असंतोष की सर्दी: नागरिक बनाम धारा 144

Citizenship Amendment Protest

-कुछ लोगों का मानना है कि नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर संघ की उस बडी योजना का अंग है जिनका उपयोग वह भारत के संविधान को बदलने का प्रयास कर रहा है। साथ ही वह लोगों को यह भी समझाने का प्रयास कर रहा है कि उत्पीडित अल्पसंख्यकों के संरक्षण का विरोध कौन करेगा। एक शिक्षाविद् के अनुसार भाजपा ने ऐतिहासिक दृष्टि से धार्मिक धु्रवीकरण का उपयोग एक चुनावी रणनीति के रूप में किया है और अब वह यही नीति अपनाकर कानून बना रही है और इस संबंध में नागरिकता संशोधन कानून सांकेतिक है क्योंकि इससे भारतीय नागरिक प्रभावित नहीं होते हैं।

यह संतोष का सर्दी का मौसम है। देश के सभी भागों में विभिन्न शहरों में आक्रोश और असंतोष व्याप्त है। विभिन्न शहरों में छात्र नागरिक समाज के कार्यकर्ता और राजनेता नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं जिसके चलते दिल्ली का जामिया मिलिया विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और लखनऊ का नदवा विश्वविद्यालय और कई जिले युद्धक्षेत्र जैसे बन गए हैं और यह सरकार के प्रति उनके आक्रोश को प्रदर्शित करता है।

इस कानून को लागू करने के संबंध में हिंसा की किसी को संभावना नहीं थी और इसके विरुद्ध हिंसा के चलते गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया है कि यह कानून ऐसे किसी नागरिक की नागरिकता नहीं ले रहा है जो भारत में 1987 से पहले पैदा हुआ है या जिसके माता पिता 1987 से पहले भारत के नागरिक थे। इसमें किसी को भी नागरिकता संशोधन कानून को लेकर चिंता नहीं करनी चाहिए। सरकार ने बंगलौर, अहमदाबाद, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के कई शहरों आदि में धारा 144 लागू की है और प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध पुलिस कडी कार्यवाही कर रही है।

किंतु नागरिकता संशोधन कानून का तात्पर्य क्या है? क्या प्रत्येक नागरिक को अधिकरण के समक्ष पेश होना पडेगा और जो लोग इसमें विफल हो जाएंगे उन्हें विदेशी समझा जाएगा? नागरिकता साबित करने के लिए क्या दस्तावेज चाहिए? यह सच है कि इस कानून से उन हिन्दू, जैन, सिख, इसाईयों और पारसी शरणार्थियों को राहत मिली है जो भारत में विभिन्न शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं और अब उन्हें नागरिकता मिल जाएगी। किंतु इससे श्रीलंकाई हिन्दुओं और अफगानी मुस्लिम प्रवासियों की स्थिति में बदलाव नहीं आएगा।

कुछ लोगों का मानना है कि नागरिकता संशोधन कानून सभी धर्मों को समान मानने की संवैधानिक कसौटी पर खरा नहीं उतरता है। प्रश्न यह भी उठता है कि सरकार इन शरणार्थियों को कहां बसाएगी क्योंकि भारत में पहले ही जनसंख्या विस्फोट है और इन लोगों को नागरिकता देने से संसाधनों पर दबाव पडेगा तथा बेरोजगारी बढेÞगी। प्रश्न यह भी उठता है कि क्या धार्मिक आधार पर धु्रवीकरण सत्तारूढ़ भाजपा की योजना का अंग है या नहीं। कुछ लोग जानना चाहते हैं कि क्या यह प्रदर्शन केवल मुसलमान कर रहे हैं।

किंतु पूरे देश में नागरिकता संशोधन कानून के विरुद्ध प्रदर्शन में लोगों को सरकार के प्रति अपने आक्रोश को व्यक्त करने का अवसर मिला है। पूर्वोत्तर क्षेत्र विशेषकर असम ने नागरिकता संशोधन कानून का सबसे पहले विरोध किया और उसे बंगाली हिन्दुओं समेत सभी अप्रवासियों से समस्या है। असम देश का पहला ऐसा राज्य है जहां पर राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर बनाया गया और उसमें 19 लाख लोग शामिल नहीं किए गए जिनमें अधिकतर हिन्दू हैं किंतु यह विरोध प्रदर्शन केवल नागरिकता संशोधन कानून को लेकर है।

पूर्वोत्तर क्षेत्र के अलावा शेष देश के लोग सोचते हैं कि नागरिकता संशोधन कानून विपक्षी पार्टियों द्वारा उठायी गयी एक सांप्रदायिक समस्या है। उनका मानना है कि नागरिकता संशोधन कानून और संपूर्ण देश में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर बनाने की संभावना भारत के संविधान के मूल चरित्र धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध है। कांग्रेस सरकार पर आरोप लगा रही है कि वह जनता की आवाज दबा रही है जबकि मित्र से शत्रु बने शिव सेना के ठाकरे ने युवा बम की चेतावनी दी है और जामिया की घटना की जलियांवाला बाग की घटना से तुलना की।

तमिलनाडू में द्रमुक के स्टालिन ने विरोध प्रदर्शन की अगुवाई की तो केरल में इसके विरोध में माकपा के मुख्यमंत्री विजयन और विधान सभा में विपक्ष के नेता चेनीथला के बीच इस मुद्दे पर एकता देखने को मिली। तृणमूल की ममता सड़कों पर उतर कर इस मुद््दे पर संयुक्त राष्ट्र जनमत संग्रह की मांग कर रही है जिसे बाद में उन्होंने वापस ले लिया था और उन्होंने स्पष्ट किया कि वह पश्चिम बंगाल में नागरिकता संशोधन कानून या राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर कानून लागू करने वाली नहीं है। उनका विरोध राजनीति प्रेरित है किंतु 2021 में राज्य में विधान सभा चुनाव होने हैं और राज्य के कुछ जिलों में मुस्लिम जनसंख्या 30 से 35 प्रतिशत है। इसी तरह कांग्रेस शासित मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ तथा आप शासित दिल्ली ने भी इस कानून को लागू न करने की बात कही है।

भाजपा के सहयोगियों में जद (यू) ने भी बिहार के संदर्भ में यही बात कही और गारंटी दी कि जब तक वे हैं राज्य में अल्पसंख्यकों के साथ अन्याय नहीं होगा। विडंबना देखिए। संसद में नागरिकता संशोधन कानून के पक्ष में मतदान करने वाले बीजद के पटनायक ने भी इस कानून को ओडिशा में लागू करने से इंकार किया है।

भगवा संघ भी नागरिकता संशोधन कानून के बारे में विशेषकर मुस्लिम जनता को अवगत कराने के लिए कार्यशालाएं और व्याख्यान देने की योजना बना रहा है। अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि से मोदी की छवि पर प्रभाव पडा है। नागरिकता संशोधन कानून का प्रभाव यह रहा है कि जापान के प्रधानमंत्री आबे ने अपनी भारत यात्रा रद्द कर दी। अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस आदि पश्चिमी देशों ने भी इसकी आलोचना की। बंगलादेश की शेख हसीना सरकार ने भी विदेश मंत्री का भारत दौरा स्थगित किया। भारत सरकार अफगानिस्तान और बंगलादेश में मित्र सरकारों को यह समझाने का प्रयास कर रही है कि वहां की वर्तमान सरकारों ने धार्मिक उत्पीडन नहीं किया है। हावर्ड और एमआईटी जैसे विश्वविद्यालयों ने पुलिस कार्यवाही की आलोचना की है।

एक समाजशास्त्री के अनुसार नागरिकता संशोधन कानून के अंतर्गत उत्पीडित अल्पसंख्यकों की वापसी का अधिकार एक मूलवंशीय लोकतंत्र है जो भाजपा की हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा से मेल खाता है। कुछ आलोचकों का मानना है कि यह मोदी-शाह के गुजरात मॉडल की पुनरावृति है जिसके अंतर्गत बांटो, धु्रवीकरण करो और लाभ उठाओ जिसके अनुसार नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर के विरुद्ध प्रदर्शन का दीर्घकालीन प्रभाव यह होगा कि गुजरात की तरह पूरे देश में मुसलमान दोयम दर्जे के नागरिक बन जाएंगे।

किंतु संघ परिवार इसका यह कहकर प्रत्युत्तर देता है टुकडे टुकडे गैंग, शहरी नक्सलवादी और छद््म धर्मनिरपेक्षतावादी जितना अधिक विरोध करेंगे हिन्दुत्व के नायक के रूप में हमारी छवि उतनी ही मजबूत होगी। यह एक नए इतिहास का निर्माण होगा जहां पर मुस्लिम वोट बैंक राजनीति को राजनीतिक आत्महत्या समझा जाएगा।

कुल मिलाकर यह आवश्यक है कि केन्द्र, राज्य और सभी राजनीतिक दल नागरिकता संशोधन कानून-राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के बारे में गतिरोध दूर करने का प्रयास करें और शांति बनाए रखे। एक जीवंत लोकतंत्र नागरिकों के विरोध प्रदर्शन अथवा सभी की राय और सहमति-असहमति का सम्मान करता है। इस बडी राजनीतिक चुनौती के समक्ष सरकार को सभी पक्षों के साथ वार्ता शुरू करनी चाहिए और लोकतंत्र में लोगों के विश्वास को बहाल करने के लिए तालमेल स्थापित करना चाहिए। देश में राष्ट्रवाद, वर्चस्ववाद के एक नए चरण में प्रवेश कर रहा है और इसका अमल भी किया जाने लगा है। वर्तमान में व्याप्त असंतोष बताता है कि भारत का लोकतंत्र अभी भी जीवंत है और आगे बढ़ रहा है।
-पूनम आई कौशिश

 

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