कोरोना वायरसों का एक ऐसा बड़ा समूह है, जो आमतौर से जानवरों में पाए जाते हैं। अभी तक ज्ञात ऐसे छह वीषाणुओं की पहचान हो चुकी है, जो मानव समूहों पर संक्रमण का कहर ढा रहे हैं। इनकी संख्या सात भी हो सकती है। फिलहाल इस वायरस के उत्पन्न होने के कारण पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं। चीन के पेकिंग विश्व-विद्यालय के स्वास्थ्य विज्ञान केंद्र के शोधार्थियों ने इस कोरोना वायरस के सांप से इंसानों में प्रवेश का अंदेशा जताया है। जबकि चीनी अकादमी आॅफ साइंसेज द्वारा कराए गए शोध से पता चला है कि कोरोना की उत्पत्ति चमगादड़ व सांप दोनों में से हो सकती है।
खतरनाक वीषाणु (वायरस) से इसी समय पूरी दुनिया सहमी हुई है। चीन के ग्यारह करोड़ की आबादी वाले वूहान नगर में संक्रमित हुए इस वायरस के विस्तार ने चीन के अनेक शहरों में दहशत फैला दी है। यहां के करीब 1283 लोग इसकी चपेट में हैं। 42 की मौत हो चुकी है। अनेक की हालात गंभीर है। यह विषाणु बिना किसी अवरोध के चीन की सीमा लांघ कर हांगकांग, मकाऊ, ताइवान, नेपाल, जापान, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, थाइलैंड, वियतनाम, फ्रांस और अमेरिका में फैल चुका है। भारत भी इसकी दस्तक से चैकन्ना होकर सावधानी बरत रहा है, जिससे इसका संक्रमण नियंत्रित रहे। गोया, भारत में दो हजार लोगों को चिकित्सकों की निगरानी में रखा है। चीन से लौटे तीन लोगों को मुंबई के एक अस्पताल में चिकित्सीय परीक्षण किया गया, जिनमें से दो की जांच रिपोर्ट नकारात्मक है।
तीसरे संदिग्ध यात्री के रक्त के नमूनों को जांच के लिए पुणे स्थित नेशनल इंस्ट्रीट्यूट आॅफ वायरोलॉजी भेजी गई है। मुंबई में चीन से लौटने वाले 1789 और हैदराबाद में 250 यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग की गई है। चीन में भारत की शिक्षिका प्रीति महेश्वरी इस संक्रमण से गंभीर रूप से पीड़ित हैं। प्रिती यहां के इंटरनेशनल स्कूल आॅफ सांइस एंड टेक्नोलॉजी में शिक्षिका हैं। उनके उपचार में करीब एक करोड़ रुपए खर्च आ रहा है। साफ है, आंख से नहीं दिखने वाला यह अत्यंत मामूली वीषाणु जहां इंसान पर कहर बनकर टूट रहा है, वहीं आधुनिकतम चिकित्सा विज्ञान के लिए भयावह चुनौती के रूप में पेश आया है।
अकसर हर साल दुनिया में कहीं न कही, किसी न किसी वायरस से उत्पन्न होने वाली बीमारी का प्रकोप देखने में आ जाता है, जिस पर यदि समय रहते नियंत्रण नहीं हो पाया तो महामारी फैलने में देर नहीं लगेगी। इस नए वायरस के अवतार को जलवायु परिवर्तन, बढ़ते तापमान और दूषित होते पर्यावरण का कारक बताया जा रहा है। ऋतुचक्र में हो रहे परिवर्तन और खान-पान में आए बदलाव को भी इसके उत्सर्जन का कारण माना गया है। साफ है, प्रकृति के अंधाधुंध विकास पर टिकी यह जीवन-शैली हमें एक ऐसे अंधकूप में धकेल रही है, जहां जीवन जीने के खतरे निरंतर करीब आते दिख रहे हैं।
गोया, चिकित्सा विज्ञान अपनी उपलब्धियों के चरम पर जरूर है, लेकिन जिस तरह से नए-नए रूपों में निपाह, एड्स, हेपोटाईटिस-बी, स्वाइन-फ्लू, बर्ड-फ्लू और इबोला जैसी बीमारियां वायरसों के प्रकोप से सामने आ रही हैं, उससे लगता है, अंतत: हम प्रकृति के प्रभुत्व के समक्ष लाचार ही हैं। इस वायरस के परिप्रेक्ष्य में आशंका यह भी है कि कहीं इन वायरसों का उत्सर्जन वैज्ञानिकों द्वारा जेनेटिकली इंजीनियरिंग से खिलवाड़ का कारण तो नहीं है ? क्योंकि अनेक देश अपनी सुरक्षा के लिए घातक वायरसों का उत्पादन कर इन्हें, जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल की फिराक में हैं।
चीन से फैले इस कोरोना वीषाणु से फैलने वाली बीमारी के इलाज के लिए फिलहाल कोई टीका (वैक्सीन) का आविष्कार नहीं हो पाया है। हालांकि अमेरिका की सार्वजनिक स्वास्थ्य शोध एजेंसी ने कोरोना वायरस से बचाव का टीका विकसित करने पर काम शुरू कर दिया है। वर्तमान दुनिया को परेशान कर रहे इस वायरस का संबंध ‘कोरोनोवाइरीडी’ परिवार से है। इस परिवार के वायरस से फैलने वाली ‘सार्स’ (सीवियर एक्यूट रेस्पेरेटरी सिंड्रोम) बीमारी ने 2002 में 800 लोगों की जान ले ली थी। यह बीमारी चीन से शुरू हुई थी। इसके अलावा 2012 में पश्चिम एशिया में रेस्पेरेटरी सिंड्रोम कोरोनोवाइरस (मर्स) ने कोहराम मचाया था। उस समय प्रत्येक 10 संक्रमित लोगों में से 3 से 4 लोगों को बचाया नहीं जा सका था।
चीन में की गई आरंभिक जांचों से पता चला है कि वूहान सी-फूड बाजार में यह वायरस जानवरों के जरिए ही फैला है। सी-फूड यानी समुद्री जीव-जंतुओं व वनस्पतियों से निर्मित भोजन। इसका मुख्य स्रोत समंदर ही होता है। यह आहार शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों ही प्रकार का होता है। समुद्र में सर्पों की भी अनेक प्रजातियां पाई जाती हैं। इन्हें मनुष्य पकड़ कर व्यंजन बनता है और खा जाता है। कुछ मामलों में इन सांपों द्वारा शिकार बनाए जो जीव आधे-अधूरे खाए छोड़ दिए जाते हैं, उन्हें भी इंसान पका कर खा जाता है, जो कालांतर में इस जानलेवा वीषाणु के शरीर में उत्सर्जन का कारक बन जाता है। समुद्री भोजन के रूप में बड़े पैमाने पर मछली, झींगा, केकड़ा, लॉबस्टर, स्क्विड और ओएस्टर जीव खाए जाते हैं। शाकाहारी भोजन के रूप में अनेक प्रकार की समुद्री काईयों को खाया जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने फिलहाल इस वायरस के प्रकोप से बचने के उपायों में खाने से पहले हाथ धोना और मांसाहारी भोजन से बचने की सलाह दी है। यदि यह वायरस मनुष्य में पहुंच जाता है, तो इसके लक्षण जुकाम, खांसी व बुखार के रूप में सामने आने लगते हैं। यदि इसका समय पर इलाज शुरू नहीं हुआ तो यह फेफड़ों को संक्रमित की न्यूमोनिया में परिवर्तित होकर श्वास-क्रिया से जुड़े लोगों को नुकसान पहुंचाने लगता है। लाइलाज रहते हुए यह एक इंसान से अनेक इंसानों में फैलने लगता है। छींक और हाथ मिलाने से भी इसका संक्रमण फैलता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी ताजा रिपोर्ट में बताया है कि 2002 में यह वायरस पहली बार संज्ञान में आया था। तब 37 देशों में इसका संक्रमण फैल गया था। इसके बाद 2003 में 8098 लोग इसकी चपेट में आए थे, जिनमें से 774 लोगों की मौत हो गई थी। वर्ष 2012 में यूरोप और मध्य-पूर्व में इस वायरस से संक्रमित होने वाले रोगियों की संख्या 33 तक पहुंच गई थी। इनमें से 18 काल के गाल में समा गए थे। इस खतरनाक वायरस का प्रकोप अब सऊदी अरब, जॉर्डन, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस में भी दिखाई दे रहा है।
यहां संक्रमण से पीड़ित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। कोरोना वीशाणु के जेनेटिक कोड के विश्लेषण से पता चला है कि मनुष्य को संक्रमित करने की क्षमता रखने वाला यह कोरोना-वायरस, सार्स का निकट संबंधी है। 2002 में इसी सार्स के कहर से लगभग 800 लोगों की मौत हुई थी। बहरहाल इस खतरनाक वायरस के लक्षण जरूर सामान्य से रोग सर्दी-जुकाम-बुखार व सूजन के रूप में सामने आते हैं, लेकिन इस बेअसर करने वाला फिलहाल कोई टीका अस्तित्व में नहीं आ पाया है। इसलिए यह जानलेवा बना हुआ है, गोया इसके संक्रमण से बचने का फिलहाल सबसे प्रमुख उपाय समुद्री खाद्य सामग्री खाने से बचना तो है ही, सावधानी व सतर्कता बरतना भी जरूरी है।
प्रमोद भार्गव
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