एक बार राम मनोहर लोहिया फरूर्खाबाद से शिकोहाबाद रेल पकड़ने जा रहे थे। रास्ते में एक जगह कव्वाली का आयोजन हो रहा था। आवाज सुनते ही उन्होंने गाड़ी रुकवाई और कव्वाली सुनने चले गए। वहां उन्हें एक व्यक्ति ने पहचान लिया और बोला अरे लोहिया जी आप यहां? फिर धीरे-धीरे सभी ने उन्हें पहचान लिया और काफी लोग वहां उनसे दुआ सलाम करने लगे।
जिस व्यक्ति ने लोहिया जी को सबसे पहले पहचाना था वह बहुत ही गरीब था। उसने जोरदार सर्दी में भी केवल लुंगी और कमीज पहनी हुई थी। डॉक्टर साहब ने उस व्यक्ति से पूछा- तुमने ऊनी कपड़े क्यों नहीं पहने? वह बोला- साहब मैं गरीब आदमी हूं। ऊनी कपड़े नहीं हैं। यह सुनते ही डॉक्टर साहब ने जनेश्वर मिश्र जी से कहा- मेरे बक्स में दो स्वेटर रखे हैं, एक स्वेटर लेकर आओ। जनेश्वर जी ने बक्स खोला तो उसमें एक आधी बाजू की और एक पूरी बाजू की स्वेटर थी। उन्होंने आधी बाजू की स्वेटर ली और लोहिया साहब को दे दी। आधी बाजू की स्वेटर देखते ही लोहिया जी ने कहा- आप फिर जाइए और दूसरी वाली लेकर आइए। इस बार वह पूरी बाजू की स्वेटर लेकर आए और डॉक्टर साहब को दे दी।
डॉक्टर साहब ने आधी बाजू की स्वेटर के बजाय उस व्यक्ति को पूरी बाजू की स्वेटर भेंट कर दी। वह बहुत खुश हो गया और डॉक्टर साहब को दुआएं देने लगा। वहां से निकल आने पर डॉक्टर साहब ने जनेश्वर मिश्र से पूछा- तुमने अपनी गलती महसूस की? देखो, किसी को कभी कुछ देना हो तो अपने पास जो सबसे अच्छी चीज है, वही उसे देनी चाहिए। खराब चीज किसी को कभी नहीं देनी चाहिए।
Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करे।