राजनीति, धर्म और आतंकवाद

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जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों के साथ संबंध रखने के आरोप में गिरफ्तार एक पुलिस अधिकारी के मामले में राजनीति बहस छिड़ गई है। कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं। यही चर्चाएं आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने में सबसे बड़ी रुकावट बन रही हैं लेकिन अब तो राजनीति में धर्म के पत्ते खेलने से भी गुरेज नहीं किया जा रहा। कांग्रेसी नेता अधीर रंजन ने गिरफ्तार अधिकारी के धर्म का जिक्र कर जो विवाद छेड़ दिया है वह निंदनीय है।

अधीर रंजन ने दविन्द्र सिंह पर तीन ट्वीट किए, जिसमें उन्होंने लिखा कि कुलगाम में हिजुबल आतंकियों के साथ गिरफ्तार हुए पुलिस अधिकारी का नाम इत्तेफाक से दविंदर सिंह है। अगर दविंदर खान होता, तो विवाद बढ़ता। वास्तव में अधीर रंजन पहले भी कई बार विवादित टिप्पणियों के कारण माफी मांग चुके हैं, लेकिन इस प्रकार के विवादों से कुछ प्राप्त होने वाला नहीं। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और प्रत्येक धर्म आतंकवाद के खिलाफ है। सभी देशवासी कानून के सामने बराबर होते हैं।

दरअसल राजनीतिक पार्टियों में अपने हितों को साधने की इतनी होड़ मची होती है कि वे बिना कुछ सोचे-समझे कुछ भी मुंह से उगल देते हैं। कोई भी पैंतरा खेलने से संकोच नहीं किया जाता। कश्मीर में गिरफ्तार अधिकारी को किसी धर्म विशेष से जोड़ने के मुद्दे पर बहस को जन्म नहीं देना चाहिए बल्कि वास्तविक्ता यह है कि आतंकवाद के मामले में केवल गलत या ठीक का सवाल होता है। आतंकवाद के खात्मे के लिए रणनीति में धर्म को मुद्दा बनाना उचित नहीं बल्कि इससे पाकिस्तान जैसे देशों को बोलने का मौका मिलता है।

राजनीतिक पार्टियों को चाहिए कि आतंकवाद व धर्म को एक साथ जोड़कर देखने की बजाए कानून की परिभाषा को समझें। राजनीति केवल कश्मीर में घटी घटनाओं तक सीमित नहीं बल्कि मुंबई में 26/11 हमले पर कुछ राजनीतिक नेताओं ने विवादित ब्यान देकर आतंकवाद के खिलाफ शहीद होने वाले पुलिस अधिकारियों की शहीदी को भी अपमानित किया था। आतंकी आतंकी ही होता है, लेकिन उसे किसी धर्म के साथ जोड़कर पेश करना, आतंक विरोधी मुहिम को कमजोर करना है।

नेताओं में यह एक विचारधारा बन गई है कि पहले तो विवादित ब्यान दिए जाते हैं फिर मीडिया पर दोष मढ़कर पीछा छुड़ा लिया जाता है। बेहतर हो यदि राजनीतिक नेता जिम्मेदाराना तरीके से बयान दें। केवल मीडिया की सुर्खियां बटोरना ही राजनीति नहीं है।

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