की गारंटी देकर ग्रामीण किसानों और भूमिहीन मजदूरों के लिए एक ‘सुरक्षा कवच’ के रूप में कार्य किया है। मनरेगा की महत्ता को देखकर ही मोदी सरकार उसे फलने-फूलने के खूब मौके दे रही है। कुछ वर्ष पहले जिस मनरेगा योजना के वजूद को खत्म किये जाने की आधारहीन बातें हो रही थीं, उसे आज सरकार नयी गति से संवारने पर बल दे रही है।
वित्तीय वर्ष 2020-2021 के लिए आम बजट की घोषणा करने के क्रम में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मनरेगा के लिए साढ़े 61 हजार करोड़ रुपए जारी किये जाने की घोषणा की। अगर हम वित्तीय वर्ष 2016-17 में मनरेगा के लिए आवंटित 38,500 करोड़ रुपये और उससे पहले वित्तीय वर्ष 2015-16 में आवंटित 34,699 करोड़ रुपये से तुलना करें तो, यह राशि विशाल मालूम पड़ती है।दरअसल मोदी सरकार के सत्तासीन होने के बाद मनरेगा के लिए आवंटित की जाने वाली राशि हर साल बढ़ाई गई है, जिससे इस योजना की सार्थकता को बल मिला है।
इस बजट में चारागाह को भी मनरेगा से जोड़े जाने की घोषणा की गई है। इससे रोजगार के नये अवसरों के सृजन को और अधिक बढ़ावा मिलेगा। नये वित्तीय वर्ष में मनरेगा को संवारने का सरकार का यह निर्णय मनरेगा के सुनहरे भविष्य की ओर संकेत कर रहा है। मनरेगा ग्रामीण समाज तथा अर्थव्यवस्था के साथ कई पहलूओं से जुड़ा है। ग्रामीण भारत के सशक्तीकरण की दिशा में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है। भारत में गरीबी उन्मूलन तथा रोजगार-सृजन की दिशा में मनरेगा को सार्थक कदम माना जा सकता है। दैनिक-जीवन में मेहनत-मजदूरी कर जीवन-यापन करने वाले निम्न आय वर्गीय परिवारों के लिए केंद्र सरकार की यह योजना उम्मीद की किरण साबित हुई है।
उल्लेखनीय है कि मनरेगा लाखों ग्रामीणों के जीविकोपार्जन का एकमात्र सहारा बन चुकी है। गौरतलब है कि समाज में महिलाओं के पिछड़ेपन का एक अहम कारण महिलाओं की आर्थिक भागीदारी का ना होना भी रहा है। कई ऐसे कार्य हैं, जो महिलाएं आराम से कर सकती हैं, लेकिन घर के पुरुषों ने कभी इसकी उन्हें अनुमति नहीं दी। हालांकि यह परिदृश्य हाल के दिनों में बड़ी तेजी से बदल रहा है, जो अच्छा संकेत है। इस लिहाज से देखें तो मनरेगा पुरुषों और महिलाओं के बीच भेदभाव नहीं करता है। बल्कि कहें कि यह 33 फीसदी महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने में आरक्षण भी प्रदान करता है।
साथ ही, इस क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती हिस्सेदारी उनके स्वालंबन की दिशा में एक कारगर कदम साबित हो रहा है। कुछ महिलाएं, मजबूरन पति पर निर्भरता छोड़ स्वयं घर चलाने की जिम्मेदारी भी ले रही हैं। यह अच्छा कदम है। महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
वर्ष 2015 -2016 में प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, मनरेगा में अब तक 57 फीसद कामगार महिलाओं की संलग्नता की बात सामने आई हैं। आदिवासी समाज की वे महिलाएं, जो अपने पति द्वारा दिन भर की कमाई के बाद नशें में पैसे उड़ाए जाने की आदत से तंग आ चुकी थीं, जिस कारण उसके घर में चूल्हा भी नहीं जल पाता था और बच्चे भूख के कारण बेसुध पड़े होते थे,अब वे महिलाएं स्वयं मनरेगा के तहत काम कर पैसे कमाती हैं और घर भी चलाती हैं। यही नहीं, परिवार के लिए वह दवा-दारु की व्यवस्था भी कर रही हैं और अपने बच्चों को स्कूल भी भेज रही हैं। मनरेगा ने एक तरह से महिलाओं की कार्य-क्षमता को बढ़ा दिया है और उनके जीवन में बदलाव लाया है। शारीरिक श्रम के कार्यों में पुरुषों के परंपरा वर्चस्व को वे चुनौती दे रही हैं। वे काम कर कमाती हैं और घर की जरूरतों को पूरा भी कर रही हैं।
मनरेगा के समक्ष पहली चुनौती है, इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार। सरकार की अन्य योजनाओं की तरह आज मनरेगा भी भ्रष्टाचार के ग्रहण से नहीं बच सका है। इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार के मामले लगातार प्रकाश में आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, पंजाब और मणिपुर जैसे राज्यों से भ्रष्टाचार की लगातार शिकायतें आने से इसकी साख कम हुई हैं। हालांकि हमारी सरकार इसे रोकने को प्रतिबद्ध नजर आ रही है। जॉब कार्ड की ऑनलाइन व्यवस्था करने और अब मजदूरों के बैंक खातों में सीधी राशि भेजने का प्रयास इस दिशा में अंकुश लगाने का सार्थक कदम है। दरअसल नैतिक दिवालियापन के शिकार कुछ नौसिखिये ठेकेदार मनरेगा में लूट की बुनियाद पर खुद की तरक्की का सपना देखते हैं।
दिक्कत यहीं पर है। भ्रष्टाचार के अलावे जो प्रमुख समस्या नजर आती है, वह है, मनरेगा के अंतर्गत मजदूरों के श्रम मूल्य का राज्यवार असमान वितरण। राज्यवार तुलना करने पर इसमें अंतर नजर आता है। सोचने वाली बात है कि जब श्रम समान है, तो मजदूरी में यह असमानता क्यों? यह तो मानव के श्रमबल का मजाक ही है! तीसरी समस्या, नियमित देखरेख का अभाव का होना है। इसके अभाव में मनरेगा के तहत किये जाने वाले कार्यों की गुणवत्ता में ह्रास देखने को मिला है। दरअसल मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार की वजह से यह विसंगतियां उत्पन्न हुई हैं। इसके अलावे कई बार सही समय पर मजदूरों को मजदूरी नहीं मिल पाती हैं। इस वजह से भी उनका भरोसा कम होता है। यदि मनरेगा कार्य में संलग्न ठेकेदार ईमानदारी से काम कराते हैं, तो यह योजना बहुत हद तक सफल हो सकती है।
बहरहाल तमाम अगर-मगर के बीच यह योजना कल्याणकारी प्रतीत होती है। मौजूदा सरकार की इस ओर प्रतिबद्धता ग्रामीण विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। भारी-भरकम बजट द्वारा मनरेगा को संवारने का केंद्र सरकार का प्रयास स्वागत-योग्य है। वादों को धरातल पर उतारकर नियमित देखरेख से ही यह योजना भ्रष्टाचार से दूर रह पायेगी। मनरेगा देश के अंतिम व्यक्ति के कल्याण का सामर्थ्य रखता है। विकास की चकाचौंध के बावजूद आज देश में बीस करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। अगर, मनरेगा का उचित क्रियान्वन होता है, तो यह योजना गरीबों के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं होगा।