आस्ट्रेलिया पिछले पांच महीने से विकराल दावानल की चपेट में है। अत्यधिक गर्म मौसम, सूखे की स्थिति और तेज गति से बहती गर्म हवाओं ने दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित इस महाद्वीप की पारिस्थितिकी को तहस-नहस कर दिया है। न्यू साउथ वेल्स समेत आस्ट्रेलिया के कई इलाके अभी भी भीषण आग से प्रभावित हैं। जंगल की आग धीरे-धीरे मानव बस्ती की ओर बढ़ने लगी है, जिससे वहां के नागरिकों को परेशान होना पड़ा है। वहीं दूसरी तरफ, सुलगते जंगलों से उठकर वायुमंडल में मौत बनकर मंडराते धुएं ने वहां के निवासियों को हाँफने को विवश कर दिया है। आॅस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग का धुंआ अब ब्राजील, चिली, अर्जेंटीना तक जा पहुंचा है, जिससे वहां की हवा में भी जहर घुलने लगा है।
इन दिनों आस्ट्रेलिया इतिहास के सबसे बड़े दावानल से जूझ रहा है। जंगली हिस्सों में दूर-दूर तक केवल तबाही के मंजर ही दिखाई दे रहे हैं। वहां के कई प्रांतों की बिजली गुल हो चुकी है। वहीं जलस्रोतों के सूखने के कारण पीने के पानी को लेकर लोगों में व्याकुलता बढ़ती जा रही है। इस भीषण आग में अब तक दो दर्जन से भी अधिक लोग जान गंवा चुके हैं। जबकि दो हजार से भी अधिक घर उजड़ गये हैं। हालांकि पिछले दिनों बारिश होने से थोड़ी राहत जरूर मिली है। लेकिन हालात अब भी नियंत्रण से बाहर हैं। दूसरी तरफ सूखाग्रस्त इलाकों में पीने का पानी बचाने के लिए आॅस्ट्रेलिया में दस हजार ऊंटों को मारने का काम भी शुरू हो गया है। कितनी विडंबना की बात है कि आस्ट्रेलिया के प्रमुख जानवरों में एक रहे ऊंटों को सिर्फ इस तर्क के आधार पर मारा जा रहा है कि वे अधिक पानी पीते हैं!यह समझना कठिन है कि जिन ऊंटों को आस्ट्रेलिया में परिवहन की सुविधा हेतु ‘रेगिस्तान के जहाज’ के रूप में आयात किया जाता है, उसे ही अब मौत के घाट उतारा जा रहा है!
जंगल की आग कितनी खतरनाक हो सकती है, इसे आस्ट्रेलिया के मौजूदा हालात से समझा जा सकता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, दावानल की वजह से अब तक वहां एक अरब से भी अधिक जीव-जंतुओं की मौत हो चुकी है। जबकि, एक करोड़ हेक्टेयर से अधिक वनों से आच्छादित भू-भाग आग से प्रभावित हुआ है। कोआला, कंगारू, वालाबी और पोसम जैसे तमाम जानवर, जिससे आस्ट्रेलिया की खूबसूरती बढ़ी है, उन पर भी यह आग आफत बनकर बरसी है। इधर घायल जानवरों की जो तस्वीरें सोशल मीडिया में वायरल हो रही हैं, वह भी काफी विचलित करने वाली हैं।
आग में कई जानवर जलकर पूरी तरह राख तो गये, तो कई अधजले जीवित हैं। कई जानवर दौड़कर दूर तो भाग गये, लेकिन किसी के मुंह, पैर या शरीर का कोई हिस्सा जल गया। कई जानवरों के शरीर में छाले देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कई जानवर धुएं की वजह से दम घुटने से मर गये, तो कइयों ने आपात चिकित्सा सुविधा उपलब्ध न होने की वजह से दम तोड़ दिया। कई अब भी जीवित हैं लेकिन कष्ट इतना है कि कहना मुश्किल है कि वे बचेंगे भी या नहीं!आग के बाद जानवरों और पौधों की कई प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। इस आग में कई विशिष्ट प्रजातियां भी राख हो गईं। जहां कुछ समय पहले घने जंगल थे, वहां अब केवल राख और पेड़ों के ठूंठ ही दिखाई दे रहे हैं। जाहिर है, ग्लोबल वार्मिंग से जूझ रहे विश्व को इसकी भरपाई करने में वर्षों लग जाएंगे!
दरअसल जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कमर कस रही दुनिया के समक्ष दावानल ने नई चुनौती खड़ी की है। हाल के वर्षों में दावानल की घटनाएं बढ़ी हैं, जिससे न सिर्फ तबाही का दायरा बढ़ा है, अपितु वनावरण में भी कमी आई है। गौरतलब है कि पिछले साल दक्षिण अमेरिका के अमेजन, इंडोनेशिया और अफ्रीका के जंगलों में जो आग लगी थी, उससे पारिस्थितिक तंत्र को गहरा आघात पहुंचा है। एक तरफ भारत जैसे देश में जंगल के क्षेत्रफल में वृद्धि हो रही है, जिससे जलवायु परिवर्तन से निपटने में सफलता मिलती दिख रही है, तो वहीं दुनिया के दूसरे हिस्से में स्थित जंगलों में जब आग लगती है, तो पूरी दुनिया स्तब्ध और परेशान हो जाती है।
जंगल की आग की वजह से जंगल का एक बड़ा हिस्सा तबाह हो जाता है, जिससे पर्यावरण में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। प्रकृति में हो रही अनावश्यक हलचल के चलते प्राकृतिक आपदाएं पहले से कहीं अधिक सक्रिय हुई हैं, जिससे वैश्विक चिंताएं बढ़ी हैं। पारिस्थितिक तंत्र के विच्छेद होने का ही परिणाम है कि इन दिनों भारत हाड़ कपाने वाली सर्दी, आस्ट्रेलिया इतिहास के सबसे बड़े दावानल और इंडोनेशिया भीषण बाढ़ से जूझ रहा है। अमेजन के घने जंगलों में 2018 की तुलना में पिछले साल आगलगी की घटनाओं में तीस फीसदी का इजाफा देखने को मिला था। आस्ट्रेलिया में अभी जो आग लगी है, उसके बारे में पर्यावरणविदों का कहना है कि ऐसी आग प्राकृतिक तौर पर प्रत्येक 350 साल में घटित होती है।
इस बार इसका शिकार आस्ट्रेलिया हुआ है। हालांकि दावानल से निपटने को लेकर अंतर्राष्ट्रीय जगत का रवैया हतप्रभ करने वाला रहा है। वहीं जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक मंच पर एकजुटता का नहीं दिखना भी गंभीर विषय बन चुका है। गौरतलब है कि पिछले महीने ही स्पेन की राजधानी मैड्रिड में कॉप-25 के तहत अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का जुटान हुआ था, लेकिन वह पूरी तरह निरर्थक रहा। अब तक का सबसे लंबी अवधि तक चले पर्यावरण सम्मेलन के बेनतीजा रहने से दुनियाभर में नाराजगी देखी गई। विडंबना है कि उस समय भी आस्ट्रेलिया में दावानल को खत्म करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयास नहीं किए गए। जिसका दुखद परिणाम हम सब देख रहे हैं!
सच्चाई यह है कि पर्यावरण संबंधी अधिकांश समस्याओं की जड़ वनोन्मूलन ही है। वैश्विक ऊष्मण, बाढ़, सूखा जैसी समस्याएं वनों के ह्रास के कारण ही उत्पन्न हुई हैं। मजे की बात यह है कि इसका समाधान भी पौधारोपण में ही छिपा है। भारत में जन्मदिन के मौके पर लोगों से पौधे लगाने का आह्वान किया जाता रहा है, लेकिन शायद ही एक बड़ी आबादी इस पर जोर देती है!अगर वास्तव में एक खुशहाल विश्व बनाना है तो प्रकृति को सहेजने को लिए हम सबों को आने आना होगा। जो जंगल शेष हैं उनकी रक्षा करनी होगी। इसके अलावा पौधारोपण के लिए हरेक स्तर से प्रयास करने होंगे। आपदा प्रबंधन को लेकर आम नागरिकों को जागरूक करना होगा। प्राकृतिक संतुलन के लिए जंगलों का बचे रहना बेहद जरुरी है। पृथ्वी पर जीवन को खुशहाल बनाए रखने का एकमात्र उपाय पौधारोपण पर जोर देने तथा जंगलों के संरक्षण से जुड़ा है।
-सुधीर कुमार
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