मामला बढ़ता हुआ सीएम और गृह मंत्री के बीच पेंच बन गया ( Manohar Lal Khattar)
चंडीगढ़ (अनिल कक्कड़/सच कहूँ)। लगता है ‘सीआईडी के बॉस’ मामले जल्द ही पटाक्षेप हो सकता है। जिस प्रकार ‘सच कहूँ’ ने इस मामले में रिपोर्ट छापी थी कि बेशक गृह मंत्रालय अनिल विज के पास है, लेकिन सीआईडी के असली बास मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ही ( Manohar Lal Khattar) हैं। इस बात पर आज मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने भी मोहर लगा दी है। सीएम ने साफ कहा कि सीआईडी पूर्व में भी मुख्यमंत्रियों के पास ही रही है और इस बार आई तकनीकी अड़चन को भी दूर कर लिया जाएगा। सीएम पंचकुला में पत्रकारों के सवालों के जवाब दे रहे थे। सीआईडी मामले पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में सीएम ने कहा कि सीआईडी पहले भी मुख्यमंत्री के पास रही है। चाहे देवी लाल हों या बंसी लाल इन मुख्यमंत्रियों के काल में गृह मंत्री कोई और था, लेकिन सीआईडी और इंटेलिजेंस सीएम के पास ही था।
- वहीं उन्होंने कहा कि ये एक टेक्निकल विषय है।
- जल्द ही ये औपचारिकता पूरी कर ली जाएगी।
- इस विषय में हमारी बात हो चुकी है।
- यहां सीएम का बातचीत से अभिप्राय गृह मंत्री अनिल विज से बातचीत को लेकर रहा।
अनिल विज ने माँगी थी सीआईडी रिपोर्ट, जिसके बाद बढ़ा मामला
बता दें कि दिसम्बर माह में प्रदेश के गृह मंत्री अनिल विज ने कुछ जानकारियां सीआईडी से मांगी थी, लेकिन जानकारियां मिलने में देरी हुई, जिस कारण अनिल विज नाराज हुए और इस पर स्पष्टीकरण माँग लिया गया। मामला बढ़ता हुआ सीएम और गृह मंत्री के बीच पेंच बन गया। जिसमें आए दिन इस बाबत खबरें प्रकाशित हो रही हैं। मामला बढ़ता देख सीएम कई दफा साफ कर चुके हैं कि सीआईडी के असली बॉस वही हैं।
- हालाँकि अनिल विज भी इस से पीछे हटने को तैयार नहीं नजर आते।
- वे कहते हैं कि सीआईडी तो गृह विभाग के अंडर आता है इस लिए वे ही सीआईडी के बॉस हैं।
सीएम अपने अधिकार में ले सकते हैं विभाग, लेकिन उसकी एक कानूनी प्रक्रिया
वहीं इस पर गृह मंत्री ने अनिल विज ने साफ कर दिया है कि कानून के हिसाब से सीआईडी विभाग गृह मंत्रालय का अभिन्न अंग है। विज ने कहा कि वेबसाइट से नाम हटाने और लगाने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन जिस व्यक्ति ने भी इस वेबसाइट से छेड़छाड़ की है, उसकी जांच होनी चाहिए और उसपर कार्रवाई भी होनी चाहिए। अनिल विज ने ये भी कहा कि किसी विभाग को अलग करना मुख्यमंत्री का अधिकार है, लेकिन ऐसा करने के लिए मुख्यमंत्री को पहले कैबिनेट से मंजूरी लेनी होती है और उसके बाद विधानसभा में इसे पास कराना होता है।
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