एनआरसी, सीएए के विरोध के बीच एक अच्छी खबर आई है। केंद्र सरकार ने अटल भूमी-जल योजना की शुरूआत की है, जिसके लिए 6000 करोड़ रूपये मंजूर किए हैं। योजना का उद्देश्य देश में भू-जल के संकट को दूर करना है। यह योजना बढ़ रही जनसंख्या और कृषि जरूरतों को पूरा करने में मील का पत्थर साबित होगी। यह तथ्य हैं कि देश में भू-जल का संकट निरंतर बढ़ता जा रहा है। इसके साथ कृषि लागत खर्च भी बढ़े हैं और लोगों को पीने वाले पानी के लिए भी कड़ी मशक्कत के साथ-साथ भारी कीमत भी चुकानी पड़ रही है।
मूसलाधार बारिश और बाढ़ के बावजूद देश के कई राज्यों में गर्मियों के समय जीवित रहने के लिए पानी प्राप्त करना भी चुनौती बन जाता है। गत वर्षों में महाराष्टÑ के लातूर क्षेत्र और उतर प्रदेश के बुंदेलखंड में ट्रेनों पर पानी पहुंचाया जाता रहा है। पंजाब जैसे राज्यों में भू-जल लगातार गहरा होता जा रहा है। यह योजना भले ही जल संकट से निजात दिलवाने के लिए है लेकिन इसका लाभ अनाज की आवश्यकताओं व आर्थिकता से जुड़ा हुआ है। जल संकट गंभीर समस्या है, जिन क्षेत्रों में यह संकट बढ़ रहा है वहां पानी का दुरुपयोग भी होता रहा है। पानी के प्रयोग संबंधी हमारे देश में कोई पैमाना ही नहीं। एक साइकिल धोने के लिए एक ट्रक धोने जितना पानी बहा दिया जाता है।
एक व्यक्ति नहाते वक्त मोटर चलाकर 20 व्यक्तियों के बराबर पानी का इस्तेमाल करता है। इसी तरह इस्तेमाल किए गए पानी की पुन:प्रयोग की तकनीक पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु जैसे राज्य नदियों के पानी के लिए कानूनी लड़ाई तो लड़ रहे हैं लेकिन इन राज्यों में पानी की बचत को लेकर जागरूकता मुहिम नाम की कोई चीज ही नहीं। जल ही जीवन जैसे नारे तो बोले जाते हैं लेकिन अमल नहीं हो रहा। पाकिस्तान को जा रहे पानी को रोकने से ज्यादा जरूरी है मौजूद पानी की संभाल की जाए। उम्मीद करनी चाहिए कि केंद्र सरकार जल संकट के समाधान के लिए काम करेगी और इसे एक क्रांति का रूप देगी।
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